कोरोना काल को संबोधित करती कविताएं

कोरोना काल को संबोधित करती कविताएं

कुछ अच्छा भी देखा

दुनिया लॉक है पर डाउन नहीं है,
आओ देखें,
इस लॉक डाउन में कैसा अच्छा देखा।

देश विदेश का हाल यहाँ बेजान देखा,
बंद दरवाजे बाहर जहाँ वीरान देखा।
पर इस बदहाली में भी कुछ ऐसा देखा,
पहले जो कभी ना हुआ, कुछ वैसा देखा।

देश सम्भालने सबका अनुनय विनय देखा,
हौसला जगाने सुर संगीत सुरमय देखा।
पुनः दूरदर्शन को परिवार जुटाते देखा,
दादा दादी को भी प्यार लुटाते देखा।

गाँवों की धरा पर शहरों को फिदा देखा,
दीन निबलों में मानवता को जिंदा देखा।
संतोषम् परम् सुखम सबको समझते देखा,
भव-विलास की भी औकात उतरते देखा।

चन्दा को तारों सहित झिलमिलाते देखा,
काली घटा को नील गगन सजाते देखा।
गंगा यमुना को दर्पण सा लहराते देखा,
प्रकृति को भी मोहक छटा छिटकाते देखा।

महानगरों को शुद्ध हवा संग जीते देखा,
कूक गुंजाती कोयल को रस पीते देखा।
छुपे रूस्तमो को भी उभर निखरते देखा,
ये सुखद बदलाव दुःखद दिनों चलते देखा।

बंद घरों में चिंतन की खिड़की खुलते देखा,
ऑफलाइन को ऑनलाइन जुड़ते देखा।
सेहत का योगा से जोड़ जुड़ाते देखा,
पतझड़ में भी सूरजमुखी उगाते देखा।

पर अफसोस यहाँ कुछ पत्थर दिल भी देखे,
अकल पर पत्थर पड़ो की फितरतें भी देखी।
इस जंग से लड़ते, बचाने आयो को देख,
इन्सानियत पर पत्थर बरसाते भी देखा।

सबसे अलग पॉज़िटिव में घबराहट
और टेस्ट में निगेटिव पाकर सुकून मिलते देखा।

तनुजा जोशी
कलमकार @ हिन्दी बोल India

अभी सम्भलना बाकी है

कोरोना की ये झांकी है,
अभी सम्भलना बाकी है।
बिन मास्क के गर बाहर निकले,
लट्ठ तेल पिलाता खाकी है।

दो गज की दूरी का,
पालन करना जरूरी है
साबुन से हाथ धोते रहना,
काढ़ा पीना भी जरूरी है।
जड़ी-बूटियाँ वाह-वाही पाते
इम्युनिटी बढ़ाता फांकी है,
कोरोना की ये झांकी है।
अभी सम्भलना बाकी है।।

लक्षण को अपने पहचान
जाँच कराना जरूरी है।
चिंता फिक्र न करना यारो,
आइसोलेट होना जरूरी है।
दवा आक्सीजन उसको जरूरी
जिन्हें डॉक्टरों ने आँकी है
कोरोना की ये झांकी है।
अभी सम्भलना बाकी है।।

स्वस्थ होकर घर लौटे हो,
कोरेन्टीन होना जरूरी है।
चौदह दिन का पौष्टिक आहार,
योग आसान भी जरूरी है।
समाज मे उन्हें हीन न समझो,
कोरोना जीत कर वो पाकी है
कोरोना की ये झांकी है।
अभी सम्भलना बाकी है।।

पीताम्बर कुमार ‘प्रीतम’
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना और बाढ़

ये कैसा महामारी है आया
कोरोना वायरस है आया,
अपने साथ-साथ है लाया
अनेक विपत्तियाँ।
ये कैसा महामारी है आया
जल-प्रलय है आया,
दुनिया भर में हाहाकार है मचाया
भूखमरी, लाचारी संग बेरोजगारी है लाया।
दुनिया में तबाही है मचाया
देश में आर्थिक संकट है छाया,
हो गये है लोग बेबस-मजबूर
अपने ही से दूर रहने को
करे तो करे क्या?
कोरोना संग बाढ़ ने भी
तबाही है मचाया चारो ओर,
ना जाने कब होगा खत्म
ये वायरस जानलेवा
ये कैसा महामारी है आया।

ममता कुशवाहा
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना काल

कोरोना काल का कहर है ये
जीवन के लिए जहर है ये
जिसके घर में घुस जायेगा
तहस-नहस करके जायेगा ।

कोरोना काल “काल” बना है
जीवन का जनजाल बना है
जाल में इसके जो फंस
निकल बड़ी मुश्किल से पायेगा।

समस्या बड़ी भारी है ये
मुश्किल बड़ी जिम्मेदारी है ये
अभिमन्यु बन इस चक्र को तोडना होगा

कोरोना है,
कोरोना को किसी अन्य ओर मोड़ना होगा
इस विकट समस्या को एक नये रुख से जोड़ना होगा।
क्या खूब सीखा गई ये कोरोना
दूर हो तो, दूर ही रहो ना।
साथ देश का देना होगा
दूर सही पर हाथ से हाथ को जोडना होगा
कोरोना का अन्त जल्द से जल्द करना होगा।

नीतू यादव
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना संक्रमण काल

देखते ही देखते
छा गया विश्व पटल पर
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी
चारों ओर मचा है हाहाकार
क्या अमेरिका
क्या ब्रिटेन
क्या फ्रांस
सभी देशों में मची है
हाय-तौबा की अफ़रा-तफ़री।

डब्ल्यू.एच.ओ का भी सिर चकराया
चीन का जैविक उत्पाद देखकर
इस बीमारी ने किया है विश्व में
अर्थव्यवस्था का चक्का जाम
मृत्यु दर तो ऐसे बढ़ी है
जैसे तापक्रम का थर्मामीटर
सारा जन-जीवन सिमटकर
जहीं का तहीं ठहर गया है
हार गया है बड़ा से बड़ा
डाक्टर और वैज्ञानिक
पर, अब तक नहीं खोज पाया
कोरोना को हराने का कोई उपाय।

इस कोरोना संक्रमण काल में
सोशल डिस्टेंशिंग
मुँह पर मास्क
हाथों में लगाने को ग्लव्स और सेनेटाईजर
बीस सेकेण्ड तक धोने को
साबुन से रह-रहकर हाथ
बस सांत्वना के लिए
बच गए हैं यही उपाय
इस मुश्किल घड़ी में
आदमी, आखिर करे तो क्या?
बस सेल्फ या होम कोरनटाईन
होकर रह गया है।

अभिषेक कुमार ‘अभ्यागत’
कलमकार @ हिन्दी बोल India

मास्क ने क्या कमाल कर दिया

इस मास्क ने क्या कमाल कर दिया
बीच बाजार मेरा बुरा हाल कर दिया
मैंने एक सुंदर हसीना को देखा
पशमीने में लिपटी,
एक कश्मीरी कली को देखा
चेहरे पर लगा था उसके मास्क
फिर भी लग रही थी वह झक्कास
मैंने भी बिना समय गवाएं
कर दी उससे दिल की बात
जब लात और घुसो ने,
किया मुझ पर जोरो से घात
तब मैं ना समझा कोई भी बात
जब चेहरे से हटाया उसने मास्क
मेरे दिल पे लगा जोरों का आहात
यह तो मेरी ही घर वाली थी
जिसने लगा रखा था अपने चेहरे पर मास्क
मत पूछो उसके आगे क्या क्या हुआ
मेरी बीवी ने बीच सड़क पर
मार मार कर मेरा बुरा हाल कर दिया
इस मास्क ने क्या कमाल कर दिया

बबली कुमारी
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना काल

सुना है, कोई ब्याध दस्तक दे रहा है.
अदृश्य हो कर जनो को हर रहा है,
बड़ा भीषण, बहुत बिक्राल सा है,
जहाँ ठहरा, वहां अकाल सा है.
ये कैसी रात है जो नाह ढल रही
या कुछ बात है ये ना कह रही,
अब क्या गलत और क्या सही,
प्रकृति अपनी चाल देखो चल रही।
हम बड़े शास्त्र वाले ज्ञान वाले,
ट्विटर, मोबाइल धरी विज्ञान वाले
कहाँ अब चल रही कोई युति है.
कोलाहल,हाहाकार है ये क्या गति है
कैसा नाम क्या संज्ञा कैसा विशेषण
परस्पर बैठकर करे इसका विश्लेषण,
एक डर है की कुछ हो न जाये,
जो अपना है कही खो न जाये
दोबारा फिर जब वक़्त पहिया घूमेगा,
तनिक तब ध्यान कर के सोचियेगा,
ये कैसा शाप था कैसा भ्रमर था,
या बिधि का अंतहीन कोई समर था।

अखिलेश झा
कलमकार @ हिन्दी बोल India

अहसास

जीवन हो चला था भागा दौड़ी का नाम,
न चलता पता कैसे होती सुबह से शाम।
फिर उपजा अचानक ये वायरस कोरोना,
अनुरोध हुआ अब से घर पर ही रहो ना।

कैसे कटेंगे दिन? सोच सब थे परेशान
अब तक न रहा आइसोलेसन में इंसान।
सबके लिये क्वारन्टाइन उलझन थी बड़ी,
पर न सोचा बनेगी अनोखी रिश्तों की कड़ी।

घर में परिवार पहली दफा इस कदर जुटा,
हो हल्ला जो वीरान खामोशियों पर लुटा।
हलचलें अब घरों में देने लगी सुनाई,
नोकझोंक ठहाके तो कभी कभी लड़ाई।

घर आने का किसी का न अब इंतजार रहा,
सातों दिन मानों केवल एक इतवार रहा।
इनडोर खेलों ,किताबों पर गड़ गई नजर,
साज संगीत रंगों वाली कला आई उभर।

अब तो तड़कों से रसोइयाँ लगी महकने,
डायनिंग टेबल और कुर्सियाँ लगी चमकने।
स्वयं से भी मिलने मिलाने का मौका मिला,
बुढ़ापा बचपन और जवानी से मिल खिला।

एक अनजाने डर ने जब अन्तरमन को छुआ,
इस लॉकडाउन में रिश्तों का अहसास हुआ।
पूरी दुनिया सेनेटाइज मास्कधारी हुई,
अपनों की चिंता से परस्पर साझेदारी हुई।

खास लगा आसमान पंछियों की चहचहाहट,
पहिये थमे तो सुनी हवाओं की सरसराहट।
जब छूटी दावतें, सिनेमा सैर सपाटा,
जाना अन्न बिना ही होता असली सन्नाटा।

दूरियाँ बनाये पलों से मिला एक पैगाम,
गर न सिमटी कर जायेंगी जीवनरथ जाम।

तनुजा जोशी
कलमकार @ हिन्दी बोल India

बूढ़ी अम्मा चलने लगी

गांव की गलियां फिर से
चहकने लगी हैं
पुष्प की कलियां फिर से
महकने लगी हैं
बूढ़ा बरगद भी फिर
मुस्कुराने लगा है
देखकर बच्चों को
गुनगुनाने लगा है
डालियां फिर से झूला
झुलाने लगी हैं
पेड़ की चिड़ियां फिर
चहचहाने लगी हैं
कोरोना ने बहुत
चाहे सबको रुलाया
मगर इसने कितनों को
फिर से हंसाया
बूढ़ी अम्मा भी फिर
आज चलने लगी है
देख बच्चों को
फिर से मचलने लगी है
रोशनी आंखों की
फिर से बढ़ सी गई है

अपने बच्चों से मिलकर
संभल सी गई है
आशा के दीप फिर
जगमगाने लगे हैं
मिलकर अपनों से सब
मुस्कुराने लगे हैं
गांव की अब महत्ता
समझने लगे हैं
आधुनिकता से अब सब
निकलने लगे हैं
गांव में भी हैं अवसर
बहुत आजकल
जीवनयापन के रस्ते
अब खुलने लगे हैं..।।
खुलने लगे हैं..।।

विजय कनौजिया
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना तुझसे जीतना है

उत्कर्ष श्रीवास्तव
कलमकार @ हिन्दी बोल India

कोरोना तुझसे जीतना है जिंदगी फिर से जीना हैं
फिजाओं में खौफ़ का मंजर लिए
घर के चार दिवारी में खुद को कैद कर लिया है
जिंदगी थम गई हैं सुन-सान सडकें हैं
बिरान गलियां हैं, सन्नाटे की आवाज है
अब उनसे मिलने में भी डर लगता
जिनसे हर रोज़ मिला करते हैं
उम्मीद की एक किरण आखों में लिए
कि जिदंगी फिर से खिलखिला के हंसेगी
अब बस रब है दुआ है हौसला है
वक्त तेरा इंतजार है