डॉ. कन्हैयालाल गुप्त ‘किशन’ जी उल्फ़त के बारे में इस कविता में बता रहे हैं। ‘उल्फत’ ऐसी मनोवृत्ति है जो किसी को अपना मान उसके साथ सदैव रहने की प्रेरणा देती हो।
बात होनी ही चाहिए उल्फ़त की।
एक क्षण भी न भूले उल्फ़त की।विधाता भाग्य लिखा उल्फ़त की।
अब कोई मलाल नहीं उल्फ़त की।बस उम्मीद है अब उल्फ़त की।
सजती रोज बारातें उल्फ़त की।मेरी आँखों में अब कोई अश्क नहीं।
यह सौगात तो है बहुत प्यारी ईश्वर की।लब पे ईश्वर ही केवल रमता ‘किशन’।
हमने पायी है सौगात ईश्वर की।~ डॉ. कन्हैयालाल गुप्त ‘किशन’
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