Category: कविताएं

  • एक शख़्स

    एक शख़्स

    कलमकार स्वयं को नादान कलम कहते हैं। इस कविता में वे वादियाँ, बर्फ़ का पानी और नादान कलम की कहानी लिख रख रहे हैं। वो पूछती थी मैं बताता था जिन्दगी को दर्द जिन्दगी के सुनाता था। वो मुस्कुराती थी मंद मंद और मैं शर्माता था। इसी तरह गमों को अकेले अकेले हराता था तस्वीर बनाता…

  • किताबें

    किताबें

    कवि मुकेश अमन अपनी इस रचना में किताबों का महत्व बता रहे हैं। आपका जीवन सुंदर और सुखद बनाने में बड़ी भूमिका निभानेवाली इन किताबों से नजदीकियां बढ़ाइए। गजल, कहानी, नाटक, नज्में, गीत किताबें गाती है । यही किताबें अड़ी-खड़ी में, सही राह दिखलाती है । शिक्षा-दीक्षा, ज्ञान-ध्यान से, जीना हमें सिखाती है । सुंदर,…

  • धरती का चाँद

    धरती का चाँद

    कलमकार संजय वर्मा सौंदर्य का वर्णन अपनी इस कविता में कर रहे हैं। खूबसूरती की चाँद से तुलना करती हुई कुछ पंक्तियाँ पढ़ें। धरती का चाँद दूधिया चाँद की रौशनी में तेरा चेहरा दमकता नथनी का मोती बिखेरता किरणे आँखों का काजल देता काली बदली का अहसास मानो होने वाली प्यार की बरसात तुम्हारी कजरारी…

  • मेरे अंतस

    मेरे अंतस

    हमारे तुम्हारे मन में न जाने कितनी यादें, कल्पनाएँ और इरादे भरे पड़े हैं। कलमकार नमिता प्रकाश ने इस कविता में इसी संदर्भ में अपने भाव प्रकट किए हैं। तेरे अन्तसमेरे अन्तस,कुछ औंर नहीकेवल छवि है।जो गुजरे वो दिन सुनहरे,उज्जवल गीत तेरे, मेरे।तुम नहींहै सिर्फ आत्माएंगुंचा, गुंचा व्याप्त कवि है।सुधियों के मिस पावन प्रसंगसत्य, निष्ठा…

  • कुछ तो परिवर्तन

    कुछ तो परिवर्तन

    कलमकार मुकेश बिस्सा लिखते हैं कि अब तो परिवर्तन हो ही जाना चाहिए, जहाँ उनकी कल्पना के अनुसार एक नई दुनिया और उत्तम स्वाभाव वाले लोगों का साथ मिले। कुछ तो परिवर्तन कहीं कुछ तो परिवर्तन चाहिए अलग सी एक दुनिया चाहिए जहां कदर नहीं मेरी गजल की मुझे महफ़िल से उठना चाहिए आता है…

  • कोरोना: एक अदृश्य शत्रु

    कोरोना: एक अदृश्य शत्रु

    संघर्षरत सम्पूर्ण जग, तनिक ठहर जाइए योद्धाओं की पुकार है ना घबराइए अदृश्य है शत्रु यह संभल जाइए अपने लिए ही सही मन की चेतना जगाइए भविष्य के लिए पहले वर्तमान चाहिए अदृश्य है शत्रु यह संभल जाइए देव से दुआ करो यह राष्ट्र अब बचाइए आने वाला कल सुखद हो रास्ता दिखाइए अदृश्य है…

  • कोरोना काल में कुछ लोग

    कोरोना काल में कुछ लोग

    वो जो कहते थे वक़्त नहीं मिलता आजकल अपनों के संग वक़्त बिता रहे है। के बहुत खुश है वो नन्हा ये देख कर उसके हिस्से का सारा प्यार उसे मिल रहा है। क्यों की मां आज कल दफ्तर नहीं जा रही है। फेस बुक पर लोग लाइव ज़्यादा आ रहे है। कोई चेता रहा…

  • श्रमिक न घबराये श्रम से

    श्रमिक न घबराये श्रम से

    श्रमिक! न घबराये, श्रम से मेहनत करता है दम-खम से। फिर! चूल्हा कल जलेगा घर पर चिन्ता उसको यही सताये। श्रमिक! श्रम की गर्मी से पिघला लोहा आकार है देता। खेतों में, कारखानों में खून जलाता पसीना बहाता। सुस्ता ले जो पल दो पल साहब! उस पर है चिल्लाता। श्रमिक! उपेक्षित शोषित-पीड़ित; अपना भी, हक़…

  • ऐ ख़ुदा तू है कहाँ

    ऐ ख़ुदा तू है कहाँ

    कलमकार मनीष दिवाकर आजकल के आपराधिक माहौल से दुखी होकर यह कविता लिखतें हैं और खुदा से कुछ सवाल कर रहें हैं।   ऐ ख़ुदा तू है कहाँ, क्या-क्या जमीं पर हो रहा भेड़िये सा मन क्यूँ इंसान लेकर ढ़ो रहा! इंसान ही उत्कृष्ट रचना हैं तुम्हारीं क्या प्रभु जो धरा पर बीज़ कुत्सित नित्…

  • तुम दुःख मेरे नाम करो

    तुम दुःख मेरे नाम करो

    कलमकार विजय कनौजिया कहते हैं कि तुम दुःख मेरे नाम करो। प्रेम में कभी दुख न देना, वहाँ केवल खुशियों का आशियाना होना चाहिए। दुख आएँ भी तो मिल बाटकर उन्हें गायब कर देना चाहिए। प्रथम प्रेम का प्रथम निवेदन तुम मेरा स्वीकार करो पूरी हो मेरी अभिलाषा बस थोड़ा उपकार करो..।। मेरी चाहत के…

  • हार और जीत

    हार और जीत

    जीवन में हार और जीत किस कद्र जरूरी होती है यह सभी जानते हैं लेकिन हारना कोई नहीं चाहता। कलमकार मुकेश बोहरा अमन की कविता में हार और जीत का वर्णन पढ़ें। जिनके थे, बेजान इरादें, वो बाजी फिर हार गए । जिनके था, संकल्प जीत का, वो जीते सब पार गए ।। कहां से…

  • वास्तविकता

    वास्तविकता

    जो दिखाई देता है वह वास्तविकता नहीं है, वास्तविकता जानने के लिए आपको उस इंसान व चीज़ को बहुत करीब से समझना होगा। कलमकार दिव्यांगना की एक कविता पढ़िए जो इस विषय और जानकारी प्रदान कर रही है। तुम अगर आज के दौर में बैठे हो, कमरे के किसी अंधेरे कोने में, मोबाइल लैपटॉप लिए,…

  • सीता की अग्नि परीक्षा… कब तक

    सीता की अग्नि परीक्षा… कब तक

    माता सीता के प्राकट्य दिवस पर विशेष सीता की अग्नि परीक्षा… कब तक नारी के आत्मसम्मान पर, उठते रहेगें। प्रश्न? शायद जब तक। सीता की अग्नि परीक्षा …तब तक। जब तक नारी तुम मूक रहकर, सब सहती जाओगी। भीख में कैसी…… इज्जत पाओगी। बस हां में हां मिलाओंगी तब तक तुम देवी रूप पूजी जाओगी।…

  • वो तुम्हें हर जगह दिख जाएगा

    वो तुम्हें हर जगह दिख जाएगा

    वो तुम्हें हर जगह दिख जाएगा ग़ौर से देखोगे तो भगवान नज़र आएगा कहीं खेतों में घूप की चादर ओढ़े हुए तो कहीं सड़को के सन्नाटे में लेटे हुए कहीं अन्न उगाते हुए तो कहीं इमारतें बनाते हुए वो तुम्हें हर जगह दिख जाएगा ग़ौर से देखोगे तो भगवान नज़र आएगा कहीं कोई अपनी उदासी…

  • क्योंकि मज़दूर हूँ

    क्योंकि मज़दूर हूँ

    दुनिया के सामने तस्वीर हमारी सब के जुबा पे नाम हमारी फिर भी ना कोई पहचान हमारी क्योंकि मैं मजदूर हूं दुनिया हो गई एक साथ आज सबके आगे फैला हाथ ऐसी हो गई दशा हमारी क्योंकि मैं मज़दूर हूं रोटी के लिए मर रहा हूं घर जाने को तरस रहा हूं फिर भी ना…

  • श्रमिक

    श्रमिक

    व्यथीथ हो चला था हृदय में अपने अनंत पीड़ा लेकर वह अपने घर को चला था क्या करता इस बड़े से शहर में शहर के व्यवहार से, वह कुपित हो चला था ऐसा नहीं था कि नहीं थे अच्छे लोग, उस शहर में पर वह उनसे अब तक, न मिल सका था शहर की चकाचौंध…

  • श्रम दिवस

    श्रम दिवस

    कामयाबी का राज मेहनत है यह खुदा की बख़्शी हुई नेमत है करें श्रम जब तक जीवन है यही जीवन का मूल मंत्र है आज का काम कल पर मत छोड़ो श्रम ही सफलता का लक्षण है हर पल महत्वपूर्ण क्षण है खुशकिस्मत से मिलता मानव जीवन है कुछ करने के लिए ही हुआ मानव…

  • मज़दूर है बहुत मजबूर

    मज़दूर है बहुत मजबूर

    समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है ये जिसे हम मज़दूर शब्द से नवाज़ते है, कई क़िस्मों का है ये मज़दूर। बस नज़र आपकी है कि किस मोड़ पर वो सोच बैठे कि हाँ ये है मजबूर माफ़ी चाहूँगा ‘मज़दूर’। आइए इस कविता से जोड़ते हुए आपको मज़दूर दिवस की बधाइयाँ देता हूँ……. हाँ मज़दूर है…

  • शाख से पत्ते टूटते रहते हैं

    शाख से पत्ते टूटते रहते हैं

    भारत ने दो दिन के अंदर अपनी दो बेहतरीन शख्सियत खो दी हैं। कल इरफ़ान ख़ान जी और आज ॠषि कपूर जी को…. दोनों महान कलाकारों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। शाख से पत्ते टूटते रहते हैं, एक दूसरे से छूटते रहते हैं, दस्तूर धरा का बड़ा निराला है, नए पत्ते आते हैं तो पुराने छूटते रहते…

  • मजदूर दिवस नहीं मजबूर दिवस

    मजदूर दिवस नहीं मजबूर दिवस

    जिस दिन भारत की यह तस्वीर बदल जाएगी सच उस दिन देश की तकदीर बदल जाएगी गरीबों और अमीरों के बीच बहुत गहरी खाई है जिस दिन यह गहराई थोड़ी सी भी भर जाएगी सच उस दिन देश की तकदीर बदल जाएगी कागजी दावे नहीं जब योजना घर तक जाएगी बिना कर्जे के जिंदगी जब…