इक दिन हार जाएगी ये बीमारी
हवाओं का ये डर अब नहीं रहेगा।
खौफ का असर कुछ दिन और हैं
शहर सहमा हुआ अब नहीं रहेगा।
हक़ीक़त जान जाएगा बीमारी की
हर इंसान बेख़बर अब नहीं रहेगा।
बंदिशें जल्द खत्म होगी हमारी
असामाजिक मानव अब नहीं रहेगा।
पुराने असूलों पे लौट आना ही होगा
आकाश घिरा हुआ अब नहीं रहेगा।
यहाँ फिर लौट आएँगी बहारें
मेरा सूना ये घर अब नहीं रहेगा।
~ मुकेश बिस्सा