कलमकार मुकेश बिस्सा लिखते हैं कि अब तो परिवर्तन हो ही जाना चाहिए, जहाँ उनकी कल्पना के अनुसार एक नई दुनिया और उत्तम स्वाभाव वाले लोगों का साथ मिले।
कुछ तो परिवर्तन
कहीं कुछ तो परिवर्तन चाहिए
अलग सी एक दुनिया चाहिएजहां कदर नहीं मेरी गजल की
मुझे महफ़िल से उठना चाहिएआता है अब तो तैरना
मुझे सागर में बहना चाहिएबेवजह सुनना ठीक नहीं
अपनी बात कहना चाहिएहाथ की लकीरों में कुछ नहीं
मेरे हाथों को चलना चाहिएरख लिया खुद को गुलाम बहुत
अब इंकलाब तो होना चाहिए~ मुकेश बिस्सा