हिन्दी कलमकार ऋतुराज का वर्णन अपनी कविता में कर रहे हैं। बसंत ऋतु के आने से चारों ओर प्रकृति का नया रूप दिखाई देता है और सभी प्राणियों में हर्ष की एक नई लहर सी दौड़ जाती है।
बंसत पंचमी
खिल उठा प्रकृति का कण-कण
चहुँओर अरूण की लालिमा छाई है
पीत वसन धारण कर धरा
खुशहाली का संदेश लाई है।
कुसम कलियों संग है सुशोभित
पवन में प्रेम की मादकता छाई है
और लिए हाथ में साज माँ वीणापाणि
अज्ञान दूर करने आई हैं।
सरिता बहे कल-कल
मौसम ने ली अंगडाई है
खग-मृग पिक, मयूर कर रहे नृत्य
नभ में काली घटा छाई है।
मानव हदय भी है व्याकुल
याद जीवनसाथी की आई है
सबके हदय मे भरने हर्ष और उल्लास
माँ बंसत पंचमी आई है।
बंसत ऋतु
आओ करें स्वागत माह फ़रवरी का,
ऋतुओं का राजा बसंत ऋतु का
चारों ओर है हरियाली फ़ैली,
मस्त-मगन हो हवा है चली।
सूर्य की किरणें है बड़ी सुखद,
देखो आया ऋतुराज बसंत।
फ़रवरी है प्रेम का मास,
बिखरे चारों ओर हर्ष और उल्लास।
माह फ़रवरी से होती बसंत ऋतु की शुरुआत,
होली, बसंत-पंचमी है प्रमुख त्योहार!
बसंत ऋतु है लायी बहार,
किसानों के खेत लहलहायें
सरसों में है फ़ूल उग आये।
आम के वृक्ष में भी बौर है आयी,
देख खेतों की हरियाली
किसानों को हो रहा सुखद एहसास,
ऋतुराज बसंत है खास।
वासंती रंग से सराबोर
ये ऋतु है एक सुखद एहसास!
बंसत
मेरे मन के आंगन में
सुधि चंद्रप्रभा है फैली
तन सिहर सिहर जाता
यह कैसी दशा है मेरी।
लखकर भी खोज न पाता
प्रकृति की यह कैसी माया
क्यों मन में उतर ही आई
जीवन दर्शन की ऐसी छाया।
मन की आंखों में झलका
लेकर मनुहरी रंगों की धारा
नए रूप अनूप संग जीवन में
छविमय बसंत है आया।
देखा सुखिमय बसंत में
कोमल कलियों का खिलना
मधु से गीली गलियों में
आकर अलियों का मिलना।
कोयल कूके कुहू-कुहू
अमुआ पे बौर जो आई
सोलह श्रृंगार किए सी
सुंदर बसंत ऋतु आई।
प्यारा बंसत
झूम रही है हर डाली कोयल कूक रही मतवारी
पवन ले रहा झकोरे तन पुलकित मन ले हिलोरे
आ गयी ओढ़े पीली चुनरिया जैसे महलों की रानी
ॠतुराज बंसत में भौंरे कैसे देखो करते है मनमानी
लाजवाब गोटे वाली पीली चुनर पर लहंगा धानी
पवन पुरवाई चलती है अंग को छूकर करे मनमानी
बहुत ही सुन्दर मंडप सजा है आसमान नीला परिधानी।
चहक रहे सब मोर पपीहे नृत्य जैसे परियों की रानी।
बसन्त ऋतू के आगमन पर
बसन्त ऋतू के आगमन पर
आओ प्रिये कुछ गुनगुनाए
हाथों में हाथ डालकर
कुछ मधुर नगमे गाए
छोड़कर सारी दुनिया की बातों को,
बस बसन्त ऋतु बन जाए
ना कोई तनाव, ना कोई
दुःख-दर्द हो हमारे साथ
कुछ पल यूँ ही प्यार से बिताए
बसंत है ऋतुराज
भगवान ने इस ब्रह्मांड में
छः ऋतु हैं बनाये
बसंत, गर्मी, वर्षा, सर्दी, हेमंत और शिशिर
इक आये तो दूजी जाए
बसंत ऋतु सब ऋतुओं
का सरताज कहाये
सृष्टि के हर जीव में नई
ऊर्जा का संचार कराए
सरसों पर मानो सोना है खिलता
जौ और गेहूं पर बालियां लहराती
आमों पर जब बौर आ जाता
हर तरफ तितलियां मंडराती
फूल खिलते उपवन उपवन
खुश्बू चारों ओर फैलाये
कोयल जाकर डाली डाली
अपना मधुर राग सुनाए
पीले फूल खिले सरसों पर
सफेद बैंगनी है कचनार
धरा का आनंदित है कण कण
कुदरत का है चमत्कार
फूल फूल पर बैठा भंवरा
मस्ती में वह गुनगुनाए
उसकी गुंजन को सुनकर
मेरा मन भी चंचल हो जाये
डाली डाली पर छा रही
बसंत में यौवन की बहार
नवयौवना के चेहरे पर
जैसे आ रहा हो निखार
नई कोंपलें जब पेड़ों पर आएं
कुदरत ने जैसे श्रृंगार किया हो
ऐसा मनभावन दृश्य जैसे
शिशु ने नया जन्म लिया हो
माघ महीने के पांचवें दिन
इक जश्न मनाया जाता है
विष्णु और कामदेव की पूजा होती है
यही बसंत पंचमी त्योहार कहलाता है
ऋतुओं का सरताज
होली के लोक गीत गूंजते,
सुनलो सुनलो मधुर मधुर मकरंद आवाज
आया वसंत फिर झूम झूम के अब,
ऋतुओं का ये तो होता है सरताज.
आज पलाश फिर सांवरा दुल्हन सा
नव यौवन सा मन भावन करके श्रृंगार,
सुर्ख़ लाल चटकीली सी सूंदरआभा हर सू,
पलाश बना है देख लो सच पेड़ों का सरदार.
शीत,शरद बसंत ऋतु और आई है हेमंत,
ऋतुएं सब,ग्रीष्म ऋतु वर्षाऋतु औऱ शिशिर,
परम्पराएं हैं, आंखे हैं हम सब की झिरमिर,
मर्यादायें बसी हुईं संस्कार ह्रदय के भीतर.
सर्वश्रेष्ठ का सम्मान और प्यार वसंत को,
नव वर्ष आया करो अब प्रणाम वसंत को,
निर्मल मन को अपने और इस जीवन को,
तुम उज्ज्वल प्रफुल्लित कर लो, इतरा लो.
आओ न आपस मे सब मिल जुल जाओ,
प्रकृति के नियमों में अब तो ढल जाओ,
सुखमय जीवन लीला सबकी,हो जाएगी,
बात ऋषि मुनियों की समझ जो आजायेगी.
प्राकृतिक तत्त्व सौंदर्य, वृक्ष, और पहाड़,
पशु ,पक्षी, का जीवन मीठा सा कलरव,
धर्म हमारा पहले माह की ये शुरुआत,
माह चैत्र का,अलख, नव नव अनुभव.
चैत वैशाख चार चांद सुंदरता को लेकर,
वसंत सुहाना प्यारा प्यारा है सजता,
नव वर्ष मार्च, अप्रैल की ख़ुशियाँ लेकर,
पहले पहले ही, दौड़-दौड़ कर आ जाता.
बसंत का मौसम
बसंत का मौसम लहरा कर आ गया
ज्यूँ सोई हुई आँखों को
उजाला कोई जगा गया
चारों दिशाओं मे फैल गई
ख़ुशबू की एक मादक लहर
पवन ने भी ओढ़ ली
सतरंगी रंगों की कोई कोरी सी झीनी चुनर
अनगिनत फूलों के मुखड़े निराले हैं
अपने मे खोए-खोए सारे नज़ारे हैं
कहीं कलियों की चटकन है
कहीं फूलों का खिलना है
कहीं पत्तों का हिल-हिल के फूलों से मिलना है
रौनक ही रौनक है बगिया के आँगन मे
लगता है आज किसी काली का गोना है
चंपा की थापें हैं, गेंदे की ढोलक हैं
सुंदर गुलाबों के गीतों की रोनक है
ठंडी बयारों की सुर लहरी फैली है
थिरकन पर नाच रही हर क्यारी सजीली है
आज मै भी इसमे खो जाऊँ शायद
फूलों सी रंग जाऊँ सज जाऊँ शायद
लताओं की पहनूँ मै लहरदार पायल रे
मोगरों के गुच्छों के पहन लूँ मै कंगन रे
मन के विषादों को ले उड़ा बसंत रे
दे रहा बदले मे फागुन के गीत रे
बिन कारण मनवा ये महक-महक जाए
हाए रे बसंत क्यूँ बार-बार न आए
तुझको सजा लूँगी आँचल मे अपने
गुँथूँगी केशों मे गजरों के गहने
ओ रे बसंत प्यारे तुझको प्रणाम
अगले बरस फिर आना लेके ख़ुशियाँ तमाम