कहो सहेली ~ वंदना मोहन दुबे
कहो सहेली इस लॉकडाऊन में,
घिस-घिस जब तुमने बर्तन माँजे।
मल-मलकर रसोई के आले पोंछे,
एमए, बीए, एमबीए की डिग्री,
काम आई क्या……. बोलो न सहेली।
कहो सहेली ले झाड़ू जब तुमने,
खटिया, चरपइया नीचे झुक-झुक,
कोनों से झाड़ बुहारा कूड़ा-
फ़र्स्ट डिवीज़न वाले नंबर,
काम आये क्या….. बोलो ना सहेली।
कहो सहेली जब पोंछा फिनायल
में धो-धोकर कमर टेढ़ी, देह हलकान हुई,
रासायनिक समीकरण और सूत्र केमिस्ट्री
के काम आये क्या….. बोलो ना सहेली।
कहो सहेली जब चूल्हे चौके में
घंटों समय बिताया
नमक मसालों में तालमेल बिठाया
तब साइंस, आर्ट, कॉमरस में
कोई भेद नज़र आया क्या… बोलो ना सहेली।
कहो सहेली बच्चों ने घर भीतर,
जब तुम्हारी छाती पे ग़दर मचाया।
ग़ुस्सा दिला तुम्हें चिल्लवाया
थप्पड़ के अलावा कोई डॉक्टरी नुस्ख़ा
याद आया क्या…. बोलो ना सहेली।
कहो सहेली साधन-सुविधा लाख जुटाई
पर कामवाली भी साथ ना दे पाई।
खुद काम कर करके जब हालत ख़स्ता भई,
बेबी, सोना, डार्लिंग वाले मियाँ जी
पर प्यार आया क्या…. बोलो ना सहेली।
कहो सहेली मई जून के महीने में,
जब कमरतोड़ मशक़्क़त की तुमने।
मारी गई गरमी की छुट्टियाँ सारी
माँ-बाबा का मायका याद आया क्या……., बोलो ना सहेली।
कुछ कहो या ना कहो सहेली
इस लॉकडाऊन में जीवन को
बदले रंगों में पाया… कभी हँसाया
कभी रुलाया, कभी थकाया
नई क्षमताओं से रूबरू
उसने हम सबको करवाया.. है ना सहेली
विमान ~ दिलवन्त कौर
वो विमान से उतर कर मेरी
सरजमीं पर क्या हैं आए
संँग अपने भयंकर महामारी
की सौगात भी ले आए
उस पासपोर्ट का रसूख़
देख लिया है हमने भी ख़ूब
रसूख़दारों के सामने बेचारा
राशनकार्ड गिड़गिड़ाये
पहुँच ओर पैसा जीत रहा
खेल जिंदगी-मौत का
अरे गरीब के हिस्से यहाँ
सुकून की मौत भी न आए
नज़रबंद घरों में आँख-मिचौली
चल रही बिमारी से
कहीं से भी मेरे खुदा राहत की
कोई ख़बर तो आए
कोरोना की दहशत ~ प्रेम कुमारी सेंगर
कैसी मुश्किल घड़ी आई है
कोरोना ने चारो तरफ दहशत ही दहशत फैलाई है
किसी की खांसी या छींक से दिल होता हमारा बेचैन,
कहीं उड़ा ना ले जाए यह हमारा सुखचैन,
मुसीबत की घड़ी आई है
कोरोना ने चारों तरफ दहशत ही दहशत फैलाई है,
बच्चे, बूढ़े हो या नौजवान, मत घबराओ बार-बार,
बाहर जाए मास्क लगाएं हाथ धोये बारंबार,
हमारे दिमाग की घंटियां बजाई है
कोरोना ने चारों तरफ दहशत ही दहशत फैलाई है
लाग डाउन का पालन करना, मिलाना नहीं किसी से हाथ,
तीन फीट की दूरी रखकर करनी है हर किसी से बात,
हमने तो यही कसम खाई है
कोरोना ने चारों तरफ दहशत ही दहशत फैलाई है
पुकार ~ अवनीश कुमार वर्मा
किसान की पुकार
बरसो इन्द्र देव राजा
रवि फसल हुआ था, नुकसान
जिससे हुआ था,कर्ज
किसान की पुकार
बरसो इन्द्र देव राजा
लॉकडाउन में हुआ था बेचने में नुकसान
जिससे बच्चों की पढ़ाई में नुकसान
किसान की पुकार
बरसो इन्द्र देव राजा
सही मौसम के अनुसार
जिससे होगा कर्ज से निजात
सोशल डिस्टेंसिंग ~ कालनाथ रजत साव
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो नारी जाति का सम्मान नहीं करते।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जों घरेलू हिंसा करते है।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो अपने शौक को पूरा करने के लिए
अपने परिवार और बच्चों की जरूरते पूरी नहीं करते।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो अपने से बड़ो की कद्र नहीं करते।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करते।
सोशल डिस्टेंसिंग बनाये उनसे जो अपने माँ-बाप का बँटवारा करते है।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो मनुष्यों के साथ अमानवीय व्यवहार करते है।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो समय का महत्व नहीं समझते।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो मानवता तथा समाज के दुश्मन है।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो लड़के-लड़कियों मे भेद करते है।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये उनसे जो अपने लाभ के लिए समाज मे दंगे करवाते है।
सोशल डिस्टेंसिंग- बनाये लोभ, लालच, काम और क्रोध से।
2020 तू इतना क्यूं रुठा है रे? ~ कुमार संदीप
2020 तू इतना क्यूँ रुठा है रे?
तेरे आगमन से पूर्व हमने
क्या-क्या दुआएँ नहीं माँगी थीं।
तेरे स्वागत में क्या- क्या नहीं किया था हमने।
जिस तरह सूर्योदय से पहले
सूर्य की पहली किरण को
देखने की बेसब्री रहती है सबके मन में।
ठीक उसी तरह तेरे आगमन का
इंतजार था हम सभी को।।
पर जब से हुआ है तेरा आगमन
देख तो सही तू हर ओर
कुछ-न-कुछ अनहोनी ही हो रही है।
हर ओर अशांति-ही-अशांति है व्याप्त।
निर्धनों की आँखों से अश्रु की नदियाँ बह रही हैं।
भूख से बिलबिला रहा है असहाय परिवार सड़कों पर।
ज़िंदगी ही बदल गई है पूरी तरह।
हर ओर सन्नाटा पसरा है
पता नहीं 2020 तू किस बात पर रुठा है।।
जब से हुआ है तेरा आगमन
मन में मची है एक अज़ब- सी उथल- पुथल।
चहुँओर से आती बुरी ख़बरों से हृदय है स्तब्ध।
ज़िंदगी तो परीक्षा लेती ही थी बार- बार।
पर मौत के साये में,
हर पल,हर क्षण हो रही यह परीक्षा
कुछ ज्यादा कठिन हो गयी है?
तेरे रुठने की वज़ह भी तो हमें मालूम नहीं है।
2020 तू अब कर भी दे माफ हमें
अब मान भी जा तू।।
2020 अब मत तड़पा तू
हम दीन-दुखियों को।
दामन में भर दे तू ख़ुशियाँ
ख़ुशहाली की किरण बिखेर दे तू अब हर ओर।
हमारी गलतियों को भूल जा तू
और हमें कर दे माफ।
ज़िंदगी की परीक्षा देते- देते
मन हो चुका है बहुत उदास।
इतना भी मत रुठ हम सभी से
अब मान भी जा तू।।
आओं स्वस्थ्य बनाए ~ संजय वर्मा “दृष्टि”
सुनसान राहें
पंछियों का कोलाहल
दुबके इंसान घरों में
मुंडेर पर बोलता कौआ
अब मेहमान नही आता
संकेत लग रहे हो जैसे
मानों भ्रम जाल में हो फंसे।
नही बंधे झूले सावन में
पेड़ों पर
उन्मुक्त जीवन बंधन हुआ
अलग अलग हुए
अनमने से विचार
बाहर जाने से पहले
टंगे मन में भय से विचार।
हाथ धुले
मुँह ढकें चेहरे लिए लोग
आँखों से बोल कर
समझाने लगे
लगा यूँ जैसे
इशारों की भाषा ने
लिया हो पुनर्जन्म।
संक्रमण से बनी दशा
दूरियों से होगी कम
और पालन करना होगा
नियमों और दवाइयों का।
लक्ष्य बनाना होगा
क्योंकि
स्वस्थ्य धरा
निरोगी इंसान
बनना और बनाना
इंसानों के हाथों में तो है।
सोचा न था ~ रीना गोयल
नहीं स्वप्न में भी सोचा था ऐसा विकट सवेरा होगा।
कोरोना का काल रूप में निसदिन रैन बसेरा होगा।।
भूले संस्कृति ही स्वयं की, पाश्चात्य में सिमट गए जो।
हाथ मिलाना छोड़ खुशी से, फिर अभिवादन सीख गए वो।
नीति नियम से रहें सुरक्षित छँटता दूर अँधेरा होगा।।
कोरोना का काल रूप में निसदिन रैन बसेरा होगा।।
स्वच्छ धार गंगा यमुना की, गगन मुक्त हुआ प्रदूषण से।
रोक लगी है उत्पातों पर दुनिया दूर हुई दूषण से।
घर पर कैद मनुज सब ही अरु, गाँव नगर पशु डेरा होगा।।
कोरोना का काल रूप में निसदिन रैन बसेरा होगा।।
नहीं तकेगें नैन मीत को संयम को हम अपनाएंगे।
रोक लगा कर कोरोना पर विजय पताका लहरायेंगे।
यदि धैर्य से डिगे मनुज तो, प्रबल मृत्यु का घेरा होगा।।
कोरोना का काल रूप में निसदिन रैन बसेरा होगा।।
चँहु दिश पक्षी कलरव होगा,अरु सन्नाटा गहरायेगा।
हाय!नहीं सोचा जीवन में, ऐसा भी इक दिन आएगा।
घोर आपदा से रक्षक अब, कान्हा वही चितेरा होगा।।
कोरोना का काल रूप में निसदिन रैन बसेरा होगा।।
गुज़र जाएगा ~ डां. तृप्ति मित्तल
सोचती हूँ आज इस पल यहाँ
कैसे सिमट गई है एक कमरे में
जिंदगी चंद लम्हों में यहाँ!!
मैं बंद खिड़की से ढूँढती हूँ अपना आसंमा…
आस भी है उम्मीद भी है,
दिल के झरोखे में एक किरण खिली सी है,
ये वक़्त ही तो है
आज नहीं तो कल बदल जाएगा!
मैं बंद खिड़की से ढूँढती हूँ…
हाँ डरी भी थी, कुछ पल सहमी भी थी
जिंदगी की कसौटी ही तो है,
आज नहीं तो कल तू इस पर खरा उतर जाएगा!
किसी से नहीं खुद से है लडाई,
एक तूफान है ज़ज़्बात का, गुज़र जाएगा!
मैं बंद खिड़की से ढूँढती हूँ…..
देखें हैं अपने जैसे चेहरे यहाँ
“नेगेटिव” होने की आस में
“पोसिटिव” होते पल पल यहाँ!
दिल डूबे तो सब मुस्कुरा देते हैं,
थोड़ी थोड़ी हिम्मत सब बाँट लेते हैं!
बेकसी का आलम है, जानते हैं
मगर यकीन रख, तेरा साहस जब शोर मचाएगा
ये लम्हा पल में टूट कर बिखर जाएगा!
मैं बंद खिड़की से ढूँढती हूँ।
स्कूल की य़ादे – लॉक डाउन ~ श्रेया दूबे
ऑनलाइन पढाई करने में
हम बहुत फसते हैं,
स्कूली टीचर की डांट
सुनने को हम तरसे हैं,
मैथ की क्लास में हम
मन लगाकर पढ़ते थे,
दूसरी ही घंटी में हम
साइंटिस्ट बन जाया करते थे,
काजल मैम की लाइब्रेरी में हम
बुक रिव्यु सुनाया करते थे,
गेम खिलाने बाहर हमको
गौतम सर ले जाया करते थे,
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में हम
राजनीतिक विश्लेषक बन जाया करते थे,
हिंदी अंग्रेजी में हम
कहानियाँ पढ़ा करते थे,
ग्रामर भी थोड़ा सा हम
एग्जाम के लिए पड़ते थे,
वर्क एक्सपीरियंस की क्लास में हम
नई चीज सीखा करते थे,
वो “के वी” के दिन थे
जो मस्ती में बीता करते थे।
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