Category: कविताएं

  • श्रद्धांजलि

    श्रद्धांजलि

    रोटी भी ये क्या क्या नहीं करवाती है, कभी सड़क कभी पटरी पर ले जाती है। जीते जी ना मिल सकीं वो सुविधाएं, अब ये मृत देह हवाई जहाज से आती है। एक कटोरी दाल तक न मिल पायी, अब घर सरकार पाँच लाख दे जाती है। श्रमिकों की मजबूरी को ना समझा कोई, चहुँ…

  • मजबूरी मजदूरों की

    मजबूरी मजदूरों की

    हाय! कैसी है ये, मजबूरी मजदूरों की। अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए चले जाते है,परिवार से दूर ताकी कही मजदूरी कर, पाल सके, परिवारों का पेट। हाय! कैसी है? ये पेट की आग। जो मजदूरों को कर देती,अपनों से दूर। हाय! यही चार रोटी है, जिसके लिए आए थे, घर छोड़…….!! आज यही…

  • सुरा के सूर

    सुरा के सूर

    जब से लॉक डाउन हो गया मेरा मन बेचैन हो गया। होगा कैसे व्यतीत ये क्षण कैसे कटेगे मेरे ये दिन।। सुरागार जब बंद हो गए जीवन कैसे चल पाएगा। किन्तु धीमे धीमे मंद गति से लॉक डाउन कट जाएगा।। लॉक डाउन की आदत पड़ गई मदिरा की बेचैनी छूट गई । तभी सरकार ने…

  • अब ना आयेगा

    अब ना आयेगा

    लाकडाउन मे जो लोग विभ्भिन परिस्थितियो में मारे गये लोगों को यह कविता समर्पित। ईश्वर उनकि आत्मा को शांति प्रदान करे। अन्धेरा छट जायेगा, सूरज जब उग आयेगा! दिपक भी जल जायेगा, उस मॉ को कौन समझायेगा? जिसका लाल अब ना आयेगा। घर कि खुशिया लूट जायेगा, अब कहा घर मे रौनक आयेगा! विरान पड़…

  • एक घाव पुराना बाकी है

    एक घाव पुराना बाकी है

    एक घाव पुराना बाकी है, उनको भी भुलाना बाकी है, जब जब दुनिया मे दर्द बंटा है, अपनों को सुनाना बाकी है।। जब याद हमारी आएगी, उनको भी ऐसे तड़पायेगी, ना सोच था मेरा उन जैसा, सपने में हमें तू रुलायेगी, धागे कच्चे का जोड़ नहीं, दिल को समझाना बाकी है।। एक घाव……. हर बात…

  • कुदरत का तोहफा

    कुदरत का तोहफा

    कुदरत का तोहफा है कितना लाजवाब।आओ बैठे सोचे,हम मिलकर जनाब।।१।। हरे हरे पेड़ों की,हरी हरी टहनियाँ।जिस पर ये करते हैं,पंछी अठखेलियां।। दे रही है सबकुछ,सबको बेहिसाब।आओ बैठे सोचे,हम मिलकर जनाब।।२।। झर झर झरता है,झरनों का पानी।नदियों की कलकल,सुनाएं सुनो कहानी।। कुदरत के रंग रंगा जीवन का आब।आओ बैठे सोचे,हम मिलकर जनाब।।३।। हरे हरे खेतों में,लग…

  • प्रकृति का संकट पहचानें

    प्रकृति का संकट पहचानें

    हिंदी कलमकारों ने प्रकृति संरक्षण की बात हमेशा कही है। हमें लगता है कि हम तो कोई नुकसान नहीं कर रहे हैं प्रकृति का, किन्तु जाने-अनजाने अनेक क्षति पहुंचा जाते हैं। कलमकार गोपेंद्र सिन्हा लिखते हैं कि अब समय आ गया है कि प्रकृति का संकट पहचाने। समय रहते संकट को पहचानें, आने वाली परेशानी…

  • तन्हा रहना सीख लिया

    तन्हा रहना सीख लिया

    इस लाॅकडाउन ने बहुत कुछ हम सभी को सिखा दिया है। तालाबंदी कठिन समय है लेकिन बहुत सहनशक्ति दे चुका है। यह सब हमारी बेहतरी के लिए ही है, कलमकार विजय कनौजिया जी कहते हैं कि इसने तो अकेला रहना भी सिखा दिया। चार दिवारी में रहकर चुप-चुप सा रहना सीख लिया दीवारों से हुई…

  • आत्म निर्भर बनना है

    आत्म निर्भर बनना है

    अब करना है, आत्म निर्भर बनने का प्रयास।। मत बैठो उन के भरोसे, जो करते है आप का उपहास।। अब करना है, आत्म निर्भर बनने का प्रयास।। दुख सुख के साथी बनो, अपनो को ले कर साथ।। जीना है खुद के भरोसे, अब दुसरो से कैसी आस।। अब करना है, आत्म निर्भर बनने का प्रयास।।…

  • प्रकृति का रौद्ररूप

    प्रकृति का रौद्ररूप

    मानव ने की प्रकृति से छेड़छाड़ जंगलों को दिया उजाड़ पेड़ पौधों से की खिलवाड़ खोल दिए विनाश के किबाड़ मात्र स्वार्थ के लिए अपना धर्म भूल गया मानवता को तज कर संस्कार भूल गया ईश्वरीय सत्ता को चुनौती दे डाली परिणाम विनाश महाविनाश प्रकृति ने रौद्ररूप दिखाया पूरा विश्व इस से घबराया हर जगह…

  • सहयोग

    सहयोग

    सबको करना चाहिए, सबका नित सहयोग। अपनी संस्कृति सभ्यता, कभी न भूलें लोग।। मानव गर करता रहे, मानव का सहयोग। भाग खड़े हों आपसी, सामाजिक सब रोग।। प्रेम दया सहयोग है, मानवता का मूल। चकाचौंध में उलझकर, कभी न इनको भूल।। सारा विश्व माँग रहा, आज महा सहयोग। मिलकर करके सामना, दूर करें यह रोग।।…

  • वो दौर, ये दौर

    वो दौर, ये दौर

    नक़ाब शब्द ऐसा है जिसे आप अपनी शब्दावली में सजाकर मोहब्बती क़सीदे पढ़ते है वही दूसरी तरफ़ किसी के चरित्र की धज्जियाँ भीउड़ाते है। नक़ाब उस दौर में मतलब कोरोना त्रासदी से पूर्व और अब जब ये चरम पे है तो कैसा है उसके साथ तब और अब में क्या परिवर्तन हुए है, एक छोटी…

  • कोरोना! तूने ये क्या किया

    कोरोना! तूने ये क्या किया

    कोरोना! तूने ये क्या किया, पूरी दुनिया को अपनी उंँगलियों पर नचा दिया, अंहकारी व्यक्तियों को धूल चटा दिया, कोरोना तूने ये क्या किया। कोरोना! तूने ये क्या किया, दुनिया की शक्तिशाली देशों को उसकी औकात बता दिया, ज्ञान-विज्ञान की बात करने वालों का मुंँह चुप करा दिया, कोरोना तूने ये क्या किया। कोरोना! तूने…

  • कोरोना की मार है ऐसी

    कोरोना की मार है ऐसी

    सुनी पड़ी गई सड़के सभी, और पड़ गई सुनी गलियां। कोरोना की मार है ऐसी, घर में दुबकी सारी दुनिया। मिलना-जुलना अब होता कम ही, होती ना अपनों की गलबहियाँ। हैंड-शेक से भला नमस्ते लगता अब तो, जब भी मिलते दोस्त और सखियाँ। कोरोना की मार है ऐसी, घर में दुबकी सारी दुनिया। पढ़ाई अभी…

  • अमर बलिदानी- वीर जवान

    अमर बलिदानी- वीर जवान

    शहीदों के बलिदान को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कलमकार खेम चन्द कहते हैं कि शब्दों में बयाँ नहीं हो पायेगा अमर बलिदानियों का बलिदान; जय हिन्द जय भारत अमर जवान हमारे महान। कहाँ खो गयी हँसती खेलती सुकून दिलाती वो मुस्कान क्या कर बैठा ये मेरे भगवान।।इन्तज़ार में ही छोड़ कर चला गया आज…

  • यादों की बारिश

    यादों की बारिश

    यादों की बारिश आपको सिर्फ भिगोती नहीं है यह यादों में डूबो देती है। हमें रोज अनगिनत पलों की याद आ जाती है कुछ मीठी तो कुछ खट्टी। कलमकार सुनील कुमार की यह रचना पढें जो इस बारिश में भीगी हुई है। कब छूट गया वो बारिश में नहानाबहते पानी में कागज की कश्ती चलानाआज…

  • हो गया कैसा ये शहर

    हो गया कैसा ये शहर

    यह शहर बदला-बदला सा लगता है। यहाँ के लोग भी बहुत बदल चुके हैं। इसी बदलाव और स्वाभाव की चर्चा कलमकार मुकेश बिस्सा ने अपनी इस कविता में की है। हो गया कैसा ये शहरपल पल में बदलतेयहां लोग हैजितने तो मौसमभी न बदलतेसोता हुआ एकशहर हैअंधेरे मेंडूबा हुआउदासी के साये मेंधुंध के आगोश मेंबाहर…

  • सब्र

    सब्र

    आपने सुना होगा कि सब्र का फल मीठा होता है। इसी कहावत पर अमल करते हुए हम बहुत जगह सब्र करते हैं। अनेक स्थानों पर सब्र के शिवा दूसरा चारा ही नहीं है। इसी विषय पर कलमकार प्रिया कसौधन की एक कविता पढ़ें। मैं सब्र करती जा रही हूं। जीवन की आशा से, बढ़ती निराशा…

  • मजदूरों की रोटियाँ

    मजदूरों की रोटियाँ

    सोलह मजदूरों को ट्रेन से रौंद दिया जाना और उनका अपने घर ना पहुंच पाना, बहुत दर्दनाक व वीभत्स घटना है। जो भी देखा सुना, जाना, सबके रूह कांप गए। रात भर एक भयावह सपने की तरह सभी को परेशान करता रहा। मजदूर भाइयों की बेबासिया सरकारी अंग से कटकर काल के गाल में चली…

  • कितनी बुरी है मधुशाला?

    कितनी बुरी है मधुशाला?

    कलमकार भरत कुमार दीक्षित रचित व्यंग्य और हास्य पर आधारित इन रचनाओं का उद्देश्य किसी को आहत करना नही है, महज़ इसे मनोरंजन के लिए पढ़े। १.) खुली हुई है मधुशाला बन्द पड़ी है पाठशालाएँ, खुली हुई है मधुशाला। टूटा सब्र का बाँध कुछ ऐसे, दूरियाँ बहुत नज़दीक हुई जनता का सैलाब उमड़कर, मधुशाला में…