दुःखी हैं अन्नदाता

कुमार किशन कीर्ति किसानों की समस्या अपनी कविता में बता रहे हैं। भारत किसानों का देश है और किसान को अन्नदाता कहा जाता है। किंतु ऐसे किसान जो व्यापारी नहीं है, उनकी दशा दयनीय है। माथे पर पसीना है शरीर…

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आँसू वसुन्धरा के

प्रकृति ईश्वर की सबसे अनूठी देन है और जीवन का हिस्सा है, इसका संरक्षण हमारा कर्तव्य है। हमारे द्वारा इसे कितनी क्षति पहुंचाई जा रही है यह सभी को भलीभांति ज्ञान है। कलमकार खेम चन्द अपनी कविता के माध्यम से…

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दिवाली के बाद का सूनापन

दीपों का महापर्व दिवाली के त्योहार मनाने के लिए हर किसीका मन अनेक खुशियों भर जाता है, लोग अपने परिवार के साथ मिलजुलकर इसे हर्षोल्लास के साथ मानते हैं। कलमकार भवदीप के अनुसार यह खुशी सिर्फ़ दो दिन की होती…

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मिट्टी के दीये

नीरज ने इस कविता में इंसान को उजाला फैलाने वाले दीपों का निर्माता/कुम्हार बनने की राय दी है। कहने का भाव है कि हमें ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे दुनिया प्रकाशमय होती रहे। कुम्हार बना मिट्टी से, मिट्टी के दीये…

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कितने अमीर कितने गरीब धर्म हमारे

हम आज कितने भी आधुनिक हो गए हों किन्तु जात-पात के मुद्दों से जुड़े रहते हैं। कलमकार खेम चन्द ने इसे बड़ी समस्या बताते हुए कविता के माध्यम से अपना मत प्रकट किया है। आखिरकार हम सब एक हैं और…

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सत्य

हम विकास कार्य में न जाने कितना विनाश कर देते हैं और कहते हैं कुछ पाने के लिये कुछ खोना पड़ता है। कलमकार विराट गुप्ता ने लिखते हैं कि हम इन्सानों द्वारा प्रकृति को कितना कष्ट दिया जा रहा है…

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फिर आना सावन

सावन की बारिश हम सभी के लिए जीवनदायी होती है, किंतु यदि बरसात ज्यादा हो जाए तो प्रकोप साबित होती है। कलमकार खेम चन्द ने अपने अनुभव से सावन में आने वाली विपदाओं को सहने और समाधान पर चर्चा की…

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मेरी प्रियतमा

इश्क के शुरुआती दिनों में बड़ी कशमकश सी रहती है, डर के साथ-साथ बहुत कुछ बताना और जानना होता है। कुमार किशन कीर्ति ने अपनी एक रचना (मेरी प्रियतमा) प्रस्तुत की है जो 'इश्क की राह' से प्रेरित है। ओ…

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खामोशी

बहुत सारे सवालों का जवाब खामोशी होती है जिसे लोग पसंद नहीं करते। रज़ा इलाही भी खामोशी का जिक्र करते हैं जो प्यार और जुदाई से नाता रखती है। न किसी से मेरा हिसाब है न कोई अब मेरा ख़्वाब…

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मानव की पहचान

एक दूसरे का ख्याल रखना, परहित और राष्ट्रहित मानव का कर्तव्य है, इन सभी से ही वह मानवता की सीख लोगों के बीच प्रस्तुत करता है। समीक्षा सिंह की एक कविता है जिसमें उन्होने मानव की पहचान बताने का प्रयास…

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जब याद आती है मुझे माँ

माँ का बिछड़ना बहुत ही कष्टदायी होता है। केवल उसकी यादें ही हमें उसके पास बांधे रखती है और हम इस बंधन से मुक्त भी नहीं होना चाहते हैं। कलमकार खेम चन्द भी माँ से जुदाई का दर्द अपनी कविता…

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मेरी बीमार मां

शहंशाह गुप्ता (विराट) ने माँ के लिए अपने विचार इस कविता में लिखें हैं। माँ की बातें बताने में शब्द कम ही पड़ जाते हैं, हमारे जीवन में उसका अपार योगदान होता है। उसकी पीड़ा को समझना हमारा कर्तव्य होना…

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महंगे सपने

नौकरी, गाड़ी, घर जैसे अनेक सपने हम खुली आँखों से देखते हैं। कभी-कभी लगता है कि ऐसे महंगे सपने पूरे नहीं होने वाले हैं, किंतु यदि मन में इच्छा शक्ति हो तो उन्हें सच करने में देर नहीं लगती। साकेत…

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उदास क्यों बैठे हो

उदासी सिर्फ पल दो पल के लिए ही होनी चाहिए। मायूशी में डूब जाना, अन्य सब कुछ भूल जाना - अच्छे संकेत नहीं हैं। कलमकार अमित मिश्र लिखते हैं कि दिल से तेरे भी निकलेगा खंजर, तेरा भी एक दिन…

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अर्धनिर्मित- आयुष्मान की कविता

विश्व कविता दिवस के अवसर पर हिन्दी सिनेमा के मशहूर अभिनेता आयुष्मान खुराना ने एक स्वरचित कविता "अर्धनिर्मित" सोशल मीडिया पर साझा की थी। आयुष्मान कविताएं भी लिखते हैं और इनका अभिनय तो आप सब ने देखा ही है। यहाँ…

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उठो प्यारे लाल

हर दिन एक नई शुरुवात होती है। प्रातः काल उठकर जब हम अपने दिन का शुभारंभ करते हैं तो सब कुछ अच्छे ढंग से संपन्न होते हैं। कुमार किशन कीर्ति इस कविता में आलस का परित्याग कर हर दिन को…

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दीपों का त्योहार- दीवाली

त्योहार तो वही हैं, पुराने जमाने से मनाएँ जा रहें हैं लेकिन हमारे तरीके और व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आ चुका है। कलमकार खेम चंद ठाकुर ने इसी परिवर्तन से संबन्धित कुछ पंक्तियाँ दिवाली के त्योहार पर प्रस्तुत की हैं।…

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अमिताभ बच्चन कृत काव्य पंक्तियाँ

जी हाँ हुजूर मैं काम करता हूँ मैं सुबह शाम काम करता हूँ मैं रात बा रात काम करता हूँ मैं रातों रात काम करता हूँ॥ ~ साभार: Twitter/@SrBachchan (T2911) बेटियाँ ये गर्व है मेरा, बेटी बेटियाँ जब उभर कर…

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प्रेम

प्रेम को समझ पाना, परिभाषित करना और आँकना- हमारे बस की बात नहीं है। यह न तो कम होता है न ही ज्यादा, इसका अनुमान और आकलन नहीं कर सकते। प्रेम तो सिर्फ किया जा सकता है। विराट गुप्ता ने…

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अब एक तलाश हो तुम

परिजनों से बिछड़ने के बाद हमारी आँखों को उनकी तलाश रहती है कि कब/कैसे वे मिले और उस पल को यादगार बनाया जाए। कलमकार विजय परमार की पहली प्रस्तुती जिसे उन्होंने शीर्षक दिया है- अब एक तलाश हो तुम। हाँ…

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