August-2021: 1) ज़िंदगी मेरे घर आना लेके प्यार ~ चाँदनी झा, 2) कलम चलती रही ~ प्रभाकर डंगवाल, 3) मैंने देखा ~ सूरज भंडारी
१) ज़िंदगी मेरे घर आना लेके प्यार
हर पल मौत आती बनके ज़िंदगी
कभी तन्हाई, कभी आँसू
कभी जुदाई, कभी अपनों के दूर जाने का गम,
कभी ताने समाज के, तो कभी परमाणु बम का डर।
कभी दहेज, सताये, कभी कुरूपता डराये।
धोखा, छल, भ्र्ष्टाचार से मन घबराये।
नफरत से, मिलावट से,
ज़िंदगी डरती, मौत की हर आहट से।
लूट जाने का डर, छूट जाने का डर,
प्यार में दिल टूट जाने का डर।
और भी आती कितने तरीकों से,
ज़िंदगी मौत बनके घर।
पर आना अब मेरे घर ज़िंदगी बनके ज़िंदगी।
अब आना ज़िंदगी मेरे घर, बनके खुशी।
बच्चों की किलकारी बन, ज़िंदगी की रवानी बन।
फूलों की खुशबू में, पायल की घुंघरू में।
भवरों की गुनगुनाहट में, हवाओं की सरसराहट में।
मेरी मुस्कुराहट बन, दिलों की चाहत बन।
ममता के रूप में, माँ के स्वरूप में।
पिता की दुआओं में, प्यार की छांव में।
हर राह में, खुशियों की चाह में,
अपनों के इंतज़ार में, बस आना इस बार,
आना ज़िंदगी लेके प्यार।
ज़िंदगी मेरे घर आना, इस बार लाना ख़ुशियाँ हजार
ज़िंदगी मेरे घर आना, बनके बसंत बहार।।
२) कलम चलती रही
क्या लिखूं ? कैसे लिखूं ?
लिखूं भी या न लिखूं ,
रातभर सोचता रहा मैं।
कलम छन भर रुकी,
गर्दन भी झुकी,
फिर मन को अपने पूछता रहा।
कुछ देर उठा, कुछ देर बैठा,
उलट-पलट के कागज देखता रहा मैं।
मन ही मन सोचता रहा,
फिर बातें बदलती रही,
फिर रुका नहीं,
कलम चलती रही।
३) मैंने देखा
मैंने हवा को चलते हुए देखा।
मैंने आग को पानी में मिलते हुए देखा।
मैंने शाम को ढलते हुए देखा।
मैंने जाम को चलते हुए देखा।
मैंने ख्वाब को हकीकत होते हुए देखा।
मैंने सच को झूठ और झूठ को सच होते हुए देखा।
मैंने हंसते को रोते और रोते को हंसते हुए देखा।
मैंने इंसान के नियत में खोट होते हुए देखा।
मैंने अपनों को गैर और गैरों को अपना होते देखा।
मैंने आज की मोहब्बत को बाजार में नीलाम होते देखा।
मैंने मां के आंखों में आशा और पिता के आंखों में आंसू देखा।
मैंने हर एक रिश्ते में मिलावट देखा, बस मां की ममता में मिलावट होते नहीं देखा।
मैंने अपनी खुश्क आंखों से लहू छलका दिया, एक समुद्र कह रहा था पानी चाहिए।
मैंने देखा यहां सब अपना था, जब लगी ठोकर तब पता चला सारे सपने थे।
मैंने जिंदगी को अकेले ही काटे हुए देखा, लोग तो बस यूं ही साथ निभाने की तसलियां देते हैं।
मैंने आज गधों को झुंड में शेर बनते देखा, और शेर को असहाय होते देखा।
मैंने आज मां की ममता को बेसहारा होते देखा,और इंसानियत को खत्म होते देखा।
मैंने सरेआम बाजार में जिस्म गिरते देखा और मैंने सरेआम जिस्म को ठेकेदारों को फिरते देखा ।
मैंने आज अपने अंदर से सब कुछ एक- एक कर सब कुछ रुखसत होते देखा।