विकट समय विकराल घड़ी
तू पंछी पछतायेगा,
रहले कुछ दिन पिंजरे में,
या प्राण पखेरू उड़ जाएगा,
विकट समय विकराल घड़ी
तू पंछी पछतायेगा,
तू सदियों से उड़ने की सोचे
धरती का तू चांडाल रहा,
प्रकृति में हाहाकार मची,
सज़ा तेरा बाजार रहा,
अब तो थोड़ा सहम जा बन्दे,
या फिर मुंखी खायेगा,
विकट समय विकराल घड़ी
तू पंछी पछतायेगा,
रहले कुछ दिन पिंजरे में,
या प्राण पखेरू उड़ जाएगा,
~ विकास बागी