हमने गरीब बन कर जन्म नहीं लिया था
हां, अमीरी हमें विरासत में नहीं मिली थी
हमारी क्षमताओं को परखने से पूर्व ही
हमें गरीब घोषित कर दिया गया
किंतु फिर भी
हमने इसे स्वीकार नहीं किया
कुदाल उठाया, धरती का सीना चीरा और बीज बो दिया
हमारी मेहनत रंग लाई, फसल लहलहा उठी
प्रसन्नता नेत्रों के रास्ते हृदय में
पहुंचने ही वाली थी कि अचानक
रात के अंधेरे में, भीषण बाढ़ आई
और हमारे भविष्य, भूत और वर्तमान को
अपने साथ बहा ले गई
हमारे साथ रह गया
केवल हमारा हौसला
इसे साथ लेकर चल पड़े हम
अपनी हड्डियों से
भारत की अट्टालिकाओं का
निर्माण करने
शायद बाबूजी सही कहते थे
मजदूर के घर
गरीबी के गर्भ में
पलायन ही पलता है।
~ आलोक कौशिक