अज्ञान

ज्ञान से ही अज्ञानता पर विजय प्राप्त की जा सकती है। कलमकार डॉ. कन्हैया लाल गुप्त द्वारा रचित एक कविता पढ़िए और अज्ञानता के पर्दों को हटाने का प्रयास करें। ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित होते ही अज्ञान मिट जाता है।…

0 Comments

हम दोनों मिले ऐसे

कुछ मुलाकातें जेहन से भुलाएँ नहीं जातीं हैं, उनकी छाप इतनी गहरी होती हैं कि दिल अक्सर उनमें खो सा जाता है। कलमकार अनुभव मिश्रा भी एक ऐसी ही मुलाकात को कविता का रूप देकर प्रस्तुत कर रहे हैं। वो…

0 Comments

कोरोना वायरस

वैश्विक चिंता का विषय बन चुकी है संक्रामक बीमारी कोरोना। सभी को थोड़ी सी सावधानी और सतर्कता अपनाकर इसका सामना करना है। कलमकार सूर्यदीप कुशवाहा का संदेश पढ़ें। कोरोना वायरस का भय सताए लोगों से अब बस नमस्ते कराए हाथ…

0 Comments

विदाई

बेटी की विदाई का माहौल बहुत गमगीन होता है, एक तरफ तो उसका घर बसाने की खुशी और दूसरी ओर जुदाई का गम भी होता है। कलमकार खेम चन्द ने अपनी कविता में विदाई के आभास और कुछ अन्य पहलुओं…

0 Comments

दीवार उस पार

दीवारें दूरियाँ बढ़ाती हैं, मन में आशंकाओं का निर्माण इनके कारण हो जाता है। कलमकार इमरान संभलशाही के विचार इस कविता में व्यक्त हैं। हम सभी की अपने मन में उठने वाली हर दीवार को ढहाना चाहिए जिनसे दूरियों और…

0 Comments

उल्फ़त

डॉ. कन्हैयालाल गुप्त 'किशन' जी उल्फ़त के बारे में इस कविता में बता रहे हैं। 'उल्फत' ऐसी मनोवृत्ति है जो किसी को अपना मान उसके साथ सदैव रहने की प्रेरणा देती हो। बात होनी ही चाहिए उल्फ़त की।एक क्षण भी…

0 Comments

पत्थर

कलमकार राजेश्वर प्रसाद जी की इस कविता में पत्थर की आत्मकथा दर्शायी गई है। पाषाणयुग से आज तक पत्थर हमारे विकास को गति प्रदान कर रहा है। मैं पत्थर हूँ ,पाषाण हूँ, शीला हूँ मुझे किसी से गिला नहीं मैं…

0 Comments

प्रयत्न कर

सफर में ठोकर लग जाने से हम मंजिल नहीं भूल जाते बल्कि पुनः खड़े हो उसकी तरफ़ अग्रसर होते हैं। कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की ये पंक्तियाँ सतत बढते रहने का संदेश देती हैं। ठोकर लगे तो क्या हुआ सम्भल के…

0 Comments

ख़ामोश

अपने विचार प्रकट करने के लिए, मन शांत करने के लिए, सलाह-मशविरा देने के लिए लिखना बहुत जरुरी है। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी की यह कविता लिखने के अनेक कारण बता रही है। मैं ने ख़ुद को जो है…

0 Comments

क्षणिकाएं

जीवन के यथार्थ को प्रकट करतीं हुईं कलमकार मुकेश बिस्सा की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं। छोटी छोटी सी चीजों में बड़ी-बड़ी खुशियाँ छिपी होती हैं। दुख सैकड़ों मिलते हैं दुख लेने वाला नहीं मिलता दिल जिस से मिले खुशी हमें…

0 Comments

बरगद का पेड़

इलाके के पुराने वृक्ष हमारी कई पीढ़ियों के हमसफ़र रहे हैं। किंतु आज आधुनिकता के चलते वे वृक्ष नहीं बचे, यदि कहीं हैं तो उनसे भी उनका हाल जानने की कोशिश करें। कलमकार राजेश्वर प्रसाद जी एक बरगद के पेड़…

0 Comments

चलो कुछ लिखते हैं

मनुष्यों का व्यवहार भी अजीब है, कभी सुलझी हुई बातें करतें हैं तो कभी उनकों ही समझ पाना मुश्किल होता है। कलमकार निहारिका चौधरी की इस कविता में हमारे स्वभाव के बारें में कुछ बातें बताई गईं हैं। चलो कुछ…

0 Comments

जरा दूरियां रहने दो

कलमकार अनिरूद्ध तिवारी की एक रचना पढें जिसमें वे लिखते हैं कि प्यार में थोड़ी दूरी बनाए रखिए। वैसे भी विरह और दूरियाँ प्रेम को और मजबूत करतीं हैं। इतना भी करीब होना ठीक नहीं! जरा दूरियां रहने दो! बादलों…

0 Comments

यार मेरे

दोस्त और दोस्ती की बातें भी निराली होती है। नाराजगी, झगड़ा, अनबन, ताने, सुझाव, प्यार सब कुछ दोस्ती देती है और शायद इसीलिए यह सबको भाती है। कलमकार अनुभव मिश्रा के विचार भी इन पंक्तियों में पढ़ें। भीड़ की मुझे…

0 Comments

मैं कहता हूँ गजल

जब दिल पर बढते भार असहनीय हो जाते हैं तो मैं गजल कहता हूँ और गुनगुना लेता हूँ। ऐसा करने से एक नई ऊर्जा मिल जाती है- यही कह रहे हैं कलमकार अजय प्रसाद इन पंक्तियों में। जिम्मेदारियों के साथ,…

0 Comments

होली २०२०

होली का त्यौहार मिल-जुलकर, मन की कड़वाहट मिटाकर मनान चाहिए। कलमकारों ने अपनी कविता के माध्यम से सभी देशवासियों को होली की शुभकामनाएँ दी हैं। १) अपनेपन की पिचकारी ~ नीरज त्यागी नीरज त्यागीकलमकार @ हिन्दी बोल India अपनेपन के…

0 Comments

रंग-ए-उल्फ़त

अच्छी है रस्म-ओ-रह रंगों की गुल की गुलाल की उमंगों की हर सम्त है बज़्म-ए-तरब जैसे गूँज हो नए तरंगों की यार अग़्यार की टोली में सदा है मुतरिब के आहंगो की घोल दे फ़ज़ा में रंग-ए-उल्फ़त ये साख है…

0 Comments

मेरा गाँव

गाँव की छटा और खूबसूरती को कलमकार मुकेश वर्मा ऋषि ने इस कविता में बखूबी दर्शाया है। लोकगीत, हरियाली, बाग-बगीचे, खेत, किसान और ग्रामीण लोगों से भरी हुई जगह एक सुंदर गाँव ही होती है। वृक्षों और लताओं से घिरा…

0 Comments

तू कृष्ण की राधारानी भी

महिला दिवस विशेष अनिरूद्ध तिवारी की कविता: तू कृष्ण की राधारानी भी तुम धरा हो, आकाश भी तू भोर का प्रकाश भी तू कोमल है तू इश्क भी तू कठोर है तू अश्क भी तू समाज भी परिवार भी तू…

0 Comments

कुछ लड़कियां

कुछ लड़कियां खेलना जानती हैचुटकुले सुन खुल्लासा हंसना जानती हैवो बिन मौसम सजना संवरना जानती हैवो लड़ना जानती है वो रोना भी जानती है।कुछ लड़कियां खेलाना जानती हैसमय समय पर बच्चों को खिलानापिलाना जानती है वो हंसना और रोनाभी जानती…

Comments Off on कुछ लड़कियां