भारत में हुये लॉकडाउन से त्रस्त दिहाड़ी मजदूर की पीड़ा
वह दिन भर फावड़ा चला रहा था,
रूखी-सूखी ही कुटुम्ब को खिला रहा था,
हाय कोरोना, तुझे वो बद्दुआ दे रही थी,
बच्ची रोटी-रोटी चिल्ला रही थी।
सुन नन्ही गुड़िया का करुण क्रन्दन,
समझदारी दिखा रहा था नन्दन,
पा भाई से झूठी तसल्ली वह सुसका रही थी,
बच्ची रोटी-रोटी चिल्ला रही थी।
देख कर उनकी यह करुण क्रिड़ा,
हृदय मे हो रही थी असह्य पीड़ा,
माँ पड़ोसी यहां हाथ फैला रही थी,
बच्ची रोटी-रोटी चिल्ला रही थी।
हाय कोरोना, तेरे आगे वह मजबूर था,
उसकी गलती इतनी की वह मजदूर था,
पेट की ज्वाला उसकी हिम्मत पिघला रही थी,
वह रोटी-रोटी चिल्ला रही थी।
वो महलों मे बैठ बन्दी का संदेश दे रहे थे,
जो हर हफ्ते ही विदेश जा रहे थे,
देशप्रेमी है वो आज जिन्हे यहा से वास रही थी,
बच्ची रोटी-रोटी चिल्ला रही थी।
~ प्रभात कुमार गौतम