कलमकार राहुल प्रजापति की एक चंद पंक्तियाँ पढें –
मौन थी ये हवा गुनगुना न सकी
गीत कलियों बहारों के गा न सकीजब तलक थी जरूरत रही पास वो
ग़म में मुझको गले से लगा न सकीउसने भी हमको ऐसे विदा कह दिया
जानकर भी वो रिश्ता निभा न सकीउसपे भी रंग दुनिया का चढ़ने लगा
मैं था उसका मगर ये बता न सकीआंखों के ख्वाब दिल के अरमाँ गए
बुजदिली में मेरा साथ पा न सकी~ राहुल प्रजापति