कोरोना वायरस से पूरी दुनिया परेशान है और इससे बचाव के लिए सब अपने घरों में अकेले रह रहें हैं। लोगों से दूरी बनाना अनिवारी हो गया है, यही सब माहौल देखते हुए कलमकार इमरान संभलशाही ने अपने विचार इस कविता में लिखे हैं।
बन्द पड़ा हूं
ससुरा, घर में इकदम
सोते, जागते
हाय! दूर है तुम हमरात-भर सोना
बस सुबह को उठना
दिन-भर रोना
अब शाम को जगनाअज़ान हुई मगरिब की
नमाज़ पढ़े भी कैसे हमदिन- रात चला जो,
ठहर रहा ना कोरोना
टांग मोड़कर बैठा
सिसक रहा जादू टोनाछड़िक नहाता केवल
पानी हुआ है फिर भी कमकिचेन भया शकाहरी
मटन ना पाया, चिकेन न खाया
साग-भात के चक्कर में,
प्याज भी दमभर खूब रुलायाबाल्टी-लोटा ठेला-ठाला
हुआ हाथ है, अब पूरा बेदमएनडीटीवी हुंकार किया
सफा करो! तुम पंच बार हाथ
कर्फ्यू में निकलना नहीं
प्रधानमन्त्री का निभाओ साथखुद पे किया सितम
करे तो करें, कैसे कोई भी रहमये कहावत सही हुआ
घर भी भया है सूना घर
आसमां की चिड़िया भी,
खोज रही है मछलीघरहम रोएं, तुम भी रोवो
कर भी लो, आंखो को नमबुरा हुआ है
रिश्तों में, भव सागर की
छोड़ फ्रिज का पानी,
खोज रहे हो गागर कीगंगा सूखी, यमुना सुखी
भाग रही है, घर की ज़मज़महुआ हूं एकांतवास
करे पड़ा हूं सबसे वर्चुअल बात
लिख रहा हूं कविता
पिरो रहा हूं अपनी जज़्बातखुल्लमखुल्ला लिखा हूं,
किसी से क्यों करूं शरम~ इमरान सम्भलशाही
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