Category: कविताएं

  • नव संकल्प… एक दीया

    नव संकल्प… एक दीया

    जला कर एक दीया विश्वास का, हमें मानव सभ्यता में, विजयी उद्घोष जगाना है। हम हैं भारत की संतान मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर दूसरा दीया प्रेम का हमें आपसी भाईचारा लाना है। धर्म से ऊपर है- मानवता। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर तीसरा दीया देश हित में लगे, असंख्य जनों के प्रति,…

  • कोरोना को हराना है

    कोरोना को हराना है

    कोरोना को हराना है आ गयी मुश्किल घड़ी जीत के हमको दिखाना है। आज हमने ठाना है कोरोना को हराना है। मोदी जी ने कर दिखाया अब अपनी बारी है। राष्ट्रभक्ति दिखानी है हिन्दुस्तान को विजयी बनाना है। देश की रक्षा के लिए जिन्होंने दिया बलिदान है। ऐसी माताओं के बच्चों समक्ष श्रद्धा से शीश…

  • देश बचा पायेंगे

    देश बचा पायेंगे

    यद्यपि जान प्यारी होती घर भी प्यारा होता संकट में अपनों का सानिध्य न्यारा होता भूख अभाव का असर दिखता सब में धैर्य और विश्वास साथ छोड़ दें मग में तब संकट चहुँ ओर अधिक छा जाता कोरोना जैसा दानव शक्ति अधिक पा जाता कुछ समझें हम भी कुछ समझे प्रशासन वो करें व्यवस्था और…

  • व्यापार

    व्यापार

    आज समस्त विश्व का व्यापार, हो गया है लाचार, कोरोना का है प्रसार. चौपट है व्यापार, व्यापार का पहिया है अवरुद्ध, व्यापारी गण क्रुद्ध. महामारी ने पाव पसारा है, मानवता पर संकट भारी है. लोभ, लिप्सा, साम्राज्यवाद ने दानवता जगायी है, सहस्त्र फणों की लोलुपता ने यह महामारी फैलायी है. अर्थ की भूख ने आज…

  • आओ शीघ्र अयोध्या राम

    आओ शीघ्र अयोध्या राम

    सारी लंका पुनः जलाकर, आओ शीघ्र अयोध्या राम दंभी दशानन के आनन को, पुनः काट कर सियाराम जिस अयोध्या का तू राजा, हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जातिवाद का भेद मिटाकर, तू सबको बना दे भाई भाई हर जन के हृदय स्थल में, सुख शांति बरसाओ मेरे राम दूख झेल रहा सिंध सारा, है तपोभूमि…

  • महामारी के घाव

    महामारी के घाव

    महामारी के घाव को खेल रहे हो बड़े दाव से वो नो आउट पे बॉल मार रहा है और तुम वाहन रूपी गेंद दे रहे हो हुआ लोकडॉउन लगी धारा फिर भी तुम चडा रहे हो पारा कहीं चोराये दूत खड़े कही अस्पतालों में ईश्दूत पड़े वो रब देव तुम्हें दे रहे है मर्ज क्यों…

  • हम दीप जलाएं

    हम दीप जलाएं

    गर दीप ही जलाना है हमको तो पहले प्रेम की बाती लाएं घी डालें उसमें राष्ट्र भक्ति का आओ मिल कर दीप जलाएं। जाति पांती वर्ग भेद भुलाकर हम हर मानव को गले लगाएं राष्ट्र में स्थापित हो समरसता आओ मिल कर दीप जलाएं। भुलाकर नफ़रत को अब हम दया, प्रेम और सौहार्द बढ़ाएं हो…

  • आओ हम दीप जलाएं

    आओ हम दीप जलाएं

    आओ मिलकर हम दीप जलाएं, अन्धियारा को कहीं दूर भगाएं। खुद के अन्दर फिर राम जगाएं, फिर से हम एकता का स्वरुप दिखाएं। कोई जात नही, कोई धर्म नही, बस भारत के लोग कहलायें हम। इस विकट काल में एक होकर, इस कोरोना को मार भगायें हम। सब जाने कोरोना एक महामारी है, घर में…

  • आओ मिलकर हम दीप जलाएं

    आओ मिलकर हम दीप जलाएं

    आओ मिलकर दिया जलाएं वबा कोरोना दूर भगाएं द्वेष घृणा को निचोड़ मोड़ कर वैमनस्यता का बन्धन तोड़कर पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सब करें, प्रार्थना हाथ जोड़कर हर घर आंगन का भूत भगाएं आओ मिलकर दिया जलाएं हम पहचानो में पहचान है भाई हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई रक्त लाल है, हर एक नसों में प्रण…

  • उजाला

    उजाला

    जीवन में रौशनी, उजाला बड़ा मायने रखती है, उजाला जीवंतता, सुख, समृद्धि का प्रतीक है तो अंधेरा मरण, विनाश, अनिष्ट का प्रतीक है। वेदों में कहा गया है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात हे परमात्मा हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। आज, अभी ही क्यों यह सनातन से चला आ रहा है, हम पूरब…

  • आओ मिलकर दिया जलाएँ

    आओ मिलकर दिया जलाएँ

    अंधकार फैला इस जग में एक जुट होकर चलो दिखाएँ आओ मिलकर दिया जलाएँ ! बुझे हुए लोगों के मन में इक आशा की किरण दिखाएँ आओ मिलकर दिया जलाएँ ! राजनीति से ऊपर उठकर मन में इक विश्वास दिखाएँ आओ मिलकर दिया जलाएँ ! द्वेष भाव ईर्ष्या को त्यागकर दूर-दूर सकारात्मकता फैलाएँ आओ मिलकर…

  • आओ जोत जलाएं

    आओ जोत जलाएं

    फिर दिवाली मनाऐंगे कोरोना को भगाऐंगे जोत हर घर में जलेगा कोरोना को मात मिलेगा घर-घर प्रकाश की, किरणें होगी प्रयास करेंगे हम देशवासी मिलकर सब भारतवासी कृत संकल्प करेंगे, ज्यों हो कोई योगी ऊर्जा को बढा़ऐंगे सामाजिक दूरत्व को, निभाऐंगे। संकल्प, नारा सबका एक होगा कोरोना को भी, खौफ होगा जलाऐंगे दिया संग बाती…

  • तर्ज़-ए-तकल्लुम

    तर्ज़-ए-तकल्लुम

    इशारों-इशारों में बड़ी-बड़ी बातें हो जाया करतीं हैं। कलमकार रज़ा इलाही की एक गजल “तर्ज़-ए-तकल्लुम” पढ़िए। आँखों से कहे कोई, आँखों से सुने कोई दिल में उतरे कोई, दिल में समाए कोई बिन लब खोले जब सब कुछ कह जाए कोई ऐसे तर्ज़-ए-तकल्लुम में जब ग़ज़ल नई हो जाए कोई हुदूद-ए-अर्बा में सिर्फ और सिर्फ…

  • कौन

    कौन

    वह कौन है? जानने की इच्छा हर किसी के मन होती है। जिसकी आहट से दिल में दस्तक होने लगती है, आखिर! वह कौन है? कलमकार प्रीति शर्मा ने ऐसे ही सवाल अपनी कविता में पूछें हैं। अनगिनत लहरें आती है। बहा के मुझे अनंत में ले जाती है। यह कौन? उस शून्य से पुकारता…

  • टूटकर बिखर गया

    टूटकर बिखर गया

    निराशा कभी-कभी हमारे मन पर हावी हो जाती है और हमें नई राह दिखाई ही नहीं देती है। कलमकार मुकेश ऋषि वर्मा की यह कविता पढें जो कहती है कि टूटकर बिखर गया। मैं टूटकर बिखर सा गया हूँ मैं रेत सा फिसल सा गया हूँ मांझी के भरोसे बैठा हूँ लेकर कश्ती बीच दरिया…

  • न्याय

    न्याय

      आज न्याय बहुत मँहगा हो चुका है. यह धनपशुओं और बाहूबलियों का चेला हो चुका है. आज न्याय की बात करना बेमानी है. बेशर्मी और मक्कारी ही आज पूज्य है. कैसा युगधर्म आ चला है, सत्य को जैसे लकवा मार दिया हो. इंसाफ़ पसंद लोग इस धरती पर तो ढूढ़ने से भी नहीं मिलते.…

  • दिली बधाई और मुबारकबाद

    दिली बधाई और मुबारकबाद

    इमरान संभलशाही कहते हैं- “यह गीत लिखें है, हिन्दी बोल India का आभार व्यक्त करने के लिए व सहृदय पूर्वक प्रेम अर्पित करने के लिए। जब मै इस पेज से जुड़ा तो मुझे एक प्लेटफॉर्म ऐसा मिला, जहां अपनी रचनाओं को प्रेषित करने में समर्थ हुआ और आज हिंदी बोल India का एक पारिवारिक स्थाई…

  • पिता के अश्रु

    पिता के अश्रु

    पिता की छत्रछाया में पलकर सभी बढते हैं, पिता अपनी संतान को कोई तकलीफ नहीं होने देता है। कलमकार आलोक कौशिक कहते हैं ऐसे पिता की आँखों में यदि आँसू आ जाते हैं तो वह बहुत दुखद क्षण है। बहने लगे जब चक्षुओं से किसी पिता के अश्रु अकारण समझ लो शैल संतापों का बना…

  • रंग लगाकर चला गया

    रंग लगाकर चला गया

    प्रेम और विरह अक्सर साथ-साथ होते हैं जैसे सिक्के के दो पहलू। कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की यह कविता पढें जो विरह की दशा संबोधित करती है। अपने प्रेम का रंग लगाकर जबसे मुझको चला गया वो सावंरिया कृष्ण कन्हैया अपने रंग में रमा गया। सुध-बुध विसरी मैं बांवरिया प्रेम रंग जो चढ़ा गया मुझे रमा…

  • लॉकडाउन और ज़िंदगी

    लॉकडाउन और ज़िंदगी

    भागती दौड़ती जिंदगी अचानक से थम गयी है एक ठहराव सा आ गया है जरूरतें नगण्य है बस कुछ कपडे दाल रोटी और एक घर एक सन्तोष सा महसूस हो रहा बीच बीच में शंखनाद के साथ माता का अभिषेक एकअजीब सा सुकून दे रहा बरसों बाद एक सात्विक जीवन सब जी रहे हैं अपनो…