ख़ाली, सुनसान, विरान सा हो गया है आजकल मेरा टाउन
लगता! है वक्त की मार ने मानव को करा दिया हैै लाॅकडाउन।
परिवार का मोह छीन ले गया है आज का स्मार्टफोन
कोरोना वायरस से कैसे बचें हर फोन में है बचाव की रिंगटोन।
करना नहीं कभी अपने हौसले डाऊन
सूर्य उदित ज़रूर होगा करके शा्राऊन।
इंसानियत सदैव ज़िन्दा रक्ख़ो मेरे भाई
हर समस्या की मिलती है प्रकृति में दवाई।
हो गया है आज कोरोना वायरस के आगे मानव फ़ैल
प्रकृति और वक्त ख़ेल रहे हैं अपना ख़ैल।
घर पर रहो कुछ दिन न हो प्राणी मानव तू हताश
जल्द ही होगा उर्द्धित नवभोर का प्रकाश।
बाहर निकलेंगे तो कोरोना वायरस रूह को बना देगा लाश
हाथों में समेटे हों पर बिखरे पड़े हैं ताश।
ज़रूरी नहीं है सैनेटाइज़र लगाना
पर! पुनः पुनः हाथ साबुन से तुम धूलाना।
मत! हो मानव पैसों के ढेर को देखकर अन्धा
छोड़!दे प्रकृति को परेशान करने वाला धन्धा।
क्युं ल़गता है नादान कलम लोग बदल गये हैं
कोई नहीं रहना चाहता पाक् सब अंहकार से लद गये हैं।
रक्ख़ो सब्र होगी उजियारा
कोरोना वायरस ने किया है जो अंधियारा।
इस विपदा की घड़ी में बनो एक दूसरे का सहारा
मिल ही जायेगा कोई नया किनारा।
लौट आयेगा रचनाओं में खेम दोबारा
प्रकृति का बचाव करो बनो पेड़ पौधों, वन्यजीवों का सहारा।
हो जायेगा कोरोना भी एकदिन क्लीन बोल्ड
जैसे हर पीली वस्तु नहीं होती है गोल्ड।
~ खेम चन्द