Post category:COVID19 / कविताएं Post published:April 9, 2020 कोरोना का आपातकाल घंटियां ख़तरे की बज रहीं। योजनाएं हैंगरों में हैं टंगी। आपदाएं भूख की हैं जगी। मातम की अर्थियां सज रही। चल दिए ओढ़ चादर बेबसी की। गालियां दो और रोटी जग हंसी की। कुर्सियां हमको तज रही हैं। ~ अनिल अयान Tags: SWARACHIT607E, कोरोना वायरस, तालाबंदी Read more articles Previous Postकैसा ये वक़्तNext Postगाँव की याद You Might Also Like प्रेम October 26, 2019 नया साल January 3, 2020 वो तुम्हें हर जगह दिख जाएगा May 2, 2020 हाथी और दर्जी January 14, 2020 हिंदी दिवस पर विशेष कविताएँ September 14, 2020 इस मन की पीर लिखूँ कैसे March 30, 2020