AUGUST-2020: 1) तब गांव हमें अपनाता है ~ वर्षा यादव • 2) सादगी का मोल ~ तनुजा जोशी • 3) जीवन और संघर्ष ~ साक्षी सांकृत्यायन
१) तब गांव हमें अपनाता है
पक्की सड़कों की चाहत में,
अपनी पगडंडी भूल जाते है।
भूले भटके हम त्योहारों में ,
कुछ दिनों के लिए जाते है।
वो नहीं भूलता है हमको,
उतना ही लाड़ दिखाता है।
शहरी पोशाक में जब ,
थोड़ा संस्कार रह जाता है।
तब गांव हमें अपनाता है।
तब गांव हमें अपनाता है।
पुश्तैनी घर की डेहरी,
तब भी बलैया लेती है।
दीवारें पुरानी मिट्टी की,
भरपूर दुआएं देती है।
नरम मुलायम मिट्टी हमको,
अपने गले से लगाती है।
जब पत्थरों वाला शहर हमें
प्रवासी कह कर भगाता है।
तब गांव हमें अपनाता है।
तब गांव हमें अपनाता है।
जीवन को सुखी बनाने को ,
हम जीवन पीछे छोड़ आए।
सुख सुविधा के बदले में,
हरियाली से सौदा कर आए।
नए सपनों वाले नयनों में जब,
यादें छुटपन की आंसू बन आ जाते है।
भौरा बाटी के खेल खिलौने,
जब दृष्टि पटल पर छा जाते है।
तब गांव हमें अपनाता है।
तब गांव हमें अपनाता है।
२) सादगी का मोल
तड़क भड़क की इस दुनिया में
सादगी का मोल ना होता,
कुछ ऐसे रह जाते पीछे
जिनका कोई तोल ना होता।
आडम्बर की महफिल में
दब रह जाती काबिलियत,
असली प्रतिभा छिप जाती
कमतर पा जाती शोहरत।
भव्य इमारत में ना दिखता
नींव के पत्थर का बलिदान,
सुदृढ़ बनाता काया कोई,
शहंशाह बन जाता महान।
हुनर छिपा है जो किसी में
चहिये कोई निखारने वाला,
स्वयं की पहचान कठिन
चहिये जौहरी तराशने वाला।
बाह्य आवरण से परे
भीतर की परखो चमक,
गहरा पानी शाँत दिखे
गागर अधजल जाये छलक।
सादा जीवन उच्च विचार
जिसका कोई खोल ना होता,
शानो शौकत मात्र छलावा
सादगी का मोल ना होता।
३) जीवन और संघर्ष
ये कैसी विधा है जीवन की
संघर्ष के बिना नहीं चलती
हालात हमारे जो भी हों
ये साथ परस्पर ही रहती।।
संघर्ष में जब जीवन होता
उम्मीद कहीं चुपके कहती
सब सही एक दिन होगा ही
उम्मीद यही साहस देती ।।
बुझ गए चिरागों के जैसे
उम्मीद कहीं जब चुप रहती
संघर्ष ये चलता ही रहता
और चुप होकर सहती रहती।।
संघर्ष हमारे जीवन का
कल का वो उजाला ले लाता
जीवन के इसी अंधेरों से
खुद को मैं उज्ज्वलित कर लेती।।
संघर्ष के जीवन में अक्सर
सरिता सी मैं बहती रहती
कैसा भी मुझे संघर्ष मिले
मैं चुप ही सब सहती रहती।।
मेरी राहें जब मुश्किल हों
मैं खुद से राह भी चुन लेती
संघर्ष भरे इस जीवन से
मैं कभी नहीं कुछ भी कहती।।
कोरे-कागज की जैसी मैं
हर भाव को मैं लिखती रहती
संघर्ष बहुत ही मिले मुझे
मैं उफ़्फ़ तक कभी नहीं करती।।
संघर्ष के जीवन की “साक्षी”
बनकर के चुप अक्सर रहती
संघर्ष के इस अंधियारे में
किरणों सी मैं चमका करती।।