अघोषित युद्ध
यह कविता उन योद्धओं को समर्पित है जो अघोषित युद्ध लड रहे हैं और कोरोना को मिटाने हेतु कृतसंकल्प हैं। पूरा देश लड़़ रहा कोरोना से अघोषित युद्ध देशवासियों मे जोश हैं लडने की भावना है शुद्ध सारे नागरिक एकजुट…
यह कविता उन योद्धओं को समर्पित है जो अघोषित युद्ध लड रहे हैं और कोरोना को मिटाने हेतु कृतसंकल्प हैं। पूरा देश लड़़ रहा कोरोना से अघोषित युद्ध देशवासियों मे जोश हैं लडने की भावना है शुद्ध सारे नागरिक एकजुट…
मुझे मेरे हिन्दू होने पर नाज है तुझे तेरे मुस्लिम होने पर नाज है लेकिन राम मेरा भी मुझसे नाराज है और खुदा तेरा भी तुझसे नाराज है पाप मैंने भी किए होंगे कभी गुनाह तूने भी किए हों शायद…
कोरोना के इस समय में आओ अपना कर्तव्य निभाएं, कुछ खुद समझ करें और कुछ औरों को भी समझाएं। न निकलें स्वयं वेबजह न किसी ओर को भी बुलाएं, कभी निकले बहुत जरूरी तो याद रहे सामाजिक दूरी सदा बनाएं।…
कलमकार दीपिका राज बंजारा ने इस कविता के माध्यम से एक फिक्र जताई है और कई सवाल पूछे हैं जिसका उत्तर हर लड़की जानना चाहेगी। हम सभी को यह समाज विश्वसनीय बनाना चाहिए जहाँ किसी को कोई आशंका व भय…
कलमकार खेम चन्द कभी भी हार न मानने की राय अपनी कविता के जरिए देना चाहते हैं। कठिनाई तो क्षणभर के लिए आती है, बेहद डरावनी होती है किंतु हमारे धैर्य से वह खुद डर जाती है। मुसीबत में कभी…
जीवन की,हकीकत से,अनजान। अपनी लय में,अपनी ताल में,हर बात से अनजान।वो नाचती थीसोचती थीनाचना ही जिंदगी है।गीत-लय-ताल ही बंदगी है।नाचना ही जिंदगी है।नहीं शायदनाचना ही जिंदगी नहीं है।इंसान हालात से नाच सकता है।मजबूरियों की,लंबी कतार पे नाच सकता है।लेकिन अपने…
कोरोना से जीतने के लिए शीला झाला 'अविशा' का संदेश इस कविता में पढ़ें। हंस रही थी जिंदगी आंगन और गलियों में खिल रहे थे फूल नवयौवन से बगिया की कलियों मे आ गया पिशाच अकस्मात जिसका नाम था कोरोना…
अंजलि जैन "शैली" की यह रचना पढिए जो बताती है कि कर्मशील रहने वाले लोग सारी बाधाओं को दूर करते हुए सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। जहाँ चाह है वहीं राह होती है, कर्मवीर संसाधनों की कमी होने के…
कलमकार विजय कनौजिया अपनी इस कविता में हँसने, मनाने, रिझाने कि बात लिख रहें हैं। कभी कभी हम उदास होते हैं तो ऐसा लगता है कि यह आलम समाप्त ही न होगा पर ऐसा नहीं होता है और कुछ पल…
हमारा मन कभी-कभी थक हारकर कई बातें सोचने लगता है। कलमकार हिमांशु बड़ोनी उन बातों और मन के सवालों का जिक्र इस कविता में किया है। वे लिखते हैं कि एसी परिस्थितियों में क्या करूंगा मैं? क्या करूंगा मैं?इस स्वार्थी समाज…
हर सुबह बहुत ही खूबसूरत होती है, यह सभी के भीतर एक नई स्फूर्ति और ऊर्जा भर देता है। सुबह हमारे कार्यों को बेहतर बना देती है। कलमकार संजय वर्मा इसी सुबह इन पंक्तियों में रेखांकित की है। सुप्रभात अलविदा करता…
कलमकार शोएब अंसारी कई सवालों के जवाब जानना चाहते हैं, जिसका जवाब तो ईश्वर ही दे सकतें हैं। होनेवाले नुकसान के कारणों को इस कविता में पूछा गया है। बिना मौसम के ये बरसात ज़रूरी थी क्या? फसले देहकां को…
सैनिक अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है। एक बुलावे पर वह सरहद पर मुक़ाबले के लिए तैनात हो जाता है। वह अपने परिजनों से क्या क्या उम्मीद रखता यह कलमकार संतोष अपनी कविता में बता रहें…
दुनिया लूट रही कृषकों को अब और ना लूटो आप प्रभु देश ये चलता कृषियों से है अब रुक जाओ हे इन्द्र प्रभु। फसल कट रही खेतों में है हर अन्न में बसती जान प्रभु अभी ना बरसों गर्जन करके…
हम अपने रास्ते खुद ही चुनते हैं जिसपर चलते चलते कभी कभी अपनी मंजिल पा जाते हैं तो कभी बड़ी उलझनों में घिर जाते हैं। कलमकर मुकेश बिस्सा इन राहों के बारे में अपनी कविता में भी बता रहें हैं।…
यह कविता उस वर्ग को समर्पित है जो संकट की घडी मे.अपनी जान जोखिम मे डाल कर मानव को जीवनदान प्रदान करते हैं और समाज मे निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं मेरा आशय चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों से…
शराब ने न जाने कितने घर बर्बाद किए हैं, इससे दूरी रखने में ही भलाई है। कलमकार विकास बागी इस कविता में एक महिला की दास्तान बता रहे हैं। मेरा पति शराब पीता था कोई गम न था, वो रोज…
संघर्षों में जीना, मुश्किलों से लड़ना निराशा का आशा में बदलना पतझड़ में वसंत मनाना कोरोना ने सिखाया है। घरों में रहना, अपनों संग जीना बड़ो से सीखना, छोटों को सिखाना दुखों को बाँटना खुशियों को फैलाना कोरोना ने सिखाया…
ये कैसा वक़्त आया है कोरोना संग लाया है, मना सड़को पर जाना है बना घर कैदखाना है,अजब अदृश्य दुश्मन है इसे मिलकर हराना है, रखकर हौसला हिम्मत हमें जंग जीत जाना है, सुरक्षित स्वमं को रखकर हमें सबको बचाना…
चीत्कार व सिसकियों के बीच में कुछेक किलकारियां भी सुनाई दे रही है जिन्हे पता ही नहीं है कि आधुनकि दुनिया में कोरोना वायरस तो प्राणों को लील ही रही है लेकिन कितने अपने भी है, जो सांप बिच्छू बनकर…