हंदवाडा के शहीदो को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा। जयहिंद, जय भारत
हाँ वो सेना का जवान है, फक्र है उसपे,अभिमान है।
दो माँओं का दर्द ये मुझसे, अब नही देखा जाता।
एक धरा ये माँ है उसकी, एक जना जिसने वो माँ है।
डटा रहा वो सीमा पर, अपनो से दूर रहा हर पल।
महफ़ूज़ रहे भारत इस ख़ातिर, सहता रहा जुल्म हर पल।
सर्दी गर्मी जाड़ा बरसात, कहाँ उसे रहम की आस।
उसकी भी तो माँ होती है, धरती माँ है जादा प्यारी।
अड़ा रहा वो डटा रहा हो, सीमाओं पर भिड़ा रहा हो।
आतंक के नापाक इरादे, नाकाम बराबर किए रहा वो।
हम सब बैठे बंद घरों में, अपने है, मनोरंजन है।
वहाँ पे वो ख़ंजर सहता है, तभी यहाँ ये मँजर है।
अभिनेता मरा या नेता मरा, पूरा देश ग़मज़दा रहा।
सबने अपने अन्दाजो में, उसे दुनिया से विदा किया।
क़सीदे पढ़े, भावनाएँ लिखी, सोशल खूब प्रलाप हुआ।
सितारा मरा, तारा मरा, अभिनय का नजारा मरा।
ये ना मरें है, शहीद हुए है, अपने ख़ातिर कब ये जिए है।
उठें कलम और लिख भी पड़े, इंक़लाब इनके ख़ातिर भी।
अभिनय का वास्तविक मंचन, कर इन्होंने दिखलाया है।
यहाँ सिनेमा देख के हम सब, आवाक हुए रोते रहते है।
सिनेमा-ए-सरहद देख लो अब, वो अभिनयकर्ता नही रहे।
वो अभिनयकर्ता नही रहे…हम सब और इस देश की ख़ातिर, हैं वो वहाँ शहीद हुए।
एक माँ रक्त रंजित हुई, एक आँचल अश्रु से भीग गया।
पिता किसी का, पति किसी का, भाई किसी का नही रहा।
मित्र किसी का, लाल किसी का, उम्मीदों की जान किसी का,
लड़ते हुए, उफ़्फ़ तक ना करते, अभिमान देश का नही रहा,
स्वाभिमान देश का नही रहा, स्वाभिमान देश का नही रहा।।
झुक जाए हम सब के सिर, उन शहीद सेनानियो पर।
राष्ट्र पताका भी झुक जाए, शहादत के सम्मान पर।
दो मिनट का मौन भी रखे, शान्ति मिले शहीदों को।
ऐसा कुछ उदघोश करे हम, बढ़े मनोबल परिवारों का।
जिनका लाल शहीद हुआ, सुर्ख़ियाँ बना अख़बारों का।
सनद रहे ,ये ध्यान रहे, उनका पहले सम्मान रहे।
महफ़ूज़ देश है,वजह मात्र, उनका ये बलिदान मात्र।
बातें अमनो-चमन की होती,वजह वो कतरा लहूँ का है।
मैं वंदन उनका करता हूँ, अभिनंदन उनका करता हूँ,
है देश उन्ही का क़र्ज़दार, नमन उन्ही को करता हूँ।
प्राण हुए न्योछावर उनके, मातृभूमि भूमि की रक्षा करते।
हम उन वीरों के गुण गाए, उनका भी त्योहार मनाएँ।
उनका भी त्योहार …~ भरत कुमार दीक्षित