विजय कनौजिया की दस कविताएं

अम्बेडकर नगर से कलमकार विजय कनौजिया ने अनेक कविताएं साझा की हैं, आइए उनकी १० विशेष रचनाएँ पढ़ें।

१) मुझको तो राहत हो गई है

सिसकियों से आज मेरी
दोस्ती सी हो गई है
अब एकाकीपन में भी
रहने की आदत हो गई है..।।

खुद को खुद से ही मनाऊं
माने न फिर भी मनाऊं
रोते-रोते आज फिर
हंसने की आदत हो गई है..।।

ज़ख्म अपनों ने दिए
मेरी वफ़ा के बाद भी
अब तो इस हालात में
सहने की आदत हो गई है..।।

टूट कर चाहो जिन्हें
फिर भी तुम्हें वो छोड़ दें
अब तो टूटे दिल के संग
अपनी तो चाहत हो गई है..।।

थी गलतफहमी मेरी
शायद नहीं थे वो मेरे
बस यही अब सोचकर
मुझको तो राहत हो गई है..।।
मुझको तो राहत हो गई है..।।


२) दरस को नयन फिर तरसने लगे हैं

फिर से यादों के पन्ने पलटने लगे हैं
तुम्हें याद कर फिर तड़पने लगे हैं
आती नहीं नींद रातों को मुझको
अकेले में करवट बदलने लगे हैं..।।

उमड़ते हैं बादल घने आज फिर से
ये तन्हाई में फिर गरजने लगे हैं
नमीं से हुई आंखें फिर से हैं भारी
तुम्हें याद कर फिर से रोने लगे हैं..।।

नहीं है सहज इस तरह भूल जाना
नहीं आता है सबको रिश्ता निभाना
जो कहते थे हम सहपथिक हैं तुम्हारे
वो पहले से रस्ते बदलने लगे हैं..।।

बिताए हुए साथ के वे सुखद पल
स्मृतियों में फिर से मचलने लगे हैं
विवशता हमारी न समझे कोई अब
यही सोचकर अब तड़पने लगे हैं..।।

उम्मीद की हर किरण अब है फीकी
जो आशाओं के दीप थे फिर जलाए
नहीं आसरा फिर मिलेंगे कभी वो
दरस को नयन फिर तरसने लगे हैं..।।
दरस को नयन फिर तरसने लगे हैं..।।


३) बिसर क्यूं गए

मेरे बचपन के साथी
कहाँ खो गए
जिंदगी के सफर में
बिछड़ क्यूं गए..।।

अपने बचपन की गलियां
हैं सूनी पड़ीं
देकर हलचल खुशी की
बिसर क्यूं गए..।।

न थीं मजहब की हममें
दीवारें कोई
थोड़ा पढ़ लिखकर
इतना बदल क्यूं गए..।।

साथ में हम रहेंगे
सदा उम्र भर
दोस्त से करके वादे
मुकर क्यूं गए..।।

दोस्ती अपनी मिलकर
निभाएंगे हम
ऐसा कहकर भला
फिर चले क्यूं गए..।।

आधुनिकता में उलझे
सभी दोस्त हैं
जो थे रिश्ते मधुर
वे सिमट क्यूं गए..।।
वे सिमट क्यूं गए..।।


४) पत्थरबाजी रोज यहाँ

अभिव्यक्ति की आजादी का
होता अब दुरुपयोग यहाँ
देश विरोधी नारे लगते
पत्थरबाजी रोज यहाँ..।।

सार्वजनिक संपत्ति तोड़ना
आग लगाना आम हुआ
असहमति का रूप भयंकर
गोली चलती रोज यहाँ..।।

भूल गए हम गांधीगीरी
सत्य-अहिंसा का वह पाठ
भूल गए हम बलिदानों को
करते हैं उत्पात यहाँ..।।

भाईचारे की परिभाषा
बदल चुकी है भावों में
कौन है अपना कौन पराया
मुश्किल अब पहचान यहाँ..।।

राजनीति की रोटी तो अब
हर रोटी पर भारी है
देश रहे या फिर बंट जाए
ऐसी है अब नीति यहाँ..।।

होती है अब पीड़ा मन को
देश के इन हालातों से
सजा मिले इन गद्दारों को
फिर होगा सब बंद यहाँ..।।

कितने घर के दीप बुझ गए
सूनी माँ की गोद हुई
भारत माँ भी बेबस सी है
देखकर अत्याचार यहाँ..।।
देखकर अत्याचार यहाँ..।।


५) कुछ भी भाता नही

छोड़कर इस तरह
चल दिए तुम मुझे
अब मुझे तो
किसी का सहारा नहीं..।।

अब जिऊं किस तरह
अब सहूं किस तरह
अब तुम्हारे बिना
कुछ भी भाता नहीं..।।

चैन रूठा मेरा
नींद आती नहीं
अब तो चौखट पर
दस्तक भी होती नहीं..।।

अब हवाओं का रुख भी
बदल सा गया
कोई खुशबू इधर
लेकर आती नहीं..।।

हर उम्मीदों के तालाब
सूखे पड़े
अब तो आंखों से
बारिश भी होती नहीं..।।


६) आंखों में अब नींद नही

चार दिनों से बंद हैं घर में
इस पल कोई साथ नहीं
कैसी ये विपदा आई है
अच्छे अब हालात नहीं..।।

भूल गए अब सारे सपने
अब तो बस जीवन बच जाए
कैद भी अब सहना ही होगा
कोई और उपचार नहीं..।।

कैसे गुजरेंगे ये दिन अब
खुद को भी मालूम नहीं
पल-पल बस डर का साया है
जीना अब आसान नहीं..।।

जीवन में अपनों की संगत
का महत्व अब जाना है
जब कोई हो साथ नहीं फिर
हंसना तब आसान नहीं..।।

जिस तकिए पर सिर रखकर
मैं सपने लेकर सोता था
आज वही तकिया है फिर भी
आंखों में अब नींद नहीं..।।
आंखों में अब नींद नहीं..।।


७) आओ मिलकर देश बचाएं

कौन किसे अब गले लगाए
कोई न अब हाथ मिलाए
दूर-दूर से हाथ हिलाकर
हर कोई संबंध निभाए..।।

तन्हाई में मन घबराए
कोई न अब पास बुलाए
अपने भी कतराते हैं अब
किसको अपनी व्यथा सुनाएं..।।

सामाजिक प्राणी की संज्ञा
आज लगे सहमी-सहमी सी
एकाकीपन की ये विपदा
सच में मुझसे सहा न जाए..।।

बाग बगीचे भी सूने हैं
हरियाली धूमिल लगती है
ऐसी परिस्थिति में कैसे
हम अपने मन को बहलाएं..।।

लगती हैं खोखली उम्मीदें
हर ढांढस बेअसर हुए हैं
फिर भी अभी हौंसला कायम
आओ मिलकर देश बचाएं..।।
आओ मिलकर देश बचाएं..।।


८) ऐसा एक सम्मान हूँ मैं

मजबूर नहीं मजदूर हूँ मैं
एक मेहनतकश इंसान हूँ मैं
संघर्षों से लड़ने वाला
जीवन का एक परिणाम हूँ मैं..।।

अभिलाषा की सीमित आशा
जीवन से न कोई निराशा
हर सुख-दुःख के पथ पर चलना
ऐसी एक पहचान हूँ मैं..।।

कर्तव्यों में सच्ची निष्ठा
है भाव समर्पण जीवन में
हर मुश्किल पथ पर डटा रहूँ
ऐसा एक अभिमान हूँ मैं..।।

है मान कर्म, सम्मान कर्म
जीवन का हर अभिमान कर्म
कर दूँ मैं अर्पण जीवन को
ऐसा एक सम्मान हूँ मैं..


९) अगर तुम कहो

मैं लिखूं गीत फिर से
अगर तुम कहो
तुम सुनो तो सुना दूं
अगर तुम कहो..।।

रो रहा हूँ मैं हालातों
से हो विवश
फिर भी तुमको हंसा दूं
अगर तुम कहो..।।

है भरोसा कभी आओगे
इस तरफ
पुष्प कलियां बिछा दूं
अगर तुम कहो..।।

मैं भी नाराज हूँ
खुद से भी आजकल
फिर भी तुमको मना दूं
अगर तुम कहो..।।

कितने अरसे से मैं
मुस्कुराया नहीं
आज मैं मुस्कुरा दूं
अगर तुम कहो..।।
अगर तुम कहो..।।


१०) कल होगा कुछ खास

आज और कल की चिंता में
चिंतित है मन आज
लौटेंगे वो दिन कभी
मन में है विश्वास..।।

जीत सुनिश्चित हार से
सफल हुए से हार
हार-हार कर सीख लो
फिर होगे तुम पास..।।

वक़्त आज नाजुक भले
पर हिम्मत न हार
धैर्य और साहस में है
जीवन की फिर आस..।।

हर परिणाम सुखद होता है
मुश्किल से जब अर्जित हो
आज अगर दुःख सह लोगे तो
कल होगा कुछ खास..।।
कल होगा कुछ खास..।।


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SWARACHIT1240मुझको तो राहत हो गई है
SWARACHIT1240Aदरस को नयन फिर तरसने लगे हैं
SWARACHIT1240Bबिसर क्यूं गए
SWARACHIT1240Cपत्थरबाजी रोज यहाँ
SWARACHIT1240Dकुछ भी भाता नही
SWARACHIT1240Eआंखों में अब नींद नही
SWARACHIT1240Fआओ मिलकर देश बचाएं
SWARACHIT1240Gऐसा एक सम्मान हूँ मैं
SWARACHIT1240Hअगर तुम कहो
SWARACHIT1240Iकल होगा कुछ खास
विजय कनौजिया की दस कविताएं

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