Category: कविताएं
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शर्मशार
आलोक कौशिक की एक गज़ल पढ़ें जिसमें उन्होंने इंसानी फितरत का जिक्र किया है। शर्मिंदगी वाली हरकतों से सभी को बचना चाहिए। हमारा व्यवहार और विचार हमारे चरित्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मानव ही मानवता को शर्मसार करता हैसांप डसने से क्या कभी इंकार करता है उसको भी सज़ा दो गुनहगार तो…
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लॉकडाउन को निभाया है
लॉकडाउन को हमने कुछ इस तरह निभाया है ट्रेन की रफ्तार सी भाग रही थी ज़िन्दगी वक़्त ने उस पर पहरा बिठाया हैं अब वक्त हमने आत्मचिंतन के लिए पाया हैं सुबह उगते हुए सूरज के सामने अपना शीश झुकाया हैं बाहें फैलाकर किया प्रकृति का आलिंगन नन्ही चिड़ियों के लिए दाना बिछाया हैं संगीत…
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कवि की प्रसव पीड़ा
एक कविता को जन्म देने में कवि को किस हालात और विचार मंथन से गुजरना होता है यह कलमकार राजेश्वर प्रसाद अपनी इन पंक्तियों में बता रहें हैं। कवि की प्रसव पीड़ा नामक यह कविता रचनाकार के मन की व्यथा संबोधित कर रही। शब्द, जब कवि के पेट मे अर्थ, ग्रहण करने लग जाता है कवि…
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खालीपन
ट्रैफिक की जाम कभी करती थी परेशान लोगों की चिल्लाहट भरी भीड़ कानो को जाती थी चीर! आज ये सड़कें ‘सहमी-सुनसान’ कह रही मानो.. लगा दो मुझपर फिर वही ‘जाम’। अब नहीं चिल्लाहट कोई, ना मुहल्ले में गरमाहट कोई.. गलिया उदास बुलाती हैं! पर ‘मे-मे’ और ‘भौ-भौ’ की भी आवाजें नहीं आती हैं! हम बैठे…
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अर्धरात्रि के समय
भौंकते श्वानों की हृदय विदारक आवाज़ सुनकर व बेबस जानवरो सहित भूख से ठोंकरे खाते बहुत सारे बेसहारों को देखकर मन सुन्न सा पड़ गया है अभी तक अनजान था मै इस बात से कि इनका पेट कैसे भरता होगा? आज जब, कोरोना वायरस के कारण सारा शहर लॉक डाउन में गुज़र रहा है जिसके…
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बंद है भ्रमण
कुंडलिया छन्द के माध्यम से कवि कमल भारद्वाज एक व्यंग से लॉकडाउन को संबोधित कर रहें हैं। मियाँ घर पै डाल रहे, बैठे मिरच अचार।बीबी का भी बंद है, भ्रमण और संचार।भ्रमण और संचार, बंद सब कानाफूसी।घर में दोनों बंद, खा रहे बासी-बूसी।कहें “कमल” कविराय, खत्म सब दाना पानी।हुई बोलती बंद, मरी हो जैसे नानी।।…
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हो जाता है
कलमकार हिमांशु शर्मा जी ने अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत की है, पढ़कर आप अपनी राय बताएं। सज़दा मांगो तो मिलता नहीं है, बल्कि सज़दा हो जाता है, दीदार मांगो तो मिलता नहीं है, दीदार रब दा हो जाता है। यूँ तो रुस्वाइयाँ भी होती है हमसे, राज़ी भी हमसे होते हैं, धोख़ा भी हम खाते…
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माँ! तू है कहाँ?
कलमकार सुजीत कुमार कुशवाहा माँ की याद अपनी कविता में लिखते हैं। माँ का साथ यदि छूट जाता है तो हम ममता की छत्रछाया से वंचित रह जाते हैं। आती, पर मिल सकता नहीं। लौट आओ ना माँ, याद जाता नहीं। स्वर्ग में तू तो छुपी ही नहीं। गांव आऊं तो तू मिलती ही नहीं।…
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गृहिणी तो गृहिणी है
लॉकडाउन हुआ देखो देश में, सब को हुआ है अवकाश। गृहिणी को छुट्टी आज भी नहीं, वो कितनी होगी बदहवास।। वो खुश तो दिख रही है बहुत, सभी अपने जो है उसके पास। मन में कौन झाँके उसके, कौन बनाए जीवन को खास।। खा–पी कर सब बैठ जाते, पकड़ कर हाथों में अपने फोन। वो…
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चाह बिटिया की
हर इंसान की अपनी इच्छाएं होती हैं, हमारी बेटियों के मन में भी अनेक इच्छाएं और अरमान होते हैं। हमें उनकी चाहतों को जान समझकर अवश्य पूरा करना चाहिए। कलमकार गौरव शुक्ला ‘अतुल’ अपनी कविता में बेटियों की चाह को बताने का प्रयास किया है। मैं आज़ाद पँछी सी एक दिन यूँ ही उड़ जाऊँगी..…
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माँ का संदेश
भले चांहे सारा दिन सो कर बिताना भले चांहे खाना दिन मे एक बार खाना भले चांहे दिन चार भूखे विताना किसी भी तरह से समय को विताना मगर मेरे बेटे बाहर न जाना बाहर है भयानक वायरस कोरोना सारी दुनिया रो रही है कोरोना-कोरोना हजारो को पड़ा है प्राणों से धोना किसी तरह से…
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जीवन संभालो यारों
हालात देश की गंभीर है अब तो संभल जाओ यारो हैं पल तो कठिन बहुत अब तो रुक जाओ यारो। जूझ रहा है हर इंसान जिंदगी अपनी संवारों जीवन बहुत ही अमूल्य है अब कीमत समझो यारों। राग द्वेष जात पात भूल पीड़ा आपस की हर लो मिल जुल कर एक दूजे को अब तो…
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धीरज धर ऐसा होता है अक्सर
कलमकार उमा पाटनी लिखतीं हैं की धैर्य हमेशा सफलता और शांति का परिचायक होता है। अक्सर हर छोटी-बड़ी दिक्कत से हम अपना आपा को जाते हैं, किन्तु यदि धीरज धरें तो सारे कार्य कुशलतापूर्वक संपन्न हो जातें हैं. वेदना की छटपटाहट स्मृतियों की बुदबुदाहट आज पहलू में है बैठी उलझनों की सरसराहट फेरती मुंह परछाइयाँ…
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प्रभु नरसिंह का अवतार धरो ना
प्रभु! नरसिंह का अवतार धरो ना। प्रभु कोरोना की हार करो ना, ये कष्ट सभी के आप हरो ना, हो गए बन्द मंदिर, मस्जिद सब, कैलास पति का रूप धरो ना। सदमार्ग को चयनित करो ना, हृदय में मेरे करुणा भरो ना, बन्द हो गए गुरूद्वारे सब, अन्नपूर्णा का रूप धरो ना। कोरोना का संघार…
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कलम जब भी कुछ लिखती है
कलमकार दिलवन्त कौर की यह रचना पढ़िये जो कहतीं है कि कलम जब भी कुछ लिखती है तो वह एक विचार बन जाता है, सच्चाई प्रकट करती है और मार्गदर्शन करती है। ये कलम जब भी कुछ लिखती है चोट सीधे जहन पर लगती है खौफ नहीं इसको जमाने का सामने इसके कायनात झुकती है…
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कोरोना की आफत
कोरोना की आफत आई। सब को फिर से घर ले आई। चले गए थे बहुत दूर तक, अपने घर से हम सब भाई। भूल गए थे रिश्ते नाते, अपनापन और बोल भलाई। फिर लौटेगी रिश्तो में अब, पहले वाली वही सच्चाई। घर पर रहकर कोरोना से, हम जीतेंगे एक लड़ाई। वक्त कहेगा यही कहानी, अमन…
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महामारी के दौर में मुनाफा
बडे़ दुर्भाग्य की बात है कि इस महामारी के दौर में भी कई व्यवसायी आम लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकरअधिक से अधिक मुनाफा कमाने में लगे हैं। इस पर मेरी एक त्वरित नज़्म- इस इस मुश्किल वक़्त में वो मुनाफ़ा कमाए जा रहा है। गुज़र गये लोग, गुज़ारा न होने से, और वो है…
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इस आपदा से पार पाना है
जिसे है देश प्यारा मैं उसे पैगाम लिखता हूं, बचा लो देश को अपने ये विनती आज करता हूं कोरोना को हराना है सभी को साथ मिलकर के कोरोना से लडोगे सब ये मैं विश्वास करता हूँ कई विपदाएं झेली देश ने इतिहास में अपने मगर, नत कोई विपदा देश को अब तक न कर पाई…
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मृत्यु का अट्टहास
वक़्त संहार का हैं पापियों का विनाश हैं, क्यों दुआ करु की सब रुक जाए, किये हैं जो दुष्कर्म मानव भी तो उनका फल पाए। जी रहे थे जो अब तक अपने वक़्त पर घमंड कर। उनको भी तो मृत्यु का अहसास आए। ईश्वर के नाम पर किये जो बुरे कर्म मरते-मरते उनका भी तो…