नीरज ने इस कविता में इंसान को उजाला फैलाने वाले दीपों का निर्माता/कुम्हार बनने की राय दी है। कहने का भाव है कि हमें ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे दुनिया प्रकाशमय होती रहे।
कुम्हार बना मिट्टी से, मिट्टी के दीये बनाये।
अपने आप से अपने आप को बनाने के
हुनर से ‘नीर’ का मन अचंबित हो जाये।।जोड़ तोड़ करता जीवन को,फिर जीवन कैसे चलाये।
ईर्ष्या – द्वेष के धागों पर क्यों चतुराई के मोती चढ़ाये।।जगमगाते दीयो ने कभी ना किसी से समझौता किया।
अपनी रौशनी से दूर-दूर तक खूब उजाला किया।।अपने जीवन को तू कुम्हार के मन सा बना।
अपने कर्म से जग में सुंदर दीयो सा जगमगा।।~ नीरज त्यागी
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