Category: कविताएं

  • सब बिक गए बाबू

    सब बिक गए बाबू

    समाज में फैली एक बुराई है- भ्रष्टाचार। कलमकार राजेश्वर प्रसाद जी की यह कविता पढ़ें जिसमें उन्होंने बहुत ही साधारण लहजे में एक सांकेतिक उदाहरण के माध्यम से अपने विचार वयक्त किए हैं। मैंने देखा एक बूढा़ कुम्हार को दिवाली की शाम डलिया भर मूर्ति लिए बैठा है चारों ओर लोग घेरे खड़े हैं। मैंने…

  • कल्पना शक्ति

    कल्पना शक्ति

    कलमकार मनोज बाथरे कल्पना को परिभाषित करने का प्रयास इस कविता में किया है। आइए उनके विचारों को और कल्पना शक्ति को जानें। कल्पना एक रचनात्मक ताकत है जो सपनों को एक दिन हकीकत में परिवर्तित कर सकती है बशर्ते स्वप्न देखने वाला उससे सीखकर उसकी सत्यता से परिचित होने का दृढ़ संकल्प लें तब…

  • इश्क का सुरूर

    इश्क का सुरूर

    कलमकार शीला झाला की कुछ पंक्तियाँ पढिए जिनमें प्रेम के शुरुआती दिनों का वर्णन हुआ है। आपको कोई पसंद आ जाता है और ख्यालों की दुनिया बनाने में आप व्यस्त हो जाते हैं। तेरे इश्क का सुरूर दिल पर छा रहा है तेरी मोहब्बत का लगता है फरमान आ रहा है तन्हाइयों में तेरी यादों…

  • नया इतिहास रचाना है

    नया इतिहास रचाना है

    कलमकार उमा पाटनी कोरोना को हराने की बात अपनी पंक्तियों में लिखती है। उनका कहना है कि हमें ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे हमारी जीत हो और यह कदम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाए। जी हाँ सो जाने दो उसे हमेशा के लिएगहरी नींद कि उठ न पाये फिर कभी वोकोई आहट नहीं,…

  • माँ सरस्वती

    माँ सरस्वती

    हे माँ सरस्वती ज्ञान दे वरदान दे पूजा करें अर्पण पुष्प करें नदियों का कलकल गुणगान दे। श्वेत वस्त्र,हंस वाहिनी वीणा की मीठी तान दे कमल खिले नीर में ऐसा वरदान दे। हे माँ सरस्वती ज्ञान दे वरदान दे पूजा करें अर्पण पुष्प करें नदियों का कलकल गुणगान दे। शिक्षा की निधि संगीत की विधि…

  • योजना

    योजना

    हमारी योजनाएं होनी चाहिए इस प्रकृति के संरक्षण के लिए, सभी प्राणियों के हित के लिए और विपत्तियों/महामारी से जीतने के लिए। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी की यह कविता पढें जिसमें वे हर क्षेत्र के लिए एक नई और दूरदर्शी योजना की पैरवी कर रहे हैं। चलो अब फिर से योजना बनाते हैं, सारे…

  • गीत गा न सकी

    गीत गा न सकी

    कलमकार राहुल प्रजापति की एक चंद पंक्तियाँ पढें – मौन थी ये हवा गुनगुना न सकी गीत कलियों बहारों के गा न सकी जब तलक थी जरूरत रही पास वो ग़म में मुझको गले से लगा न सकी उसने भी हमको ऐसे विदा कह दिया जानकर भी वो रिश्ता निभा न सकी उसपे भी रंग…

  • हो न हो

    हो न हो

    कलमकार सतीश शर्मा जीवन में घटने वाली अनेक परिस्थितियों और घटनाओं के अनुभव से यह कविता पूरी की है। कई आदमी रहते हैं यहां, हर एक शख़्स में। हो सकता है, बेहतर भी हो कोई बुरा भी हो। पाना है मंज़िल को किस्मत में ठोकरें भी हो। सभी से फांसला भी हो और हौंसला भी…

  • स्त्री- सुंदर भी सशक्त भी

    स्त्री- सुंदर भी सशक्त भी

    कलमकार अनिरुद्ध तिवारी स्त्री के बारे में लिखते हैं कि वह सशक्त भी है और सुंदर भी। उनमें ममता, प्रेम, लज्जा, मर्यादा और ज़िम्मेदारी बहुत है। सहन करने कि शक्ति भी है और सच का आईना दिखने का गुण भी है। देख रहा हूं तुम्हारी आंखों को नजरों में तुम्हारा किरदार छुपा है, सच कह…

  • रोम-रोम में सभ्यता

    रोम-रोम में सभ्यता

    भारत की सभ्यता और संस्कृति संपूर्ण विश्व में सुविख्यात है। सभ्यता हमारी परंपराओं से हम तक बरकरार है। कलमकार मुरली टेलर ‘मानस’ जी भारत की सभ्यता और संस्कृति से जुड़े हुए अपने विचार इस कविता में व्यक्त करते हैं। इतिहास लिखी परिपाठी पर गर मानव को यह बोध रहे कहि ना हो, कभी ना हो…

  • उपकार करो या सत्कार करो

    उपकार करो या सत्कार करो

    जीवन में कर्म का विशेष महत्व होता है, हमें सदैव कर्मशील रहना चाहिए। कलमकार इमरान संभलशाही ने अपनी इस कविता में जीवन को जीने के कुछ बेहतरीन नुस्खे बताएँ हैं जिसे अपनाना हितकर होगा। उपकार करो या सत्कार करो स्नेह मुहब्बत हर बार करो हो जीवन सावन जैसा रहो न जग में ऐसा वैसा बारिश…

  • ओ बेटी

    ओ बेटी

    कलमकार अतुल मौर्य ने एक कविता प्रस्तुत की है जिसमें वे बेटी को संबोधित करते हुए अपने मन के भाव प्रकट किए हैं। ओ बेटी, तू मान बन.. अभिमान बन, गौरव बन.. सम्मान बन, कल का इतिहास बदलने को तू, आज का वर्तमान बन, तू रो मत.. तू सिसक मत, तू दुर्गा है.. तू काली…

  • संक्रमण का अंधेरा

    संक्रमण का अंधेरा

    रोशनी से जागतीउम्मीदों की किरणअंधेरों को होतीउजालों की फिक्रसूरज हैचाँद हैबिजली हैइनमें स्वयं काप्रकाश होताये स्वयं जलतेदिये में रोशनी होतीमगर जलाना पड़तासब मिलकर दीप जलाएंगेधरती परकरोड़ो दीप जगमगाएंगेऔऱ ये बताएंगेसंक्रमण के अंधेरों कोएकता के उजाले सेदूर करकेस्वस्थ जीवन कोदूरियां बनाकरदेखा जा सकतापाया जा सकता। ~ संजय वर्मा ‘दृष्टि’

  • खतरे से दूरी, मास्क जरुरी

    खतरे से दूरी, मास्क जरुरी

    खतरे से दूरी मास्क जरूरी,नहीं ये मजबूरी, जीवन के लिए जरूरी।नहीं मिलती दवाई, संयम से इसकी विदाई।अब तो समझो भाई, बिमारी ने रफ्तार बढाई।घर में रहों सुरक्षित रहों,खूद बचों, परिवार को बचाओं।जीवन दो चार माह की नहीं,मानों यह बात सबकी सही।जीवन की धारा कभी सीधी तो कभी उल्टी है बहती,धैर्य, संयम से रहे यही कहती।कभी…

  • प्रकोप प्रकृति का

    प्रकोप प्रकृति का

    गुनाह तोह पासपोर्ट का था,दरबदर राशन कार्ड हो गए। प्रकृति के इस भूचाल ने हम,सभी को सबक सीखा गए। दुरपयोग करने की सजा हमसबको दे दिए गए। मंदिर-मस्जिद की जरूरत नहीं,शिक्षा, चिकित्सा के महत्व को बढ़ाये गए। नए दुश्मन के आने से जरूरतमंदो,से मुलाक़ात करवा दिये गए। परिवार के महत्ता को एक दूसरे से,रूबरू करवा…

  • समय का जादू

    समय का जादू

    जादू की छड़ी जब वक्त कीघूमती है, तोसब कुछ ऐसे पलट जाता है,जैसे-कदम हैं रुके सेऔर धरती चल रही है,आसमां है झुका साऔर हम उठ रहे हैं,सूरज है शीतल साऔर चांद तप रहा है,पशु-पक्षी हैं उन्मुक्त सेऔर हम कैद हो रहे हैं।परंतु यह क्या?वक्त ने अपनी जादूई छड़ी घुमाई है।तभी तोहम हैं रुके हुए औरवक्त…

  • सलाम कोरोना वॉरियर्स

    सलाम कोरोना वॉरियर्स

    महामारी का दौर है सब घर में ही करो विश्राम,बाहर घूम रहा है कोरोना, है बाहर जाना हराम,मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारा सब ताले में बंदघर में बैठकर ही भजो, सभी अपने अपने राम। नर सेवा में लगे हुए वो नरवीर संभाल रहे काम,इन वीरों के इर्द गिर्द आज घूम रहे हैं चारों धाम,राष्ट्र बचाने की…

  • मजबूर हो गए करने को पलायन

    मजबूर हो गए करने को पलायन

    मन में पीड़ा इतनी है, जितना बड़ा है रत्नाकर।यह सोच कर निकल पड़े, सुकून मिलेगा घर जाकर। कितनी दूर पैदल चलेंगे, वो हैं निरेहाल।चेहरे से स्मित है गायब, हालात है खस्ताहाल। एक बीमारी ऐसी आई मानो वह है डायन।श्रम साधक मजबूर हो गए करने को पलायन। सारे सपने टूट गए, जो रखे थे उसने सजाकर।यह…

  • चापलूसों का व्यवहार

    चापलूसों का व्यवहार

    चापलूसी भी एक तरह की कला है जो हर किसी के बस की बात नहीं है। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि चापलूसी कभी किसी का भला नहीं करती है। चापलूसों के व्यवहार पर कलमकार दीपिका राज बंजारा की यह कविता पढें। कभी तेरी तो कभी मेरी करते… क्या करे चापलूस होते ही ऐसे.।। चालाक…

  • मन की व्यथा

    मन की व्यथा

    हमारा मन अनेक तरह की भावनाओं को समझता है और प्रकट भी करता है। हमारे उदास होने पर मन की दशा हमारे जीवन से जुड़ी होती है। कलमकार ऋतिक वर्मा – मन की व्यथा, पढ़िये। आज बैठा हूं एकांत को मौन हुए मन विचलित सा है, मानों भीतर मन किसी व्याकुलता से घीरे हुए हैं,…