Category: कविताएं

  • जगत जननी नारी

    जगत जननी नारी

    कलमकार विमल कुमार वर्मा नारी को जगत जननी के रूप में संबोधित किया और उनकी महानता के कुछ तथ्य इस कविता में रेखांकित किया है। जगत जननी कहलाए नारी, सृष्टि रचियता कहलाए नारी, श्रेष्ठता की खुमार है नारी, ममता की बरसात है नारी। जीवन संगिनी की फुहार दर्शाए जाए नारी, वचन की कर्तव्य ‌निभाया जाए…

  • धरती का श्रंगार है पेड़

    कलमकार डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित जी की सुपुत्री शुभांगी शर्मा ने पृथ्वी दिवस यह कविता लिखी है, आइए इस नन्हें कलमकार की यह रचना पढ़ें। पेड़ धरती का श्रंगार है, पेड़ जीवन का आधार है।सर्दी गर्मी वर्षा सब ऋतुओं में फल फूल देते।। पेड़ बड़े हितकारी, सबके पालनहार है।छाया में मनुज पशु पक्षी, बैठ…

  • आहिस्ता चल जिन्दगी

    आहिस्ता चल जिन्दगी

    जिंदगी! थोड़ा धीमे धीमे चल- यही कहते हैं कलमकार प्रिंस कचेर “साक्ष” इस कविता में। जिंदगी वक्त के साथ सदा चलती रहती है कभी थमती नहीं है। आहिस्ता-आहिस्ता चल जिन्दगी,उम्र कट जायेगी। ये जिन्दगी यादों कि, किताब बन जायेगी॥ तेरे संग बीते पलों, की याद बहुत तड़पाएगी। और फिर यादों के सहारे, हमारी जिन्दगी कट…

  • पृथ्वी का मान बढ़ाते हैं

    पृथ्वी का मान बढ़ाते हैं

    है पृथ्वी जीवन पृथ्वी माताये ही हमारी भाग्य विधाता जन-जीवन शून्य बिन इसकेहै ये ही हमारी जीवन दाता ये है उद्‌गम ये ही अंत हैसारी ऋतुएं सह बसंत है पृथ्वी है अनाज की दातापृथ्वी से ही हम जीवंत हैं ये ही वृक्ष है, ये ही हवा हैइसके बिन बे-असर दवा है पृथ्वी के बिन कोई…

  • पृथ्वी का संतुलन बनाओ

    पृथ्वी का संतुलन बनाओ

    मिलकर इक अभियान चलाएं“पेड़ लगाओ प्रकृति बचाओ”आस-पास हरियाली दिखेकुछ ऐसा वातावरण बनाओ।आने वाले उस कल के लिएजिम्मेदारी अपनी सभी निभाओ।आज पीढ़ी समझो इसकोप्रकृति बचाओ जीवन पाओ।उपहार स्वरूप में वृक्षों को दोप्रदूषित होने से शहर बचाओ।वातावरण को शुद्ध रखना हैहरियाली सब मिल करके बढ़ाओ।अपनों का हो सुनहरा भविष्य“पृथ्वी का संतुलन बनाओ”। ~ साक्षी सांकृत्यायन

  • आओ बच्चों मिलकर

    आओ बच्चों मिलकर

    आओ बच्चों सब मिलकर लगायेंहरे-भरे पेड़-पौधा और उपवनअमर रहे पेड़-पौधा और उपवनप्राणियों के लिए विश्व बने महान। हम सदा यहीं करते रहे पुकारउनसे लोगों को मिलते रहे प्यारउपवन होते हैं माँ-बाप के समानउनका रक्षा करों अब हर इंसान। पेड़-पौधा से मिलते हैं हमें शिक्षाहरपल करते रहेगें हम उनकी रक्षाउपवन हैं धरती का मोती, भूषणसदा जन…

  • धरती करे पुकार

    धरती करे पुकार

    धरती करे पुकारमत करो मानव मेरा संहार,बच्चे के तरह में तुमको पालतीकुछ तो फिक्र करो तुम मेरे हाल की। आधुनिकता की इस होड़ में मत नष्ट करो मेरा श्रृंगार,वनों, पर्वतों, नदियों, सागरों को स्वच्छ रखबहने दो मधुर, सुगंधित बयार। जीव-जंतु सभी को है मैंने दिया अपने पर जीने का अधिकारमत करो तुम उनको मारकर मेरा…

  • प्रकृति का दोहन

    प्रकृति का दोहन

    धरती माता अब करती है करुण पुकार।मतलबी मानव ने इस पर किया अत्याचार।। जिस माँ ने दिये हमें इतने अनमोल उपहार।निज स्वार्थ में उसी पर हमने चलाई कटार।। ईश्वर ने अनुपम कृति मनुज को बनाया।इसी मनुज ने प्रकृति का चीरहरण किया।। इशारों -इशारों में इसने हमें बहुत समझाया।बाढ़ भूकंप महामारी का कहर अति बरपाया।। फिर…

  • धरती है कहती

    धरती है कहती

    धरती अब यूँ है कहतीदुखी हो सब को बतातीदेख लो अन्य ग्रहोँ तुम सब भी कितना स्वार्थी है ये मानवमैंने ही इनको जीवन दियासदियों तक अंगार रहीफिर सदियों बाद जीवन अनुकूल बनी हर तरह से जीने का आधार बनी पर इन्हे नहीं रही कदर मेरी भूल गए ये मेरे उपकारहर तरफ प्रदुषण अपार गढ्ढे करके…

  • पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ

    पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ

    धूल धुँआ कहाँ तक झेलेगा आदमीध्वनि वायु जल प्रदूषित हो रहा है जंगल के पेड़ धीरे धीरे कम हो रहेवन्य जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हैं हरियाली अब दिखती नहीं कहीं भीधरती तवे सी जल रही दिनों दिन है ओजोन परत में छेद हो गया सूरज की किरणें सीधी पड़ रही प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ गया हैजिम्मेदार…

  • धरती

    धरती

    सहनशीलता और धैर्य की विस्तृत है जो मूर्ति।अपने ही अणु-अणु, कण-कण से देती है स्फूर्ति।। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब को एक सा प्यार।काला, गोरा, ऊंच-नीच सबसे सम व्यवहार।। हर पल कितने चोट सहती पर रखती ना कोई बैर।टुकड़ों में बांटी गई पर चाहे सबकी हरपल खैर।। जन्म लेता जब नन्हा बच्चा इस धरती पर।दया,…

  • प्रकृति से खिलवाड़ न कर

    प्रकृति से खिलवाड़ न कर

    प्रकृति से खिलवाड़ न करने की सलाह कलमकार अमित राजपूत अपनी कविता के जरिए दे रहे हैं। आज पृथ्वी दिवस के अवसर पर हमें प्रकृति का साथ देने का संकल्प लेना चाहिए। प्रकृति से खिलवाड़ कर सुंदर वृक्ष और जंगल क्यों काट रहा है!लाखों बीमारियां उत्पन्न होंगी इससे फिर क्यों मौत बांट रहा है! पशु…

  • हम किसान के बेटे हैं

    हम किसान के बेटे हैं

    जहाँ जाति धर्म की क्यारी में, उगती हों मानवता की फ़सलें,जहां झूठ फरेबो से ऊपर, अनुशासन की बेलें निकलें। कुल की मर्यादा की ख़ातिर, चौदह वर्षों तक बनवास सहे,जहां कुल देवों को रिझाने को, दिन-दिन भर उपवास रहें। हम उस भारत के बासी है, जो सरहद पर जान गंवाते है,हम सच्चे और सरस बनकर, इस…

  • पृथ्वी का करो संरक्षण

    पृथ्वी का करो संरक्षण

    जिसे बचाने लिए नारायण वराह अवतार। उसी धरा को कर रहे क्षत-विक्षत चहुंओर।। अनंतानंत ब्रह्मांड में न है धरा यही उपयोगी। उपभोग करो संरक्षण करो न बनो ऐसे भोगी।। हर पल हिमखंड पिघल रहे खतरे में है पृथ्वी। सावधान हो जाओ अब भी है ये धरा सबकी।। विषैला हो गया नीर विषैली धरा की ये…

  • पृथ्वी दिवस का मान करें

    पृथ्वी दिवस का मान करें

    हे! जननी के सपूत चलो, सुयश का गान करें स्व धरा सुरक्षित करके, पृथ्वी दिवस का मान करें आओ मिलकर सर्वजन, सौंदर्य सा इसे सजाए सम्पूर्ण धरा पे वृक्ष लगा के, प्रदूषण को दूर भगाए हरित रंग को कवच बनाएं व हर पत्तों को ढाल वृक्षों की ठंडी छांव तले, हम सदा लगाएं चौपाल स्वगृह…

  • धरा की अनंत पीड़ा

    धरा की अनंत पीड़ा

    विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। जीवन दिया, पोषण किया। पालक होकर भी, पतित रही। अपनी ही संतानों का, संताप हर, अनंत संताप सहती रही। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। स्वर्णनित उपजाऊ शक्ति देकर, भूख मिटाई दुनिया की, पर अपनी संतानों की लालसा से, उनके लालच से बच ना सकी।…

  • हरा भरा हो वसुधा का घर द्वार

    हरा भरा हो वसुधा का घर द्वार

    आओ जिन्दगी बदल डालें अपनी भी सरकार प्रकृति के आगे हम सब है लाचार किसी को ताजमहल तो किसी को कर्फ़्यू पास मिला उपहार हम भी आना चाहते हैं तेरे आगोश में अब हमें तो मत नकार॥ लगने लगी है अन्न जल के सिवाय ये बाकि दिखावटी दुनिया बेकार अन्न मिले कपड़ा मिले तन को…

  • पृथ्वी दिवस- छात्राओं की कविताएं

    पृथ्वी दिवस- छात्राओं की कविताएं

    पृथ्वी दिवस के अवसर पर कलमकार राजीव डोगरा ‘विमल’ जी ने अपने विद्यालय की होनहार छात्राओं द्वारा लिखी गई कुछ कवितायें इस पृष्ठ पर प्रस्तुत की हैं। आइए हम आकृति, संजना और सुहानी की कविताएं पढ़ें। १) पृथ्वी दिवस पृथ्वी है हमारी माँ, इसमें समाया है सारा जहाँ यही तो है प्रकृति की माया इसमें…

  • क्यूं फिकर? हम भूले कि नहीं

    क्यूं फिकर? हम भूले कि नहीं

    हम कभी-कभी सोचते हैं कि जिसे हम चाहते हैं वह हमारी फिक्र करता है या नहीं। कलमकार पूनम भारती की इन पंक्तियों में ऐसे ही सवाल उठ रहे हैं, आप भी पढें। वो जो रिश्ते मुझमें घुले ही नहीं उन्हें क्यूं फिकर हम भूले कि नहीं। वो जो बाते बातों में खुले ही नहीं उन्हें…

  • अजनबी

    अजनबी

    हमारी मुलाकात अजनबियों से होती हैं और वे करीबी बन जाते हैं। कलमकार अनिरुद्ध तिवारी ने एक कविता प्रस्तुत की है जिसमें उन्होंने किसी अजनबी का जिक्र किया है। जब दूर से देखा था तुमकोपता नहीं था!इतनी समझदार हो तुम!बड़े संकोच मन से हमने बाते शुरू की थी, ना तुमने, ना मैंने नाम पूछा था,हां!…