आदमी
अपने ही बनाए जाल में, फँस रहा है आदमी। अपनों को ही नाग बनकर, डस रहा है आदमी। प्रकृति को हानि पहुँचाकर भूल रहा है मतवाला, अपनी ही सांसों पे शिकंजा कस रहा है आदमी। भौतिक सुख के पीछे ही…
खुले गॉव को छोड करआया था शहर, करने व्यापारतंग गलियो मे सिमट गया, सपनो का संसारकाम-धन्धा सब चौपट हुआछुट गया घर बार जब से फैला है महामारी का प्रसाररातो मे अब नीद ना आती गॉव कि चिन्ता मूझे सताती कैसे…
हर रिश्ते को कोई न कोई नाम दिया गया है किंतु कई रिश्ते ऐसे हैं जिनका कोई नाम नहीं है लेकिन वे बहुत खास होते हैं। कलमकार सुनील कुमार की यह रचना पढें। कुछ रिश्ते जो खून के रिश्तों से…
हिंदी भाषा विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती है, और गर्व की बात है हम भी इससे एक सूत्र में बंधे हुए हैं। हिंदी भाषा का प्रसार हर जगह हो रहा है। हम सभी को अपनी बोली भाषा का…
कलमकार महेश राठोर शहर के हालात का जिक्र कर रहे हैं, उन्होंने अपना अनुभव इस कविता में साझा किया है। इंसानो तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हरखामोशी की चादर में लिपटा है सारा शहर,सुनसान सी हर गली सुनसान सा…
पृथ्वी के घाव भर रहे हैंजी हाँसही सुना, आपनेपृथ्वी के घाव भर रहे हैंहाँ, वही घावजो उसे मनुष्य ने दिए थेअपनी अनगिनत महत्वाकांक्षाओं की तृप्ति के लिएअपनी अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिएअपने निर्मम स्वार्थ की सिद्धि के लिएअपनी बेशर्म…
सब कुछ एक व्यापार हैं सौदे को तैयार सब के बीच दलाल है क्रय विक्रय को तैयार सत्य बलि चढ़ जाता है असत्य खिलखिलाता है बातों में उलझाता है आगे बढ़ जाता है इस मंडी में भगवान बेचे जाते हैं…
आज सारा देश, कोरोना के कारण है, ख़ामोश। सहम सा गया है, प्रत्येक मानव का दिल वजह सिर्फ मानव और मानव की अभिलाषा। कभी वृक्षों को काट बनाते है, होटल, मकान, फैक्टरी तो कभी मासूम पशु-पक्षी को मार कर खाते…
तुम्हारी जीने की चाहत देखकर अच्छा लगा, तुम्हरा घर में यू डर कर कैद हो जाना अच्छा लगा, खुद को खुदा समझने वाले मौत की आहट सुनकर ही डर गए, तुम्हारा खुद को मर्द कहने पर थोड़ा भद्दा लगा, इंसानियत…
अब वक्त की है यही पुकार, भारत जाग, भारत जाग। लोभ लिप्सा में आकर जिसने विश्व को कर दिया बीमार। जिसकी धन लिप्सा ने इतने जख्म दिये धरती पर यार। जो कर रहा मानव जीवन का सौदा और अपना बढ़ाये…
कलमकार शिवम तिवारी प्रतापगढ़ी विद्यार्थी जीवन पर कुछ पंक्तियाँ लिखकर प्रस्तुत की हैं। उन्होंने अपना अनुभव साझा किया है इस कविता में, आप भी पढें। जिंदगी की किताब, कब पलट गई, पता ही नहीं चला। कब सपनों के लिए, अपना…
वो भी दिन थेक्या फिर से वो दिन आएगेंन हम यूँ ही घरों में रह जाएंगे।। वो भी दिन थेक्या फिर से वो दिन आएँगेअपनो से कभी हाथों में हाथ,कंधा में कंधा मिला के चल पाएँगे।। वो भी दिन थेक्या…
कोरोना रक्षक के हौसलों को तोड़ते ये सिरफिरे।देश के लिए नासूर बनते जाते ये सिरफिरे,इनकी कोई जाति नहीं, इनका कोई धर्म नहीं,जाति धर्म के नाम पर धब्बा लगाते ये सिरफिरे।दवा इलाज का बचाव का ईनाम ईट पत्थरों से देते ये…
आज महामारी के दौरान जबकि सभी नागरिक अपने घरों में क़ैद है और कुछ ना कुछ सुकून से है और जी रहे है और वही दूसरी तरफ देश की पुलिस,डॉक्टर,समाज सेवी आदि सुधि जन अनवरत सेवा भाव में लगकर कितनों…
कोरोना काल के बादऐसा कुछ हो जाएगा।आपस मे एक दूजे सेमिलने से कतराएंगे।सामाजिक कार्यक्रम भीअब बन्द हो जाएंगे।गली मोहल्ले बाजारों मेंअब भीड़ न हो पाएगी।होली दीवाली ईद सारेघर बैठ के ही मनाएंगे।ज़िन्दगी है जनाबछोड़ कर चली जायेगी ।मेज़ पर होगी…
बात है जरूरी बताना भी है जरूरीबना लो दो गज की दूरीरिस्ते है जरूरी मत बढाओ मन कि दूरीबना लो दो गज की दूरीडकोई बात हो मजबूरीनही जाना है जरूरीये जहान भी जरूरी ये जान भी जरूरीबना लो दो गज…
हवाओ में भी विष घुल गया।संकटो में भी देश पहुंच गया।कोरोना रूपी राक्षस भी।मानव जाति का भक्षक बन गया।पाश्चात्य सभ्यता को अपनाओ।हाथ मुंह धोकर घर के अंदर आओ।सोशल डिस्टेनशिंग रूपी राम बाण चलाकर।कोरोना राक्षस को तुम मार भगाओ।कोरोना राक्षस को…
कलमकार अजय प्रताप तिवारी "चंचल" की एक कविता पढ़िए जिसमें वे जीवन की रफ्तार को संबोधित करते हैं। समय के साथ-साथ जिंदगी भी बहुत तेजी से भागती है और इस दौरान हम अनेक चीजों को पूरा करना भूल जाते हैं।…
मेरी काव्य लेखन के प्रति रुचि मुख्यतः कक्षा-११ (वर्ष: २०११) में जाग्रत हुई, जिसके परिणास्वरूप मैंने तब से लेकर अब तक अनुमानित १००+ स्वरचित रचनाएं कलमबद्ध कर ली हैं। मैंने विभिन्न समकालीन विषय वस्तुओं को आधार बनाते हुए अपनी समस्त…
साहित्य जगत के "अनल" कवि का,अधैर्य जब चक्रवात पाता है ।तब "दिनकर "भी "दिनकर" से,दीप्तिमान हो जाता है । "ओज" कवि "रश्मिरथी "पर,जब-जब हुंकार लगाता है।"आत्मा की आंखें "कैसे ना खुलेगी।पत्थर भी पानी हो जाता है। साहित्य जगत के "अनल"…