Category: कविताएं

  • मिलती है अजनबी की तरह!

    मिलती है अजनबी की तरह!

    कलमकार राजन गुप्ता ‘जिगर’ ने मुलाकात, प्यार और जुदाई से जुड़ी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत की हैं, आप भी पढें। कर रहा हूँ मैं प्यार उससे ज़िन्दगी की तरह, अब तो वो भी मिलती है अजनबी की तरह! दूरियां बढ़ गयी उससे काली स्याह रात सी, अब तो दूर चमकती है मेरी चाँदनी की तरह! मैं…

  • गंगा-घाट

    गंगा-घाट

    युगों-युगों से यात्रा मेरी, तेरे साथ-साथ चलती रही। जन्मों-जन्मों से गुजर कर, तुम पर ही तो आ के थमती रही। जिंदगी के एक घाट से, मौत के, दूसरे घाट तक का सफर। युगों-युगों से ना बदला है। ना बदलेगा । जन्मों- जन्मों का यह सफर। देखता हूँ.. तेरे घाट पर, जीवन का अनूठा ही फन।…

  • प्रभू श्रीराम को समर्पित स्तुतियाँ

    प्रभू श्रीराम को समर्पित स्तुतियाँ

    कलमकार रमाकान्त शरण जी ने प्रभू श्री राम की वंदना में एक स्तुति की रचना की है, आप भी पढें और अपनी राय वयक्त करें। १) हे राम  हे रामचन्द्र जानकीवल्लभ हे राघवेंद्र दशरथ कुमार,हे कौशल्यासुत अवधपति सुनले प्रभु तू मेरी पुकार,हूँ नाथ अबोध मैं मूढ़मति कैसे करूँ तुझसे विनती,हे दीनबंधु करुणासागर मिल जाय मुझे…

  • उफ़! जज्बात कहां से लाऊं?

    उफ़! जज्बात कहां से लाऊं?

    कई सवालों के जवाब नहीं मिल पाते हैं, उन्हें भावनाओं के माध्यम से ही समझना पड़ता है। कलमकार पूजा खत्री की चंद पंक्तियाँ पढें जो इसी मुद्दे को संबोधित कर रहीं हैं। उफ़ दर्द न हो सीने मे ऐसे जज्बात कहां से लाऊं टूटे दिल ओर हंसते चेहरे वो हंसी वी खयाल कहां से लाऊं…

  • आत्ममंथन

    आत्ममंथन

    ये कैसी आहट है? क्या सिर्फ़ हवा का झोंका हैं जिसने कर दिया अभिभूत सभी को आज एहसास हो गया कि गुदरत के आगे किसी की नहीं चलती हैं। कभी इस दुनियां को अलग-थलग सपनों का महल बनाते देखी थी! वह सिर्फ़ ख़्वाब था या हकीकत थी। हम पहले भी जीरो थे अभी भी है…

  • भौतिकता की चाह में

    भौतिकता की चाह में

    भौतिकता की चाह में हम सब बसुधा को भी भूल गये , चन्द्र खोज के बल पर मन में दंभ ग्रसित हो फूल गये । सागर पाटे, जंगल काटे और फिर मांसाहार किया जो देते थे जीवन हमको , उन संग दुर्व्यवहार किया। तब हो कुपित प्रकृति ने ये कोरोना ईजाद किया, मानव को शिक्षा…

  • कोरोना और लाॅकडाऊन

    कोरोना और लाॅकडाऊन

    ख़ाली, सुनसान, विरान सा हो गया है आजकल मेरा टाउन लगता! है वक्त की मार ने मानव को करा दिया हैै लाॅकडाउन। परिवार का मोह छीन ले गया है आज का स्मार्टफोन कोरोना वायरस से कैसे बचें हर फोन में है बचाव की रिंगटोन। करना नहीं कभी अपने हौसले डाऊन सूर्य उदित ज़रूर होगा करके…

  • हे राम! प्रभु तुम आ जाओ ना

    हे राम! प्रभु तुम आ जाओ ना

    हे राम प्रभु तुम आ जाओ नाबड़ा दर्दनाक है मंज़रइन्सानियत घूम रही ले खंजरहे राम प्रभु तुम आ जाओ ना चहुंओर ओर छाई है विरक्ति सब कहते हैं मेरा धर्म मेरा जहांनपर कोई ना कहता मेरा आर्यावर्त महाननिशब्द सी है वेदना ना है कोई उक्ति हे राम प्रभु तुम आ जाओ नाराम राज्य तुम ला…

  • खुद को लॉकडाउन रखना है

    खुद को लॉकडाउन रखना है

    कुदरत ने आज आईना दिखाया है। संभाल के रख इंसान अपने कदम, पर्वत के जैसे ठहरी है जिंदगी, चट्टानों सी स्थिर है जिंदगी। यह अजीब सा सन्नाटा चहू ओर छाया है। कुदरत ने आज आईना दिखाया है| हमारी संस्कृति को आज फिर से हमने अपनाया है। सारी आदतों को हम ने दोहराया है। बाहर से…

  • पिंजरे में बंद मानव

    पिंजरे में बंद मानव

    क्यों अच्छा लग रहा है न? अब पंछियों की तरह कैद होकर तुम ही तो कहते थे न, सब कुछ तो दे रहे हैं हम दाना-पानी इतना अच्छा पिंजरा तो अब क्यों ? खुद ही तड़प रहे हो उसी पिंजरे में बैठकर। क्यों बंधे हुए हाथ-पांव अच्छे नहीं लग रहें तुम्हें? मगर तुमने भी तो…

  • सफ़ेद कोट व ख़ाकी वर्दी

    सफ़ेद कोट व ख़ाकी वर्दी

    मानवता की सेवा में इन्होंने, अपने दिन रात लगाए हैं! अपने घर की फ़िक्र छोड़कर, यहां लाखों घर बचाएं हैं! सफ़ेद कोट व ख़ाकी वर्दी पहन, फ़र्ज़ अपने निभाए हैं! ज़रूरी चीजें, मास्क के संग सैनिटाइजर भी बंटवाए हैं! मौसमी आफ़त के झोंकों ने, न इनके हौंसले डिगाए हैं! हमें अपनों संग रखा, पर ख़ुद…

  • धरती माता

    धरती माता

    कलमकार सुनील कुमार धरती माता को अपनी यह कविता समर्पित करते हैं। हम सभी उनकी ही संतानें हैं और माता आदर व सम्मान हमारा कर्तव्य है। धरती है हम सब की माता हम इसकी संतान हैं धरती से है अन्न-जल-जीवन धरती से ही सकल जहान है। कहीं नदी कहीं है झरना कहीं पर्वत-वृक्ष विशाल हैं…

  • बिकने वाला प्यार

    बिकने वाला प्यार

    इस जमाने में हर चीज़ का सौदा होता है। यहाँ तो स्वार्थवश प्यार भी बिकने लगा है। प्यार तो तो एक भावना है जिसे लोग चीज़ समझ सौदा करने की गलती करते हैं। कलमकार मोनिका शर्मा “मन” की इन पंक्तियों में इसकी चर्चा हुई है। बिकता है प्यार सस्ती दुकानों पर खरीदने को हर कोई…

  • जंग हमारा देश जीतेगा

    जंग हमारा देश जीतेगा

    जीतेगा जीतेगा ऐ कोरोना से जंग हमारा देश जीतेगा, हारेगा कोरोना जंग हरेगा और हमारा देश छोड़कर भागेगा! देश की रक्षा करने के लिए देश के लाल पथ पर खड़े है, अपने घर और परिवार को छोड़कर अपने कर्तब्यों पर अड़े है! सत्ययुग में राक्षसो से रक्षा करने के लिए, भगवान विष्णु ने रामा अवतार…

  • मनोस्थिति

    मनोस्थिति

    आज मनोस्थिति ऐसी है कि करे तो क्या करें कुछ सूझता नहीं समय कटता नहीं पर/कुछ तो करना ही होगा और करना ही पड़ेगा वो तो ये है कि हम सबको सहना ही पड़ेगा तब कहीं जाकर हम इस मनोस्थिति से बाहर निकल सकते हैं। ~ मनोज बाथरे

  • ईरफान खान

    ईरफान खान

    ईरफान खान गुणों की खान नेक इंसान अभिनेता महान विश्व मे उनकी थी पहचान हालीवुड मे उनको मिला सम्मान फिल्मों और रंगमंच के सशक्त कलाकार कला पारखी और उत्तम आचार मानवता से भरपूर वयवहार सहयोगी कलाकारों मे बांटा प्यार कला को दिए नए आयाम इस क्षेत्र में कमाया नाम साधारण रंगरूप अभिनय मे असीम योगदान…

  • कोरोना- लॉक डाउन का प्रभाव

    कोरोना- लॉक डाउन का प्रभाव

    आज प्रभात पत्नी बोली एक बात हे आर्यपुत्र, कुल भूषण मेरी माँग के आभूषण लॉक डाउन का प्रभाव मन्द हो गया है, मास्क पहनकर जाने का प्रबंध हो गया है। रसोई में रखे आटा दाल मसाले सब के सब हो गए हैं खाली, आज पड़ोसन के घर से भरवाई थी शक्कर की एक छोटी प्याली।…

  • भारत को बचाना है

    भारत को बचाना है

    आओ मिल को बचाना है घर पर रहना कहीं न जाना है व्यर्थ ना इसमें समय गवाना है हाथ पे हाथ रख न बैठना है। हमको भारत को बचाना है कुछ सोच कर हल सुझाना है जो हैं सक्षम उनको आगे आना है सब मिल जुल कर हाथ बढ़ाना है सही सूचना सर्वत्र हमें फैलाना…

  • इरफ़ान सर! क्यों चले गए?

    इरफ़ान सर! क्यों चले गए?

    हे पान सिंह तोमर! वर्सेटाइल एक्टर इरफ़ान सर!! तेरे अचानक जाने से स्तब्ध हो गया है जगत अश्रुपूरित हो गया है जगत क्यों चले गए सर आप क्यों छोड़ गए सर आप वालीवुड को व हम सभी साधारण भारतीय को आप तो वश्विक जगत में अभिनय के प्रतिनिधि थे आप तो बेमिसाल थे अभिनय के…

  • मैं और मेरा गाँव

    मैं और मेरा गाँव

    कविता का कवि लॉकडाउन में दिल्ली में है और वह उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में स्थित अपने गाँव को याद कर रहा है जाने की सोचता हूंँ जहाँ, रहते हैं मेरे लोग वहाँ, खेतों की हरियाली देखि, पानी के तालाब यहाँ, गाय माता के सब छूते पांव, वही तो है मेरा गांव। अजब गजब…