कोरोना संकट और लॉकडाउन से जुड़ी कविताएं

कोरोना संकट और लॉकडाउन से जुड़ी कविताएं

कोरोना महामारी के कारण भारत में भी लॉकडाउन पसरा हुआ है, हिन्दी कलमकारों ने लॉकडाउन और जन-सामान्य की समस्याओं को जाहिर करते हुए अपने मन के भाव इन कविताओं में लिखें है। वर्ष २०२० के महीने में लगा हुआ लॉकडाउन जून माह में भी समाप्त नहीं हो पाया है; इसका मुख्य कारण कोरोना महामारी है जिसका संक्रामण रुकने का नाम नहीं ले रहा है।

उम्मीद ~ नीलेश मालवीय “नीलकंठ”

चार दिनों का सोचा था,
यह तो महीने बीत रहे हैं,
हम तो अपने घर में आ गए,
रूम के मालिक खींज रहे हैं,
कुछ सामान पड़ा है कमरों में,
उसको वापस ला नहीं सकते,
लॉकडाउन लगा है शहरों में,
हम तो वहां आ नहीं सकते,
बहुत काम अब रुके पड़े हैं,
इकट्ठा पैसा हम लगा नहीं सकते,
हम आपको दर्द बता सकते पर,
मकान मालिक को समझा नहीं सकते
रूम के किराए को माफ करवाने के,
हम सब छात्र हैं हकदार,
अब उम्मीद तुम ही से है,
कुछ तो न्याय करो सरकार।

नीलेश मालवीय “नीलकंठ”
कलमकार @ हिन्दी बोल India

हो महान करके दिखलाओ ~ देवेंद्र पाल

अनेकता मे एकता है हिन्द की विशेषता
गर है एकता तो करके दिखलाओ

सारे जहां से अच्छा हिन्दोसता हमारा
इस ध्येय को तुम भूल न जाओ

था हमारा मुल्क कभी सोने की चिड़िया
अब इसे हीरा की बनाओ

भारत मेरा जगत गुरु था, क्या फिर से होगा
इसमे भी तुम जोर लगाओ

आज की इस महामारी मे भारत जीतेगा
गर हो महान करके दिखलाओ

देवेंद्र पाल
कलमकार @ हिन्दी बोल India

महामारी और आज़ादी ~ हरीश शर्मा

आज सभी परिंदे आज़ाद घूम रहे है।
वो इन खुली फिज़ाओं को चूम रहे है।।
नहीं है आज उन्हें किसी शिकारी का डर।
जो कभी हर लेता था उनके प्राण,
और फिर काट देता था उनका सर।।
ये वक़्त ने आज कैसा पहिया घुमाया है।
शिकारी खुद पिंजरे में कैद होने आया है।।

हरीश शर्मा
कलमकार @ हिन्दी बोल India

ये कैसा बरस आया है? ~ धीरज गुप्ता

ये कैसा बरस आया है?
कुदरत ने खूब कहर ढाया है
महामारी फैली दुनिया में
जंगल भी जल गया है

ये कैसा बरस आया है?
कमर टूट गयी मजदूरो कि
उनसे जो पलायन कराया है
जंगल में लाखो जानवर मर गये
ये प्रकृति ने कैसा रूप दिखाया है

ये कैसा बरस आया है?
अर्थ-व्यवस्था तहस नहस हुई
दुनिया पर आर्थिक संकट आया है
कही बारीश कही ओले कही तुफान
कुदरत ने ईस धरती पर कैसा सितम ढाया है
ये कैसा बरस आया है?

धीरज गुप्ता
कलमकार @ हिन्दी बोल India

गाँव तुझसे पूछ रहा था ~ शिम्‍पी गुप्ता

अपने पेट को भरने की खातिर
दो वक्त की रोटी की खातिर
अपने परिवार के भरण-पोषण की खातिर
बाल बच्चों के सुख की खातिर
जब तू गाँव को छोड़ रहा था
तो गाँव तुझसे पूछ रहा था।

अपने उन्नत जीवन की खातिर
जीवन को गतिशील बनाने की खातिर
अपने सपनों को पूरा करने की खातिर
कुछ पाने की चाहत की खातिर
जब तू गाँव की पगडंडी से जा रहा था
तो गाँव तुझसे पूछ रहा था।

अपने अनगिनत सपनों को
सामान की पोटली में बाँधकर
आशा की सुंदर चमक को
अपनी दोनों आँखों में सजा कर
जब तू गाँव के पुश्तैनी घर से जा रहा था
तो गाँव तुझसे पूछ रहा था।

कुछ जरूरी सामान, बीवी-बच्चों को
अपने साथ में लेकर
अपने गाँव की मिट्टी और घर को
अपनी आँखों में लेकर
जब तू गाँव से शहर जा रहा था
तो गांँव तुझसे पूछ रहा था।

कि क्या तुम सचमुच चले जाओगे?
फिर कभी नहीं लौट कर आओगे?
शहरों के राजमार्गों में खो जाओगे?
वहीं अपना जीवन बसा लोगे?
जब यह प्रश्न लिए तू जा रहा था
तो गाँव तुझसे पूछ रहा था।

जिस पगडंडी को बनाया राजमार्ग
आज उसी पर तेरे पद लहूलुहान है
घर-परिवार छोड़ा, गाँव को छोड़ा
छोड़ दी अपनी पुश्तैनी जमीन
जिससे नाता था जन्म का
छोड़ दिया उसे ही बेगाना समझकर
जिस शहर की खातिर
उस शहर ने आज तुझे ही छोड़ दिया
यही वह प्रश्न था
जो गाँव तुझसे पूछ रहा था।
जो गाँव तुझसे पूछ रहा था।

शिम्‍पी गुप्ता
कलमकार @ हिन्दी बोल India

आदतें आदमी की ~ अजय मौर्या ‘अंजान’

देखना वो अब भी नहीं
अपनी आदतों में सुधार लाएगा
महामारी खत्म होते ही
सब कुछ भूल जाएगा।

वो फिर से जंगलों को काटेगा
नए रास्ते और घर बनायेगा
दोस्तों संग शिकार पर जाएगा।

वो दुगुना कारखाने बनवायेगा।
चिमनी से हवा में ज़हर मिलाएगा
और गन्दे पानी को नदी में बहाएगा।

वो लान्ग ड्राइव के नाम पर
गाड़ी लेकर निकल जायेगा।
ईंधन तो खर्च करेगा ही,
कितना धुंआ देती है
उसकी गाड़ी ये भुल जाएगा।

विक ऐंड पे क्लब में जायेगा।
एल्कोहल के साथ
नान-वेज बड़े चाव से खायेगा।
ऊंचे वायलूम में डीजे भी बजाएगा।

वो नेता है
धर्म-मजहब पे
लोगों को फिर से लडा़येगा।
हेल्थ और एजुकेशन से ज्यादा
फिर से डिफेंस में पैसा लगाएगा।

अमीर को और अमीर
गरीब को और गरीब
और ना जाने और कितने को बेघर बनायेगा।
उसके राज में कितने ही भुखे मरेंगे
पर वो सरकारी राशन को बेच खाएगा
या गोदाम में ही उन्हें सडा़येगा।

वो एक इंसान हैं।
भुला था, भुला है और फिर से भुल जाएगा।
अंधविश्वास, रूढ़िवाद, जातिवाद, धर्मवाद
को दिल से अपनाएगा।
तार्किक और वैज्ञानिक बात जो करेगा
उसे समाज से दूर भगायेगा।
भीड़ तंत्र की निति अपनाएगा।

देखना वो अब भी नहीं
अपनी आदतों में सुधार लाएगा।

अजय मौर्या ‘अंजान’
कलमकार @ हिन्दी बोल India

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