ये कैसी सजा दी तूने खुदा, जो सबको ठहरा दिया,
भागते दौड़ते थे जो, उनको ठिकाने पर रुका दिया।
ये होड़ थी जो सबकी एक दूसरे से आगे बढ़ने की,
अब ठहरने वाले को ही तूने विजेता बना दिया।
जो कभी काटते थे चक्कर शहरों और गलियों की,
उनको तूने एक खिड़की पर टिका दिया।
ये कैसी परीक्षा ली तूने जिसमे सबको लगा दिया,
पास हो या फेल मगर तूने सबको डरा दिया।
जो थे अपनी शान में कि उनसे बड़ा नही कोई,
आज तूने सबको एक समान बना दिया।
किसी को भूख से बिलखते छोड़ दिया,
किसी को अपना दूत बना दिया।
अब सुबह की नींद चिड़ियों की चहचहाहट से खुलती है,
ऐसा करिश्मा तूने पल भर में दिखा दिया।
क्या फिक्र करना और क्यो फिक्र करना, ये तो तेरी मर्जी है।
तूने वर्षों बाद सपरिवार एक साथ बिठाकर भोजन करा दिया।
लोग अक्सर कहते थे कि समय नही मिलता,
आज तूने सबको भरपूर समय दिला दिया।
बार बार ये कहना कि कल क्या होगा ये खुदा की तौहीन है,
जो चाहता है वो उस को करना उससे ही मुमकिन है।
~ रुचिका राय