प्रीति शर्मा ‘असीम’ जी की दस कविताएं

१. ताज के सामने

ताज के सामने,
छाते में,
दुकान सजाए बैठा है।

वह एक आम आदमी है।
हर किसी के,
सपने को खास बनाए बैठा है।

ताज के सामने,
छाते में दुकान से सजाए बैठा है।

तस्वीरें बनाता है ।
ताज के साथ सबकी,
वह सब की,
एक खूबसूरत,
यादगार सजाए बैठा है।

वाह री कुदरत
जिंदगी की हकीकत

मौत कब्र में सोई है।
जिंदगी छाते के नीचे,
अपनी दिहाड़ी के लिए रोई है।


२. मुद्दे उठाए जाते हैं

मेरे देश में मुद्दे उठाए जाते हैं।
जिंदगी के असल सच से,
लोगों के ध्यान हटाए जाते हैं।

घटना को,
घटना होने के बाद,
देकर दूसरा ही रुख।
असल घटनाओं पर,
पर्दे गिराए जाते हैं ।

मेरे देश में मुद्दे उठाए जाते हैं।
जिंदगी किन हालातों में बसर करती है।
पंचवर्षीय सरकारों में ,
अमीर- गरीब के मापदंडों में,
मध्यवर्ग को,
बस वायदे ही थमाए जाते हैं ।
मेरे देश में मुद्दे उठाए जाते हैं।

जागे,असल पहचानिए।
जो कानों को, सुनाया जाता है।
आंखों को दिखाया जाता है ।
दो रोटी कमाने के लिए,
हम और आप
कितनी लड़ाई लड़ते हैं।
हमें मुद्दों में,
कितना बहलाया जा रहा है।


३. तंबाकू से जिंदगी बचाएं

जिंदगी तंबाकू की हवा में मत उड़ाएं।
आज जिसे पी रहे
एक नशे, एक उन्माद में,
ऐसा ना हो यह जिंदगी पी जाएं।
जिंदगी तंबाकू की हवा में मत उड़ाएं।

जिंदगी के एहसास को,
लंबी-लंबी सांसो में जी जाएं।
ऐसी सांस तंबाकू के साथ ना लें।
जिससे जिंदगी काले धुएं में खो जाएं।


४. घड़ी ने घड़े की कीमत बता दी

इस घड़ी ने घड़े की कीमत बता दी।
जो लोग मिट्टी से टूट चुके थे।
मिट्टी ने आज अपनी,
उनको अहमियत बता दी।
इस घड़ी ने घड़े की कीमत बता दी।

युगों- युगों से यह बताते रहे।
साथ मिट्टी के जीवन गीत गाते रहे।
इस घड़ी ने घड़े की कीमत बता दी।

जो लोग भूल चुके थे
आधुनिकता की दौड़ में,
घड़ा याद आता था।
अंतिम समय के मोड पे।
आज वही घड़ा याद आ रहा है।
जीवन घड़ी के,
इस छोर से उस छोर में।


५. रुपए की कीमत

अपने बच्चों को रूपए की कीमत बतायें।
जिंदगी और पैसा दोनों साथ -साथ चलते हैं ।

सड़कों पर हाथ फैला कर,
एक -एक रुपया मांगने वाले,
बच्चें की हालात की कीमत बतायें।
अपने बच्चे को रुपए की कीमत बतायें।

कैसे कमाया जाता है,
एक-एक रुपया,
जिंदगी की दौड़ में ,
रुपए की कीमत ना घटायें।

कारों में, भागती जिंदगी को ,
सड़कों के किनारे,
कैसे कमाया जाता है।
एक -एक रुपये का अर्थ समझायें।
अपने बच्चे को रुपए की कीमत बतायें।

मत खुले हाथों से, लूटा दे पैसा।
एक -एक रुपये के लिए
मोहताज जिंदगी का चेहरा दिखायें।

बूंद -बूंद से भरते हैं सागर
हर चीज की कदर के साथ ,
रुपए की कीमत बढ़ायें।
ना कि बेकद्र करके हर चीज को ।
रुपए की कीमत न गिरायें।
अपने बच्चे को रुपए की कीमत समझायें।


६. किताबें भी एक दिमाग रखती है

किताबें भी एक दिमाग रखती हैं।
जिंदगी के अनगिनत हिसाब रखती है।
किताबें भी एक दिमाग रखती हैं।

किताबें जिंदगी में,
बहुत ऊंचा मुकाम रखती है ।
यह उन्मुक्त आकाश में,
ऊंची उड़ान रखती है।
किताबें भी एक दिमाग रखती हैं।
जिंदगी के अनगिनत हिसाब रखती हैं।

हमारी सोच के एक -एक शब्द को,
हकीकत की बुनियाद पर रखती है।

किताबें जिंदगी को,
कभी कहानी, कभी निबंध ,
कभी उपन्यास, कभी लेख- सी लिखती है ।
किताबें भी एक दिमाग रखती हैं।
जिंदगी के अनगिनत हिसाब रखती है।

यह सांस नहीं लेती
लेकिन सांसो में,
एक बसर रखती है।
जिंदगी की रूह में बसर करती है।


७. मुझे समझौता ही रहने दो

जिंदगी में,
बहुत बड़े-बड़े ख्वाब तो नही देखें।
मेरी आँखों में ,
छोटे- छोटे गूंगे, सपने तो रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो

जिंदगी से,
मैंने सौदे तो नही कियें।
सच का सामना करने के लिए,
मुखौटे भी नही लियें।।
मेरा सच,
मेरे साथ तो रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो

जिंदगी से,प्यार किया।
छल तो नही किया।
शब्दों की सलाखों को,
मेरे दिल के आर-पार ही रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो

शिकवे और शिकायतों पर,
अब न वक्त जाया कर।
शिकायतें सब मेरी,
मेरे साथ, तो रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो

मैं किसी का, अपना कहाँ हो पाया।
पराया था, पराया ही रह गया।
मुझे अपना तो, रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो

देख लिया चेहरा दुनिया का,
मकसदों और सियासतों का है।
मेरा चेहरा, बस मेरा ही रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो।
मुझे समझौता ही रहने दो।


८. मानो या न मानो

मानो या न मानो
कुछ सच इन्सानियत को शर्मसार कर जाते है।
जब अखबारों में,
कत्लेआम, मार-धाड़,
चोरी और लूटपाट के समाचार आते है।
चौराहे पर जिंदगी नीलाम हो जाती है।
लेकिन लोगों की आवाज़,
गाडियों की रफ्तार में खामोश हो जाती है।
मानो या न मानो
कुछ सच इन्सानियत को शर्मसार कर जाते है।

समाज को शर्मसार कर जाते हो।
जब अखबारों में,
गरीब की बेबसी की मार्मिक कहानी,
भ्रष्टाचार -मंहगाई की मारा- मारी,
औरतों के सम्मान पर हमले किये जाते है।
तीन वर्ष की अबोध बच्ची से लेकर,
सत्तर साल की वृद्धा के,
बलात्कार के समाचार आते है।
और हर अपराध पर समाजिक सोच!
हमें क्या लेना – कह कर खामोश हो जाती है।
मानो या न मानो
कुछ सच इन्सानियत को शर्मसार कर जाते है।

रिश्तों को शर्मसार कर जाते है।
जब रिश्ते विश्वास पर विश्वासघात कर जाते है।
फर्ज निभाने वाले पर इल्ज़ाम लगायें जाते है।
घर को, घर बनाने की बजाए,
मतलब के अखाड़े लगाए जाते है।
ऐसे लोग समाज में मगरमच्छी आंसुओं के साथ
लोगों से सहानुभूति टटोलते पाए जाते है।
फर्ज निभाते नही और अधिकारों की बोली बोलते है।

जुल्म होता है, दहेज के लिए.
बेटी के पैदा होते ही प्रश्नचिन्ह लगाए जाते है।
लोग क्या कहेंगे खोखली सोच से,
आत्महत्या के समाचार अखबारों में आते है।

लडकियां ही नही
लड़कें भी विवाहिक रिश्तों में सतायें जाते है।
बहू तो बेचारी है कुछ कर नही पाते है।
मानो या न मानो
कुछ सच इन्सानियत को शर्मसार कर जाते है।

जिस समाज में लोग अन्याय के खिलाफ,
बोलेंगे ही नही।
वो इन्सान, समाज और रिश्ते
भविष्य में रद्दी भाव बिक जायेंगे।
अपनी इन्सानियत को अगर पहचान जाओंगे।
मनुज से देवता बन जाओंगे।


९. एक जगह

चलो चलते है
एक ऐसी जगह
जिंदगी जहां जा कर ,
जिंदगी लगे।
कुछ ऐसे ख्वाब बुनते है।
चलो चलते है

एक ऐसी जगह,
जहां रेत के ढेर हो।
हम उकेरे जिंदगी को,
अगले ही पल ,
जिंदगी के सत्य से,
कुछ इस तरह से मेल हो।
जीवन के सत्य का सुमेल हो।

उमर भर इंसान,
रेत के महल बनाता है।
अगले ही पल,
फिर जिंदगी को,
रेत -रेत पाता है।

चलो चलते है
एक ऐसी जगह
जहां ऊंचे -ऊंचे पहाड़ हो।
मुश्किलों के बाद,
जब ऊंचाइयों का अहसास हो।
लेकिन उन ऊंचाइयों पर,
जिस सत्य से साक्षात्कार हो।

जिन मुश्किलों को पार कर,
ऊंचा और ऊंचा चढ़ता रहा।
वो ऊंचाई सबको बौना कर गई।
तन्हा करके जिंदगी को,
तन्हाइयों की,
सफेद चादर से ढक गई।

चलो चलते है
जिंदगी जहां जा कर जिंदगी लगे।
चलो चलते है एक ऐसी जगह
जहां समंदर हो।
जिंदगी की गहराई लिये,
असीमता से,
मेल करती अनंतता हो।
भीतर हलचल लिये,
ऊपर से शांत अहसास हो।
जिंदगी में कुछ पास लिये,
और कुछ दूर जाता अहसास हो।

चलो चलते है
ऐसी जगह जहां जिंदगी का अहसास हो।
भीतर की भटकन का,
जहां खत्म हर अहसास हो।


१०. कुछ कर गुजरने का सवाल

जिंदगी में कुछ कर गुजरने का सवाल आता है।
जब हमें हमारी ना-कामयाबी-यों का ख्याल आता है।

वक्त के सवाल पर, जब सवाल आता है।
वक्त आएगा, हमारा भी यह ख्याल आता है।

जिंदगी में कुछ कर गुजरने का सवाल आता है।
हमारी काबिलियत पर उठी, उन तमाम उंगलियों का ख्याल आता है।

हम भी इस मुकाम पर पहुंच गए, जब यह सवाल आता है।
एक ठोकर से मिले, आसमान का ख्याल आता है।


POST CODE

SWARACHIT1804Aताज के सामने
SWARACHIT1804Bमुद्दे उठाए जाते हैं
SWARACHIT1804Cतंबाकू से जिंदगी बचाएं
SWARACHIT1804Dघड़ी ने घड़े की कीमत बता दी
SWARACHIT1804Eरुपए की कीमत
SWARACHIT1804Fकिताबें भी एक दिमाग रखती है
SWARACHIT1804Hमुझे समझौता ही रहने दो
SWARACHIT1804Gमानो या न मानो
SWARACHIT1804Iएक जगह
SWARACHIT1804Jकुछ कर गुजरने का सवाल

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.