Category: कविताएं
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सपनो का संसार
खुले गॉव को छोड करआया था शहर, करने व्यापारतंग गलियो मे सिमट गया, सपनो का संसार काम-धन्धा सब चौपट हुआछुट गया घर बार जब से फैला है महामारी का प्रसार रातो मे अब नीद ना आती गॉव कि चिन्ता मूझे सताती कैसे होगें मॉ बाप अब आस लगा रखी है सरकार से मदद मिल जाये…
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क्या कहलाते हैं
हर रिश्ते को कोई न कोई नाम दिया गया है किंतु कई रिश्ते ऐसे हैं जिनका कोई नाम नहीं है लेकिन वे बहुत खास होते हैं। कलमकार सुनील कुमार की यह रचना पढें। कुछ रिश्ते जो खून के रिश्तों से भी बढ़कर नजर आते हैं एहसास अपनेपन का कराते हैं बताओ वो रिश्ते क्या कहलाते…
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हर जगह है हिन्दी
हिंदी भाषा विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती है, और गर्व की बात है हम भी इससे एक सूत्र में बंधे हुए हैं। हिंदी भाषा का प्रसार हर जगह हो रहा है। हम सभी को अपनी बोली भाषा का सम्मान करना चाहिए। अन्य भाषाएँ सिखनी चाहिए लेकिन उनकी नकल करना ठीक नहीं है। आइए…
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खामोशी की चादर में लिपटा शहर
कलमकार महेश राठोर शहर के हालात का जिक्र कर रहे हैं, उन्होंने अपना अनुभव इस कविता में साझा किया है। इंसानो तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हरखामोशी की चादर में लिपटा है सारा शहर,सुनसान सी हर गली सुनसान सा हर चौराहा। अकेले अकेले खाली-खाली जलती दोपहरइंसानों तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हर,खामोशी की…
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पृथ्वी के घाव भर रहे हैं
पृथ्वी के घाव भर रहे हैंजी हाँसही सुना, आपनेपृथ्वी के घाव भर रहे हैंहाँ, वही घावजो उसे मनुष्य ने दिए थेअपनी अनगिनत महत्वाकांक्षाओं की तृप्ति के लिएअपनी अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिएअपने निर्मम स्वार्थ की सिद्धि के लिएअपनी बेशर्म लिप्साओं के वशीभूत होकरआज जब मानव घरों में कैद हैदर्द से कराह रहा हैऔर उसके…
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सब कुछ एक व्यापार है
सब कुछ एक व्यापार हैं सौदे को तैयार सब के बीच दलाल है क्रय विक्रय को तैयार सत्य बलि चढ़ जाता है असत्य खिलखिलाता है बातों में उलझाता है आगे बढ़ जाता है इस मंडी में भगवान बेचे जाते हैं रूप अलग-अलग मगर बिक जाते हैं इंसान भी बिकने को है तैयार बस एक बोली…
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काश! मानव समझ सकते
आज सारा देश, कोरोना के कारण है, ख़ामोश। सहम सा गया है, प्रत्येक मानव का दिल वजह सिर्फ मानव और मानव की अभिलाषा। कभी वृक्षों को काट बनाते है, होटल, मकान, फैक्टरी तो कभी मासूम पशु-पक्षी को मार कर खाते है, चाव से। हजारों अनगिनत कार्य है ऐसे जो है प्रकृति के विपरीत, पर मानव…
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जीने की चाहत
तुम्हारी जीने की चाहत देखकर अच्छा लगा, तुम्हरा घर में यू डर कर कैद हो जाना अच्छा लगा, खुद को खुदा समझने वाले मौत की आहट सुनकर ही डर गए, तुम्हारा खुद को मर्द कहने पर थोड़ा भद्दा लगा, इंसानियत भी तुम में कहा जिंदा है अब जो तुम इंसान हो, मगर उनका दूसरो के…
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भारत जाग… चीनी वस्तु परित्याग
अब वक्त की है यही पुकार, भारत जाग, भारत जाग। लोभ लिप्सा में आकर जिसने विश्व को कर दिया बीमार। जिसकी धन लिप्सा ने इतने जख्म दिये धरती पर यार। जो कर रहा मानव जीवन का सौदा और अपना बढ़ाये व्यापार। बूढ़े मरते, बच्चे मरते, तड़प रहा है सारा जहान। अब यह समय आ गया…
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विद्यार्थी का जीवन
कलमकार शिवम तिवारी प्रतापगढ़ी विद्यार्थी जीवन पर कुछ पंक्तियाँ लिखकर प्रस्तुत की हैं। उन्होंने अपना अनुभव साझा किया है इस कविता में, आप भी पढें। जिंदगी की किताब, कब पलट गई, पता ही नहीं चला। कब सपनों के लिए, अपना घर छोड़ दिया पता ही नहीं चला।। गांव से चला था, कब शहर आ गया…
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वो भी दिन थे
वो भी दिन थेक्या फिर से वो दिन आएगेंन हम यूँ ही घरों में रह जाएंगे।। वो भी दिन थेक्या फिर से वो दिन आएँगेअपनो से कभी हाथों में हाथ,कंधा में कंधा मिला के चल पाएँगे।। वो भी दिन थेक्या फिर से वो दिन आएंगेरोजाना जैसे जीते थेजिंदिगी वैसे फिर से जी पाएँगे।। वो भी…
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ये सिरफिरे
कोरोना रक्षक के हौसलों को तोड़ते ये सिरफिरे।देश के लिए नासूर बनते जाते ये सिरफिरे,इनकी कोई जाति नहीं, इनका कोई धर्म नहीं,जाति धर्म के नाम पर धब्बा लगाते ये सिरफिरे।दवा इलाज का बचाव का ईनाम ईट पत्थरों से देते ये सिरफिरे।किसी देश के नाम पर बदनुमा दाग है ये सिरफिरे।इन्हें तहज़ीब, शिक्षा, धर्म की कोई…
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रूहों के ज़ालिम तुझे हुआ क्या है?
आज महामारी के दौरान जबकि सभी नागरिक अपने घरों में क़ैद है और कुछ ना कुछ सुकून से है और जी रहे है और वही दूसरी तरफ देश की पुलिस,डॉक्टर,समाज सेवी आदि सुधि जन अनवरत सेवा भाव में लगकर कितनों की ज़िन्दगी बचा रहे है और अपने ही परिवार से विमुख होकर अपनी ज़िंदगी को…
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कोरोना के बाद
कोरोना काल के बादऐसा कुछ हो जाएगा।आपस मे एक दूजे सेमिलने से कतराएंगे।सामाजिक कार्यक्रम भीअब बन्द हो जाएंगे।गली मोहल्ले बाजारों मेंअब भीड़ न हो पाएगी।होली दीवाली ईद सारेघर बैठ के ही मनाएंगे।ज़िन्दगी है जनाबछोड़ कर चली जायेगी ।मेज़ पर होगी तस्वीर कुर्सी खाली रह जायेगी ।हर इंसान पट्टी मुंह बांधडाकू सा नजर आएगा।सर्दी जुकाम बुखार…
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दो गज की दूरी
बात है जरूरी बताना भी है जरूरीबना लो दो गज की दूरीरिस्ते है जरूरी मत बढाओ मन कि दूरी बना लो दो गज की दूरीडकोई बात हो मजबूरीनही जाना है जरूरीये जहान भी जरूरी ये जान भी जरूरी बना लो दो गज की दूरीअफवाहो को मत फैलाओ तुमबिना वजह बाहर मत जाओ तुमसमाजिक दूरी भी…
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कोरोना रूपी राक्षस
हवाओ में भी विष घुल गया।संकटो में भी देश पहुंच गया।कोरोना रूपी राक्षस भी।मानव जाति का भक्षक बन गया। पाश्चात्य सभ्यता को अपनाओ।हाथ मुंह धोकर घर के अंदर आओ।सोशल डिस्टेनशिंग रूपी राम बाण चलाकर।कोरोना राक्षस को तुम मार भगाओ। कोरोना राक्षस को तुम मार भगाओ।घर में तुम थम जाओ।परिवारों के साथ तुम समय बिताओ।कोरोना पर…
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जिंदगी की चाल
कलमकार अजय प्रताप तिवारी “चंचल” की एक कविता पढ़िए जिसमें वे जीवन की रफ्तार को संबोधित करते हैं। समय के साथ-साथ जिंदगी भी बहुत तेजी से भागती है और इस दौरान हम अनेक चीजों को पूरा करना भूल जाते हैं। जिंदगी आहिस्ता चल लंबी दूरियां तय करनी है सिर पर बालों से ज्यादा कर्ज भारी…
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इं० हिमांशु बडोनी (शानू), पौड़ी गढ़वाल
नाम: इं० हिमांशु बडोनी (शानू) जन्म तारीख़: 25 जून 1994 जन्मभूमि: पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड कर्मभूमि: पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड शिक्षा सिविल अभियांत्रिकी में तीन वर्षीय नियमित डिप्लोमा। सिविल व पर्यावरण अभियांत्रिकी में चार वर्षीय पत्राचार बी०टेक० डिग्री। कला स्नातक – व्यक्तिगत (बी०ए०: अंग्रेज़ी, हिन्दी, समाजशास्त्र) कला स्नातकोत्तर – व्यक्तिगत (एम०ए०: अंग्रेज़ी) शौक़ विभिन्न मुद्दों पर गहन…
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दिनकर
साहित्य जगत के “अनल” कवि का,अधैर्य जब चक्रवात पाता है ।तब “दिनकर “भी “दिनकर” से,दीप्तिमान हो जाता है । “ओज” कवि “रश्मिरथी “पर,जब-जब हुंकार लगाता है।“आत्मा की आंखें “कैसे ना खुलेगी।पत्थर भी पानी हो जाता है। साहित्य जगत के “अनल” कवि का… “भारतीय संस्कृति के चार अध्याय” रच कर,भारत का विश्व में नाम किया।“कुरुक्षेत्र “रच…