कलमकार महेश राठोर शहर के हालात का जिक्र कर रहे हैं, उन्होंने अपना अनुभव इस कविता में साझा किया है।
इंसानो तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हर
खामोशी की चादर में लिपटा है सारा शहर,
सुनसान सी हर गली सुनसान सा हर चौराहा।
अकेले अकेले खाली-खाली जलती दोपहर
इंसानों तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हर,
खामोशी की चादर में लिपटा है सारा शहर।
परेशान है वसुंधा पर हर जीव कारण तुम्हारे
छीन लिए स्वार्थ के कारण उनके भी सहारे,
काट डाले पेड़, काट डाल डाली, रोते हैं घोसले।
जीवो की आत्मा है दुखी देख मानव का कहर
इंसानों तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हर,
खामोशी की चादर में लिपटा है सारा शहर।
~ महेश राठोर “सोनू”