Category: कविताएं

  • तीन कविताएँ- विचारवान, व्याकुल हृदय, हकीकत क्या है

    कलमकार मनोज बाथरे ने अपने कुछ विचार इन पंक्तियों में आपके समक्ष प्रस्तुत किये हैं। १) विचारवान हम सदा यही प्रयत्न करें कि हमारे विचारों से सब को चाहें वो हमारे हित में सबको इन विचारों का लाभ मिले जिससे संसार विचारवान बन सकें। २) व्याकुल हृदय व्याकुल हृदय तलाश रहा है उन सुकून के…

  • मजदूर बना मजबूर

    मजदूर बना मजबूर

    मजदूर बना मजबूर हां मजदूर हूं मै। बेबस और मजबूर हूं मै।। काम देखकर स्वप्न दिखाकर मुझको तुमने अपना लिया। आती देख मुसीबत मुझ पर तुमने मुझको ठुकरा दिया।। लाचार और विवश होकर के मैंने अपना घर छोड़ा। मुसीबत में मै तेरे जीवन का बन गया एक रोड़ा।। हाथ पकड़ मुझे उठा ऐसे ना साथ…

  • मजदूर हम मजदूर

    मजदूर हम मजदूर

    कभी छोटू, कभी रामू काका, तो कभी जमुना बाई, तो कभी पसीने से तर-बतर रिक्शा और ठेला खिंचते! कभी ऊँची ऊँची अट्टालिकाआओं पर अपने घरों का तामम भार उठाये! हाँ घर से कोसों दूर, कभी बेघर, तो कभी मजबूर, हाँ सही सूना आपने मजदूर हम मजदूर! ~ अभिषेक अभि

  • लाल हरी चूड़ियां

    लाल हरी चूड़ियां

    यहां की प्रत्येक महिला को साहब, बहुत भाती हैं ये लाल हरी चूड़ियां ! श्रृंगार का प्रमुख भाग बनता इनसे, चाहे युवती हो या हो चाहे बुढ़िया ! क्या मालूम है ये कड़वा सच इन्हें, हमें काम कितना करना पड़ता है? कांच के टुकड़े जुटाने में हमें यहां, धूप में भूखा ही सड़ना पड़ता है!…

  • मेहनतकश मजदूर हूँ

    मेहनतकश मजदूर हूँ

    मैं मेहनत कश मजदूर हूँ हालातों से थोड़ा मजबूर हूँ खून पसीना एक करता हूँ अपने परिवार का पेट भरता हूँ सुन्दर सपनों की दुनिया मे जीता हूँ उम्मीदों का आकाश निहारता रहता हूँ अपने कर्म पर ही भरोसा करता हूँ अच्छे दिनों की आस पर जिंदगी जीता हूँ ये असीमित आसमान ही मेरा मकान…

  • मजदूर का दर्द

    मजदूर का दर्द

    पूरा विश्व परेशान तो इस नोबल कोरोना रूपी महामारी से भी है, लेकिन बच्चो एवं अपनी भूख मिटाने के लिये परेशान तो मजदूर ही है। अब जो अमीर घर बैठे पकवान खा रहे है, उनके पीछे जो पसीना लगा है वो मजदूर का है। जो देखने मे अत्ति सुंदर भवन बने है, उनके पीछे भी…

  • मजदूर का जीवन

    मजदूर का जीवन

    किसी भी बोझ से न थकता हूं वक्त की चोट से न रुकता हूं बस दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरी करता हूं मैं । सपनों के आसमान में बिना गाड़ी बंगले के आराम में अपने कच्चे मकान में जीवन जीता हूं मैं । फटे पुराने लिबास पहने कंधो पर जिम्मेदारी ढोने किस्मत का…

  • ऋषि कपूर

    ऋषि कपूर

    दिग्गज कलाकार ऋषि कपूर के असमायिक निधन का समाचार आया यह फिल्म जगत और सिने प्रेमियों के लिए अपूर्णीय क्षति है। इस शोकाकुल अवसर पर मैं विनम्र  काव्य श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। ऋषि कपूर इक कलाकार महान कपूर परिवार की आन बान और शान अपने जानदार अभिनय से रोल मे  डालते जान सशक्त अभिनय से…

  • मजदूर

    मजदूर

    कभी इंटे उठाता। कभी तसले, मिट्टी के भर-भर ले जाता। पीठ पर लादकर, भारी बोझे, वह चंद सिक्कों के लिए, एक मजदूर, कितना मजबूर हो जाता। ना सर्दी, ना गर्मी से घबराता। मजबूरी का, फायदा ठेकेदार उठाता। इतने पैसे नहीं मिलेंगे। मन मारकर, जो देना है दे दो मालिक, कह कर चुप रह जाता। मजदूर…

  • मैं मजदूर हूँ

    मैं मजदूर हूँ

    हाँ, मैं मजदूर हूँ, बेबश हूँ, लाचार हूँ, बुझाने भूख पेट की, गालियाँ खाता, सिसकता भ्रष्टाचार हूँ। परिकल्पनाओं को तुम्हारी साकार मैं करता रहूँ, पय को तरसती अँतड़ी को आशाओं से भरता रहा। धर्म कोष को तुम्हारे हरदम बढ़ाता मैं रहूँ, कलुषित हाथों से धवल कपूर सा जलता रहा यज्ञ की समिधा में काले तिल…

  • हम मेहनतकश

    हम मेहनतकश

    नसें हमारी उभड़ गयी, तन से बहता पानी है, हम मेहनतकश विश्व के यही हमारी निशानी है, खून-पसीना एककर हम चैन की रोटी खाते है, नहीं माँगते भीख किसी से अपने दम पर जीते हैं, मेहनत हमको सबसे प्यारी, मेहनत है ईमान, मेहनत पर जो आँख दिखाये, खड़े हो सीना तान, अपने दम पर हम…

  • हां! मै मजदूर हूं

    हां! मै मजदूर हूं

    संज्ञा में मै भूसा कपूर हूं! हां! मै मजदूर हूं मै भूखा सूखा रहता हूं पैदल ही चलता हूं आंधियों को सहता हूं पसीने में भीगता हूं फसलों को सींचता हूं दुबिधाएं ही लीपता हूं पास ही हूं, कहां दूर हूं? हां! मै मजदूर हूं पेट तो कभी भारत नहीं मेरा भूख कभी मरता नहीं…

  • राष्ट्रकवि दिनकर जी

    राष्ट्रकवि दिनकर जी

    उदित हुआ वह दिनकर की किरणों सागंगा के आंचल मे पल कर, गाँवो की गलियों मे बढ़ कर,वह नुनुआ जैसे जैसे बढ़ता है हिन्दी का रंग उस पर चढ़ता हैहिंदी को हथियार बना कर भारत से वह कहता है, पुनः महाभारत की तैयारी करने को वह कहता हैकुरुक्षेत्र की मिट्टी से प्रथम विजय संदेश वो…

  • मन की डोर को बाँधे रखना

    मन की डोर को बाँधे रखना

    लाख जी घबराये मन की डोर बाँधे रखना, नैया मझधार डगमगाये धीरज बाँधे रखना, आँधी आये तूफाँ आये अडिग अचल रहना अँधकार में भी प्रकाश दीप जलाये रखना, जीवन में राह न सूझे गुरुवर को याद रखना सुख में कभी भी अपने मित्रों को न भूलना, ईश्वर की सदैव प्रार्थना स्मरण करते रहना, समस्त प्रकृति…

  • पुलिस जवान

    पुलिस जवान

    यह कविता समाज के उस वर्ग को समर्पित है जो समाज के लिए जी जान से कार्य करते हैं और अपनी जान जोखिम मे डाल कर समाज मे कानून और व्यवस्था को लागू करते हैं । समाज की पुख्ता पहचान पुलिस का जवान पुलिस का जवान कानून और व्यवस्था का रखवाला समाज बिरोधी तत्वों के…

  • मध्यम वर्ग भी रहता है

    मध्यम वर्ग भी रहता है

    सारा ध्यान गरीबों पर और उच्च वर्ग को फर्क नहीं किसी को याद नहीं शायद मध्यम वर्ग भी रहता है। देश में अधिक गरीबी है तनख्वाह भी आती गिनचुनकर कुछ कह नहीं सकता किसी से ही मध्यम वर्ग चुप रहता है। सुनने वाला इनका न कोई चुप रह के तमाशा सुनता है नहीं अधिक कमाई…

  • उम्मीद

    उम्मीद

    पहले जैसे होंगे हालात, उम्मीद लगाये बैठे हैं, गले मिला करेंगे सबसे, ये स्वप्न सजाये बैठे हैं। मिट जायेगी ये मजबूरी, बीच रहेगी अब ना दूरी, चाह रहेगी नहीं अधूरी, मनोकामना होगी पूरी, घर में इन सब बातों का, दिया जलाये बैठे हैं, पहले जैसे होंगे हालात, उम्मीद लगाये बैठे हैं। छट जायेगा ये जो…

  • कर्मवीरों के आगे नतमस्तक हिन्दुस्तान है

    कर्मवीरों के आगे नतमस्तक हिन्दुस्तान है

    कभी सीमा पर, कभी अस्पतालो में, कभी बीच सडको पर‌, वो यूं नजर आते हैं। छोड मां आंचल वो नित रोज सेवा पर जाते हैं। जिनके जज्बातो के आगे नतमस्तक हिन्दुस्तान है। वो देशभक्त, वो कर्मवीर, वो ईश्वर भगवान है। कभी मां की लाज बचाने को, कभी परहित जान बचाने को, कभी शांति का मार्ग…

  • क्या लिखा जाए

    क्या लिखा जाए

    सवाल है आखिर क्या लिखा जाए? मुल्क के हालात लिखूं या ऊंची नीची जात लिखूं मौसम की बदमिजाज लिखूं या हवाओं के सर्द आगाज लिखूं चारो तरफ़ फैली हाहाकार लिखूं या ईश्वर पर कुछ विश्वास लिखूं काली विषेली धुएं की प्रहार लिखूं या भोजन के लिए तड़पते इंसान लिखूं बारिश में भीग कर नहाना लिखूं…

  • कोरोना योद्धा

    कोरोना योद्धा

    करें हम वन्दना तेरी हे कोरोना योद्धा। दया धर्म परोपकार समदृष्टि से काम करते कोरोना जग से मिट जाये प्रतिपल कर्म ऐसा करते, पूरी दुनिया देख रही तेरे हृदय की विशालता माँ-बाप, बीबी-बच्चों से तूँ हो गया जुदा। हे कोरोना… पनपता विद्वेष जो जन-मन विनीत भाव से भरते राजा-रंक पर रख समभाव देश का मान…