मौसम तो आते रहते हैं और गुजर भी जाते हैं, लोगों को नए मौसम का बेसब्री से इंतजार रहता है। कलमकार मुकेश बिस्सा ने एक पुराने मौसम और कुछ यादों की चर्चा इन पंक्तियों में की है।
वो एक पल था
एक सोच तेरी मेरी
दिशा भी साथ वाली
रास्तें हुए अब अलग अलग
कसर बस यहीं तक था
था तेरा मेरा साथ यहाँ तक
सफर बस यही तक था।फुल तो हैं फूल
काँटों का चुभन भी भाता था
मेरे इस चेहरे में भी
तेरा अस्क नजर आता था
चाहत दरिया तूफानी का
असर बस यहीं तक था
था तेरा मेरा साथ यहाँ तक
सफर बस यही तक था ।कमियाँ थी हम दोनों में लेकिन
दिल को सब कुबूल था
मुहब्बत करना शायद
जीवन का एक भूल था
सपनो में खोए रहने का
रैन बसर यही तक था
था तेरा मेरा साथ यहाँ तक
सफर बस यही तक था ।वो हसता तेरा नुरानी चेहरा
बस इस दिल को भाता था
तेरी हर मुस्कान पे
दिल मेरा लुभाता था
खास नहीं कुछ मुझ में लेकिन
वफ़ा निभाने आता था
था तेरा मेरा साथ यहाँ तक
सफर बस यही तक था ।सुबह का सूरज सुहाना
और शाम भी हसीन था
न गुजरती थी रातें तेरे बिन
न गुजरता ही वो दिन था
कल तक का खुसनसीब मौसम
आज जरा ग़मगीन है
था तेरा मेरा साथ यहाँ तक
सफर बस यही तक था~ मुकेश बिस्सा