चलो मनाएँ कृषि पर्व को
बैशाखी है सबकी साथी।
कृषियों के दिल की है चाभी
आई है अपनी बैसाखी।।
खेतों में फ़सलें आ जाती
आती है अपनी बैशाखी।
बच्चे बूढ़े खुश हो कहते
आई है अपनी बैशाखी।।
खड़ी फसल को देख कृषक
के मन को कितना है हर्षाती।
कृषियों के त्योहारों वाली
आई है अपनी बैसाखी।।
सिक्खों का नववर्ष भी लाती
जब भी आती है बैसाखी।
कटेंगी फसलें खेतो की अब
आई है अपनी बैसाखी।।
पहली बार हुआ था ऐसा
नहीं मनी थी वो बैसाखी।
अंग्रेजों के राज में थी एक
दर्द भरी खूनी बैसाखी।।
फसल लहलहा रही खेत में
लॉकडाउन ने खुशियाँ बांधी।
कोरोना की वजह से फिर से
नहीं मनेगी ये बैसाखी।।
~ साक्षी सांकृत्यायन