हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज पर पाठकों ने साल २०२० में इन दस कविताओं को बहुत पसंद किया। आप भी पढ़ें औए अपनी राय बताएं।
१) वो दिन
यूँ तो अक्सर यादों की बरसात होती है,
गुजरे लम्हों में बीते पलों की एहसास होती।वो पहला दिन आँसूओं की बरसात हुई थी,
नये माहौल में थोड़ी अजीब ख्यालात हुई थी।गुजरते वक्त के साथ लम्हा दर लम्हा बीतता गया,
नई जगहों पर सब अपना-सा लगता गया।शनिवार को समय से पहले मेस जाना,
दोस्तों के साथ टीवी रूम में खो जाना।पीछे बेंच पर बैठ साथियों का मजाक उड़ाना,
हाॅस्टल में दूसरों की एक्टिंग कर हसँना।सरस्वती पूजा से शिक्षक दिवस का इंतज़ार,
एसेम्बली हाॅल के कार्यक्रम से था एतवार।बस यादें रह गई लफ्जों की कमी है,
बिभा आनंद
कितना लिखूँ उन पलों के सामने शब्दों की कमी है।
२) गरीब बस्तियाँ
गरीब बस्तियों में
प्रो. राजेश्वर प्रसाद
गीत तो होता है
कविता नहीं होती
गरीब बस्तियों में
धुआँ तो होता है
आग नहीं होती
गरीब बस्तियों में
चूल्हे होतें है
डेकची नहीं होती
गरीब बस्तियों में
भूख तो होती है
भात नहीं होता
गरीब बस्तियों में
ढिबरियां तो होती है
तेल नहीं होता
गरीब बस्तियों में
बीमारी तो होती है
इलाज नहीं होता
गरीब बस्तियों में
दुकान तो होती है
सामान नहीं होता
गरीब बस्तियाँ तो
खेतों में होती है, पर
खेत नहीं होता
गरीब बस्तियों में
बच्चे तो होते हैं
किलकारियां नहीं होती
गरीब बस्तियों में
शराब तो होती है
पानी नहीं होता
गरीब बस्तियों में
रेडियो तो होता है
अखबार नहीं होता
गरीब बस्तियों में
बुढ़ापा तो होता है
जवानी नहीं होती
गरीब बस्तियों में
आंखें तो होती है
रोशनी नहीं होती
गरीब बस्तियों में
सरकार तो होती है
दरकार नहीं होती
गरीब बस्तियों में
आदमी तो होतें हैं
भगवान नही होता
३) उमर बत्तीस की
भैया तुम को क्या बतलाएं
कितनी उमर हमारी है
छोकरों में तो फिट ना बैठें
बुदढे कहते छबारी हैथोड़े दूधिया थोड़े कोयले
नही रहे अब केश घनेरे
एक मन करता वासमोल का
फिर जी कहता पके हैं थोड़ेकभी जो गुजरे मैदानों से
मन करता खेले लड़कों संग
पड़ अपनी ये भागादौड़ी
कहां तनिक ले पाते हैं दमकभी कभी मंदिर हो आते
सत्संग में कुछ कह जो जाते
चिढ़ कर पांड़े बाबा कहते
उमर है कितनी हमें सिखातेवय संधि का दारुण दुख है
कुछ बालाएं अंकल कहती
कुछ हँसती है तोंद पे मेरे
जिन की सूखी हड्डी दिखतीदो बच्चों का बाप हुआ हूं
मैंने कहां कुछ पाप किया है
उपर वाले लीला तेरी
सब कुछ अपने आप हुआ हैकभी जो कुर्ता भड़कीला हो
श्रीमती जी आंख दिखाती
कहां को निकले शाम ढले तुम
कौन तुम्हें है मिलने आतीबिजली वाले उस दफ्तर में
जींस पहन के गया कभी था
साहब ने थी डांट पिलाई
दिन बन आया बाकी सभी काजितने थे अरमान हमारे
मधुकर वनमाली
भईया सब अब खाक हुए हैं
जब से उमर है बत्तीस आई
दिल के सोलह फांक हुए हैं।
४) हर युग में चीर हुआ औरत का
हर युग में चीर हुआ औरत का,
कपड़ो की कमीं न गाओ।
हैवान दरिंदों को तुम सब
मिलकर ऐसे न बढ़ाओ।अपनें अपनें बेटों को भी,
संस्कार शब्द सिखलाओ।
कब तक बेटी दोषी होगी,
बेटों के मन न बढ़ाओ।रिश्ते नातें कोई भी हों,
इंसानियत को दिखलाओ।
तुम कृष्ण नहीं बन सकते तो,
इंसान का रूप बन जाओ।कानून है अंधा बहरा भी,
तुम आशाओं को भुलाओ।
गर आस पास हो अत्याचार,
तुम ख़ुद ही शस्त्र उठाओ।सरकार सुनेगी नहीं कोई
साक्षी सांकृत्यायन
अब हक की गुहार लगाओ।
कब तक चुप रह वंचित होगे,
सब चुप्पी अपनी हटाओ।
…. हर युग में …..
५) कोरा कागज़
कोरा-काग़ज़ ये पूछ रहा, तुम कैसी कविता लाए हो।
किसकी व्यथा को लिखने में, अपनी कलम चलाए हो।।अपने समाज की व्यथा सुनाने, आज लग रहा आए हो।
फ़िर एक बेटी जला दी गयी, क्या यही बताने आए हो।।कोरा-काग़ज़ ये पूछ रहा, तुम कैसी कविता लाए हो।
अंधा है कानून हमारा, बस यही साक्ष्य तुम पाए हो।।अब किस बेटी और माँ का, तुम दर्द छुपाने आए हो।
कविता के ज़रिए लोगों तक, सच्चाई बताने आए हो।।कोरा-काग़ज़ ये पूछ रहा,म कैसी कविता लाए हो।
अपनी इन कविताओं में,तनों का दर्द छुपाए हो।।अब हाहाकार है मचा हुआ, क्या यही जताने आए हो।
साक्षी सांकृत्यायन
कोरे-कागज़ पर दर्द वही इस बार भी लिखने आए हो।।
६) मैं तेरे बिन अधूरा हूं
मोहब्बत मुझको भी तुमसे, मोहब्बत तुमको भी मुझसे।
तू मेरे बिन अधूरी है, मै तेरे बिन अधूरा हूं।।मेरे दिल में जो छिपा है, वो कैसे तुमसे मै कह दू।
मोहब्बत हम जो करते है, वो दुनिया से मै कह दू।।
गुजरते वक्त ने ना जाने क्या क्या, वफाएं हमसे मांगी है ।
मै वफाओं को मुकम्मल ना करू, तो ये कैसी चाहत है।।
तू मेरे बिन अधूरी है मै तेरे बिन अधूरा हूं…मोहब्बत का ये किस्सा, बड़ा अधूरा होता है ।
दो दिलों के मिलने पर भी, ना ये पूरा होता है।।
सारे ज़माने की बंदिशों ने, आके हमको घेरा है।
कभी दिल तोड़ा मेरा है, कभी दिल तोड़ा तेरा है।।
तू मेरे बिन अधूरी है मै तेरे बिन अधूरा हूं…कभी अकेले जो गुजरे शाम, तो तेरी याद आती है।
नीकेश सिंह यादव
कभी मीठी याद तेरी, कभी मेरी जान जाती है।।
कुछ यूं है ये किस्सा मोहब्बत का।
कुछ तेरी कहानी है, कुछ मेरी कहानी है।।
तू मेरे बिन अधूरी है मै तेरे बिन अधूरा हूं…
७) क्रांति
नहीं लड़ना है, तो मत लड़ो
प्रो. राजेश्वर प्रसाद
कम से कम अन्याय पर गुस्सा तो करो
चुप रहकर अन्याय का हिस्सा तो मत बनों
समाज में शांति बताती है
अन्याय कहीं न कहीं
पल रहा है
कम से कम मुट्ठियाँ तो भींचो
दांत तो किटकिटाओ
कम से कम
आवाज तो लगाओ
शायद
तुम्हारी आवाज ही
क्रांति बन जाए
दिन में न सही
रात में
मशाल तो उठाओ
कोई न कोई
तुम्हारे हाथ से
मशाल ले ही लेगा
८) पत्थर
मैं पत्थर हूँ ,पाषाण हूँ, शीला हूँ
प्रो. राजेश्वर प्रसाद
मुझे किसी से गिला नहीं
मैं गवाह हूँ मनुष्य के उदय का
प्रेमियों के मिलन का
साक्षात्कार हूँ
मैं लाखों हजारों साल
अपने ही रूपों में जिया हूँ
जब चरणों में पड़ा था
उद्धार हुआ
मुझमें प्रकृति के सौंदर्य था,चिकनाई थी
जब हाथों में पड़ा तो
अनेक रूपों में ढला
कभी ताजमहल में लगाया
कभी मंदिरों में सजाया
कभी मस्जिदों में संवारा
किसी ने पूजा की,किसी ने हमें बूत कहा
किसी ने तोड़ा, किसी ने तराशा
किसी ने चौराहे पर खड़ा किया
किसी ने भावों का सुमन चढ़ाया
किसी ने आत्मा का प्रतिरूप बनाया
दुःख है, किसी ने मुझे
मेरी तरह संभलने की चेष्टा नहीं की
सबने अपनी तरह समझा
समूह में था तब पहाड़ था
टूटा तो चट्टान हुआ
लूढका तो पत्थर हुआ
खुद मैं टूटा नहीं, तोड़ा गया हूँ
मुझमें डायनामाइट लगायी
क्रशर में पीसा, भट्ठियों में झोंका
मेरी कठोरता से भी उपर
दानवी वृत्ति को साकार किया
बोरियों में बंद किया
कहां तो,
हमारे उपर कितने प्रेमियों ने
अपना नाम लिखा
टूटे ह्दय ने अपने
प्रेमियों को पत्थर दिल कहा
मैं किन-किन उपमाओं से
विभूषित नहीं हुआ
किसी ने मुझे सिर चढ़ाया
तो किसी ने उठाकर
कीचड़ में फेंका
९) विद्यार्थी जीवन
कितना मुश्किल हो जाता है विद्यार्थी जीवन को जीना
प्यार, परिवार, पढ़ाई, करियर सबको इक धागे में सीना।उम्मीद संजोए घर से निकला तबतक कोई फ़िक्र रही ना
इस होड़ भरी बाज़ार में आकर निकल गया है पसीना।इसी भीड़ में नज़र पड़ी उनपर दिल धड़क गया ये कमीना
लो प्यार हो गया है दिल को अब दिल ख़ुद की ही सुने ना।प्यार में जब से जकड़ गए हैं क़िताब से दिल ये लगे ना
कितना मुश्किल हो जाता है विद्यार्थी जीवन को जीना।।धीरे-धीरे कुछ वक़्त बाद जब चाहा करियर को पाना
विद्यार्थियों की लम्बी कतारों में आये नम्बर ही कहीं ना।विद्यार्थियों का कैसा जीवन है कभी उनका हाल पूछना
करियर और प्यार के साथ में उनको कैसे पड़ता है जीना।प्यार, परिवार, पढ़ाई, करियर इन चारों के साथ में जीना
साक्षी सांकृत्यायन
कितना मुश्किल हो जाता है विद्यार्थी जीवन को जीना।
१०) पुरुषत्व
उसके जिस्म पर ही तुम,
अपना हक जता सकते हो।
रूह तक तो,
इबादत करके ही जा सकते हो।
मिली ना वो,
तो उसे एसिड से जला सकते हो।
अपनी विकृति का तुम,
इससे ज्यादा क्या खेल दिखा सकते हो।।मुस्कान छीन कर उसकी,
तुम उस पर ही दोष लगा सकते हो।
हक दिया है जमाने ने तुम्हें,
इसलिए अपने पुरुषत्व का तुम रौब जमा सकते हो।
सम्मान को रौंद कर उसके,
तुम निर्दोष कहला सकते हो।
गलती तुम्हारी नहीं …..
उसके कपड़ों की है,
तुम सबको ये भी तो बता सकते हो।।आंसू देकर उसे,
अंजली सिंह
तुम मुस्कुरा सकते हो।
बर्बाद करके उसे तुम,
भूल कर जा सकते हो।
दीवाना कहकर उसका,
खुद को झूठा दिलासा दिला सकते हो।
अपने स्वार्थ के लिए, उसे तबहा कर दिया,
अब अपना नया घर बसा सकते हो।।
Code | Title | Writer |
SWARACHIT869 | वो दिन | बिभा आनंद |
SWARACHIT385 | गरीब बस्तियाँ | प्रो. राजेश्वर प्रसाद |
SWARACHIT1211 | उमर बत्तीस की | मधुकर वनमाली |
SWARACHIT445 | हर युग में चीर हुआ औरत का | साक्षी सांकृत्यायन |
SWARACHIT449 | कोरा कागज़ | साक्षी सांकृत्यायन |
SWARACHIT1293 | मैं तेरे बिन अधूरा हूं | नीकेश सिंह यादव |
SWARACHIT414 | क्रांति | प्रो. राजेश्वर प्रसाद |
SWARACHIT487 | पत्थर | प्रो. राजेश्वर प्रसाद |
SWARACHIT346 | विद्यार्थी जीवन | साक्षी सांकृत्यायन |
SWARACHIT1196 | पुरुषत्व | अंजली सिंह |