Category: कविताएं

  • अभी वक्त है

    अभी वक्त है

    अभी वक्त है हमलोगों को सम्भल जाना है, घर में ही रहकर कोरोना को हराना है अपने देश से भगाना है! इस माहौल में घर से कहीं बाहर न जाना है हमलोगों को लोक-डाउन का पालन करना है, घर में ही सुरक्षित रहना है सोशल-डिस्टेंस बनाए रखना है! अभी वक्त है हमलोगों को सम्भल जाना…

  • लक्ष्मण रेखा नहीं लांघना है

    लक्ष्मण रेखा नहीं लांघना है

    इस महामारी से दुनिया दंग हैमानवता को बचाने का जंग है लॉकडाउन में नहीं घूमना है कोरोना के कड़ी को तोड़ना है लक्ष्मण रेखा नहीं पार करना है बाहर रावण रूपी बैठा कोरोना हैपरिवार संग समय बिताना है भूल कर भी बाहर नहीं जाना है सामाजिक दूरीयों से डरेगा कोरोना भीड़ न देखकर निराश होगा…

  • सम्भले रहो

    सम्भले रहो

    एक विपदा आई हैसम्भले रहो, सम्भले रहोबैठ कर देखो तमाशा हो रहा है जो, संसार मेंपर करना कुछ भी नहींयदि, करना है तो बस ये करोकेवल अपनी ‘खटिया’ से चिपके रहो, चिपके रहोहो कर चुपचाप देखोटी. वी. पर सबकी बात देखोसमझो और समझाओअऊर भईया! और कोरोना को दूर भगाओ.. – मोहित पाण्डेय

  • कोरोना आया है लॉकडाउन स्वरूपा

    कोरोना आया है लॉकडाउन स्वरूपा

    ऐ! प्रकृति प्रदत्त चीजो से इंशा, मत करो खिलवाड़ तुमरौद्र सा तेवर जागेगा जब, क्या सह पाओगे दहाड़ तुम? युगों युगों से देती आई जो, जीवनदायिनी सतरंग भी“मां” बन पोशी अपने अंचल में, सदा निभाई संग भी सुख सागर सा प्राण दिया है, अनंतमय हरियाली भीक्रिसमस होली राखी संग दिया, ईद और दिवाली भी वक्त…

  • तो क्या

    तो क्या

    माना विद्यालय बंद हैतो क्या अध्ययन, अध्यापन सब बंद रहेगा?माना सड़क पर नहीं जाना हैतो क्या हम ऐसे ही घूमते रहेगे?माना कि कुछ राष्ट्र द्रोही पत्थर फेंक रहे हैंतो क्या हम राष्ट्र धर्म छोड़ देगें?माना कि आवागमन बंद हैतो क्या पैदल भूखे प्यासे चल देना ठीक है?माना कि विश्व विपदा बहुत ही बड़ी हैतो क्या…

  • प्रेम भाव ही करुण वेदना

    प्रेम भाव ही करुण वेदना

    साक्षी सांकृत्यायन की यह रचना मन की वेदना वयक्त करती है। वह वेदना जिसे हम सभी किसी अन्य से साझा करना चाहते हैं और उससे कभी प्यार का एहसास होता है तो कभी पीड़ा। अब नहीं चाहता कोई सुनना, मन के पीर की आज वेदना कहीं खो जाऊँ अपनी संवेदना, प्रेम भाव ही करुण वेदना।…

  • कलयुग मे बिखरता परिवार

    कलयुग मे बिखरता परिवार

    इंसान वक्त के साथ खुद को ढाल लेता है किंतु सद्बुद्धि बनी रहे यह नहीं कहा जा सकता है। कलमकार दीपिका राज बंजारा ने अपनी इस कविता में कलयुग में बिखरते परिवार की चर्चा की है। साल बदला पर क्यों कोई बदलाव नहीं दिखता हैं, अपनों के बीच अब क्यों वो अपनापन नहीं दिखता हैं।आज…

  • इश्क़ करना किताबों से

    इश्क़ करना किताबों से

    तुम इश्क़ करना और जरूर करना पर किताबों से। इंसान से किये तो बर्बाद हो जाओगे। किताब से किये तो आबाद हो जाओगे। दिल ऐसे टूटेगा वीराना भी ना रहने देगा। खुद खुदा हो जाएगा, तुझे इंसान भी ना रहने देगा तुम इश्क़ करना और जरूर करना पर किताबों से। बस अपना कर्तव्य करो और…

  • किताबें

    किताबें

    किताबें, वो सच है जो हमें केवल, शिक्षित नहीं करती जीवन जीने का, सलीका बताती है किताबों का हर एक, पन्ना जीवन का सार, देती है। किताबें! हर उस सच से हमें वाकिफ़, करवाती है जिसके विषय में, जानने की हममें, ललक है किताबें ही, वो ज़रिया है जो, हमें जीवन के इतिहास, भूगोल, गणित,…

  • जी लूँगा

    जी लूँगा

    कलमकार अभिषेक की एक रचना पढें जो लिखते हैं कि चाहे जैसी परिस्थिति आ जाए, मैं उनका सामना कर जी लूँगा। तुम साथ न भी दो तो भी जी लूँगा। आज लग रहा जैसे तुम नहीं हो,हाँ सही सुना।अपनी यादों में ढूंढ रहा हूँ… मिल नहीं रही हो। जिसे हर पल याद करता था, आज…

  • विश्व पुस्तक दिवस

    विश्व पुस्तक दिवस

    आज विश्व पुस्तक दिवस है, इसकी महत्ता सनातन युगों से चली आ रही है. आज भी प्रासंगिक है और अनंत युगों तक प्रासंगिक रहेगी. पुस्तके ज्ञान पुंज है, ये जहाँ रहेगी, स्वत: ही स्वर्ग वह स्थान बन जाएगा. पुस्तकों में युगों युगों की ज्ञान राशि संचित पड़ी है, तभी तो वेदों में कहा है. आ…

  • ज्ञान की भंडार हैं किताबें

    ज्ञान की भंडार हैं किताबें

    सभी प्रश्नों के उत्तर मिलते पढ़कर सबके चेहरे खिलते हर कोई ही मग्न है इसमें ज्ञान की है भण्डार किताबें। बचपन में कविता है भाती बहुत सी ऐसी कहांनी आती बच्चों को इक सीख है देती रंग भरी सारी वो किताबें। गणित से लेकर हिंदी पढ़ते इन्हीं से हमें भौतिकी आती रासायन मन को है…

  • अन्नदाता

    अन्नदाता

    किसान हम सभी के अन्नदाता होते हैं, उन्हीं की मेहनत से अनाज हम तक भी पहुँचता है। सबके पेट के लिए अन्न उगानेवाले किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय है। कलमकार अतुल मौर्य ने अपनी कविता में किसान की व्यथा व्यक्त की है। निवाला, अमीरों की थाली का बन, है अन्न वह, कृषक के, खून-पसीने से…

  • पढ़ना सीखें

    पढ़ना सीखें

    घर पर बैठे बैठे सुस्ताओ नहीं, पास आओ मेरे घबराओ नहीं! चलो आज कुछ नया करें हम, किताबों से भला क्यों डरें हम! विद्या जगत की रोचक बातें, आओ आज हम गढ़ना सीखें! चलो मित्र आज हम मिलकर, बस खेल खेल में पढ़ना सीखें! हिन्दी अंग्रेज़ी दोनों भाषा ऐसी, दोनों लगे नई कोई पहेली जैसी!…

  • किताबों की दुनिया

    किताबों की दुनिया

    किताबों की दुनिया कितना अच्छा वक्त जब रहता था इंतज़ार एक नई किताब आने का छोड़ के सारे काम किताब नई पढ़नी थी बिना पढ़े न दिन में चैन था न रात में आराम अब तो वो समय ही कहाँ वाचनालय सुना है पुस्तकालय भी सुना है किताबें है बंद अलमारी में लगी है उन…

  • आओ चलें पाठ करें

    आओ चलें पाठ करें

    किताब स्वयं में है संसार आओ चलें पाठ करें किताब नहीं कोई व्यापार, आओ चले पाठ करें किताब की जैसी मां मेरी है जो कहती पल में, सब तेरी है इसमें नदियां है व इसमें झील चलना होता है लंबे मील शाख व पत्ते पेड़ भी रहते भौवरें गुन गुन गीत भी कहते सागर की…

  • मेरी किताबें

    मेरी किताबें

    किताबों पर मैं जाऊं वारी-वारी इसकी पंक्ति-पंक्ति जैसे हो कोई मेरी सवारी जिस पर बैठ मने घूमी दुनिया सारी किताबों ने मेरी जिंदगी संवारी इसके शब्दों की लीला है, न्यारी। इसमें होकर सवार कभी मैं घूमी दुनिया पुरानी तो मने बुद्धा की लुम्बनी जानी चाणक्य की नीति पहचानी एकलव्य की सुनी कहानी किताबों में हैं…

  • नारी की महिमा

    नारी की महिमा

    कलमकार महेन्द्र परिहार “माही” जी नारी शक्ति के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ समर्पित की हैं। महान नारी-शक्तियों को नमन करते हुए आप भी इनकी यह रचना पढें। साहस त्याग बलिदान की मूरत विश्वास प्रेम स्वाभिमान की सूरत तुम हर रंग रूप में ढल जाती दुनियाँ में तुम छा जाती हो। शांति दया सहिष्णुता के भाव…

  • ये किताबें

    ये किताबें

    वर्तमान को, भविष्य को भूत के इतिहास को सजोये हुई है ये किताबें। वतन के परवानों को प्रेम के दीवानों को सजोये हुई है ये किताबें। वेदों को, शास्त्रों को बड़े-बड़े महाकाव्यों को सजोये हुई है ये किताबें। कृष्ण के मीरा को तुलसी के राम को सजोये हुई है ये किताबें। रसो को, अलंकारों को…

  • पावन धरती

    पावन धरती

    हे सुचित, पुलकित, हर्षित, मनभावन व पावन धरती।“मां” तुम ही सबके दु:ख दर्द को समय समय पे हरती।। सबके घर-द्वारे, अन्न-धन के, तुम ही भण्डार हो भरती।कृषक के कर्म की कल्पना को, तुम ही साकार हो करती।। गगन तुमसे, अग्नि तुमसे, है शीत मौसम-पानी तुमसे।तुमसे है अस्तित्व हमारा, है यह बुढ़ापा-जवानी तुमसे।। ऐसी असीम ममता…