भाग दौड़ की जिंदगी- अमित मिश्र की स्वरचित रचना आजकल की व्यस्त जीवन शैली में छूट जाने वाली कुछ बातों को बताती है। कुछ समय स्वयं के लिए निकालना बहुत आवश्यक होता है।
इस भाग दौड़ की जिन्दगी में रंगत खो जाती है
दिन से हो जाती है रात मगर शाम नहीं आती हैदोस्तों के संग भले ही बेतहाशा हँस लेते हैं हम
पर बचपन वाली चेहरे पर मुस्कान नहीं आती हैपढ़ लिख कर जब बड़े हुए शहर में आ बस गये
एसी वाले घर में बाग वाली एहसास नहीं आती हैसोने को मखमल की सेज यहाँ पर मिलती है हमें
लेकिन सुकून खेत खलियान वाली नहीं आती हैरंग बिरंगे व्यंजन हमें यहाँ खाने को मिल जाते हैं
लेकिन माँ की सूखी रोटी की स्वाद नहीं आती हैखो जाती है शांति अकसर इस शोर युक्त शहर में
गाँव जैसे मंदिर की आरती आवाज नहीं आती है~ अमित मिश्र
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/388916992015479
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