जिस देवी ने है मुझे लिखा, उस पर मैं क्या लिख सकता हूँ
जिस देवी से सीखा पढ़ना, उस को कितना पढ़ सकता हूँ
जब आँख खुली तो माँ ही थी, उसकी साँसों से जन्मा था
बस उसको ही समझा था मैंने, बाकी सब कुछ तो भ्रम सा था
हर पाठ पढ़ाया जीवन का, जिंदगी का मतलब बता दिया
मेरे चेहरे की मुस्कानों पर, जाने क्या क्या था लुटा दिया
हर मुश्किल में माँ बनी दोस्त, चेहरे पे शिकन ना आने दी
बस बच्चों की खुशियों खातिर, जाने क्या क्या कुर्बानी दी
तुम ही देवी तुम ही भगवन, तुम ही मेरा संसार हो माँ
मेरी इस जीवन नैया की, एक तुम ही तो पतवार हो माँ
सब खुशियाँ तुम को अर्पण हैं, मेरा सब कुछ तुम्हें समर्पण है
तेरे इस दुलारे शंकर को, माँ तेरी सदा जरूरत है
~ शंकर फ़र्रुखाबादी