मेरी खामोशियाँ

कई मौकों पर हम खामोशी का परिचय देते हैं और दूसरे ऐसी परिस्थितियों का लाभ उठा लेते हैं। यह खामोशी न जाने क्या-क्या कहना चाहती है, कुछ भाव कलमकार भवदीप ने दर्शायें हैं।

यादें बरसात बन कर निकल जाती हैं,
वो छाता लेकर खड़ी हो जाती है।
झूठ बोल कर भी वो इतराती है,
सच से उसकी जबान हकलाती है।।

समझता रहा जिसे सकूँन दिल का,
वो ही खंजर दिल पर चलाती है।
मेरी खामोशियाँ को ना समझ पाती हैं,
हालात पर मेरे खूब मुस्कुराती है।।

पहले मुझे अपना आदि कर दिया,
अब मजबूरी बता दूर चली जाती है।
मौजूद जिसके लिये हर पल रहा,
उसके पास ना एक पल मेरे लिये रहा।।

जिसको मैने पूनम का चांद कहा,
उसने ज़िन्दगी को मेरी अमावस किया।
मेरी खामोशियाँ को ना समझ पाती हैं,
हालात पर मेरे खूब मुस्कुराती है।।

~ भवदीप सैनी

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नीरज त्यागी, ग़ाज़ियाबाद

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