कोरोना वाइरस
वाइरस के नाम पर जुबां पर आया वुहान,
कर चला मोहल्ले का कूचा कूचा वीरान।
होती है हर प्राणी को प्यारी अपनी जान,
लाकडाउन हुये आखिर जान है तो जहान।
किस राह पर चल रहे विधाता तेरी संतान,
ये कैसी जंग, कैसी दौड़े, किस ओर उड़ान।
पर हो आया हमें अपनी संस्कृति पर अभिमान,
हो हाथ जोड़ प्रणाम, ना हैलो हाथ मिलान।
उफ़ ये कोरोना बन आया वैश्विक शैतान,
मान न मान, बिना बुलाया कैसा मेहमान।
आओ चलो सुर मिलायें, हुआ जो आह्वान,
रहें सजग, रखें सफाई का चौतरफा ध्यान।
मजबूर कर दिया तुमने सोचने पर वुहान,
क्या माने वरदान है या अभिशाप विज्ञान?
डॉक्टर और कोरोना वायरस
जब भगवान के बाद कोई याद आया
तो वो है डॉक्टर
जब कोरोना के समय कोई तुम्हारी मदद को आगे आया
तो वो है डॉक्टर
तुम्हारी ज़िंदगी का लेखा लिखने वाला है तो वो है भगवान
तुम्हारी ज़िन्दगी को कोई बचाने वाला है
तो वो है डॉक्टर।
आज सरहद पर कोई रक्षा कर रहे हैं
तो वो हैं हमारे देश के जवान
आज कोरोना जैसी महामारी से कोई बचा रहा है
तो वो है डॉक्टर
अस्पताल में आज तुम्हारे साथ
तुम्हारा परिवार भी साथ नहीं रह सकता
अगर तुम्हारा परिवार बनकर कोई तुम्हारे साथ है
तो वो है नर्स और डॉक्टर।
आज कोरोना से प्रभावित होने के बाद
तुम अपनी माँ, बीवी, बच्चों से
ये कह कर जा रहे हो मैं वापस तो आऊँगा ना
और कोई ऐसा भी है जो अस्पताल जाते समय
अपनी माँ, बीवी, बच्चों से यह कह कर भी आ रहा की
शायद मैं वापस ना पाऊँ
तो वो है डॉक्टर
जहाँ अल्लाह और भगवान को भी मुल्कों में बाँट दिया है
वहीं कोई ऐसा भी जहाँ जात पात भूल कर
कोई तुम्हारा हाँथ थाम रहा है
तो वो है डॉक्टर
जब तुम्हारी माँ तुम्हें अस्पताल में
फ़ोन करती है की तुम ठीक तो हो
तुम कोरोना से हो रही तकलीफ़ों को
बड़ी बड़ी लाइनों में बता रहे हो
और कोई है जो तुम जैसे मरीज़ों का
इलाज अपनी जान पर खेल कर रहा है
तो वो है डॉक्टर।
जब दुनिया की कोई दुआ काम ना कर पायी तुम्हारे लिये
तो वो तुम्हें दिये हुए इलाज से काम करते हैं
और फिर उस नब्ज़ को थमने नहीं देते जिस नब्ज़ को वो
थाम लेते हैं, वो है डॉक्टर
वो है डॉक्टर
हाँ! वो ही तो है डॉक्टर।
कोरोना के चक्कर में
हाय ये कैसी मजबूरी, काम मिले न मजदूरी,
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
बड़े मजे थे जीवन में रात सुहानी रहती थी,
मन मर्जी का खाते नींद भी गहरी रहती थी।
खाने के अब लाले भूल गए सब हलुआ पूरी,
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
मज़दूरों की मजदूरी छूटी, छूटा उनका दल,
रोटी छूटी, चप्पल टूटी, चलने लगे पैदल।
घर दूर बहुत लगता था जिनको मिट गई दूरी,
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
धंधे सारे चौपट बाजारों की हालत खस्ता,
स्कूलों का पता नहीं अब धूल चाटते बस्ता।
मानव मानव से दूर हुआ बढ़ती जाये दूरी,
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
नेताओं के भाषण झूठे झूठी उनकी आस,
वो काम उन्हीं का करते उनके जो हैं खास।
जीवन चाहे बे ढंगा हो पर रखना जी हजूरी,
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
कोरोना ने मानव के कर दिए ऐसे हालात,
पीने को पानी नहीं और धोते रहते हाथ।
मुंह पर मास्क लगाना हो गया बहुत जरूरी।
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
हालातों के मारे जो घर को लौटे थे राही,
मौसम की फिर मार ने कर दी त्राहि त्राहि।
बाढ़ में सब बह गया जो बचे थे आध अधूरी।
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
तन भी सारा त्रस्त हुआ मन हो गया पस्त,
जीवन सारा क्षीण हुआ और पैसे वाले मस्त।
बच्चों की भी आशाएं जाने कब होंगी पूरी
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
हाय ये कैसी मजबूरी, काम मिले न मजदूरी,
कोरोना के चक्कर में चक्कर खाती ये धूरी।
बंदिशे, लाचारी और भय
सब लाचार और डरें हैं
अपने घरों में दुबके पड़ें हैं
घुटन में काट रहे है दिन
दिनो को घंटो में रहें है गिन
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
पहले-पहल अच्छा बीता था
जैसे छुट्टी के दिन काटा था
अब दिन बेकारी में कटते हैं
रोजी-रोटी के लाले पड़ते हैं
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
ये जो थोड़ी बंदिशे हटी थी
लगा चलो आफत टली थी
सुख के बादल तब थें बरसे
अब बूंद-बूंद को मन ये तरसे
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
फ़िर से बंदिशों का दौर जो आया
हर एक का चेहरा मुरझाया
सर मुड़ाते ओले ये पड़े है
आप ही बतायें हम कहाँ खड़े हैं?
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
कर रहे बेसब्री से इंतजार
कब मिलेगा सुखद समाचार
बनावटी धुंध कब छट पायेगा
मुश्किल पड़ाव कब हट पायेगा
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
अब भय कहाँ विषाणु से उतना
अफसरशाही से लगता जितना
दुश्मन जितना ना घेरे बैठा है
ये प्रशासन उतना सर पे खड़ा है
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
अफवाहों का बाज़ार गरम है
मरज निकलना एक भरम है
इसी बहाने माल गटका जाता
थोड़ा-थोड़ा सबमें बंटता
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
विषाणु-पीड़ित क्षेत्र पहचाने जाते
पुलिस-छावनी में ढाले जाते
दुश्मन खोजे जाने का ढोंग फ़िर होता
अदृश्य है ना! सच किसे पता होता!
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
अब भय है ये सख़्ती का
प्रताड़न, अपमान और जुर्माने का
कंगाली में आटा गीला कराता कौन?
हवालात के चक्कर खाता कौन?
ये हाल है मेरे शहर का
क्या हाल तेरे शहर का?
हे शासक! रहम करो अब
ये बंदिश अब टूटेगा कब?
हमे हमारे हाल पे छोड़ ही दो
नज़रबंदी ये दफ़ा करो
सुख-चैन बहाल करो मेरे शहर का
रौनक लौटाओ सबके शहर का
एकांतवास
लॉकडाउन के एकांतवास में,
समय मिला भरपूर।
ख़ुद के भीतर झांकने का,
अवसर मिला प्रचुर।
लाभ उठाया जाया ना किया,
आनन फ़ानन रच डाली,
कई कविता कई कहानियाँ,
कुछ सच्ची कुछ झूठी ही।
न साहित्य का ज्ञान,
न शब्दों का भान,
फिर भी बन रहे पुल तारीफों के,
कुछ सच्चे कुछ झूठे।
स्वयं ही ये जान ना पाई,
कला ये कहाँ से आयी,
ख़ुद ही से अनजान थी,
कल्पनाएं गुमनाम थी,
रचनाएँ बेनाम थी।
उनको नया आकार मिला,
सपनों को संसार मिला,
शब्दों का बुन गया तानाबाना,
एक नया आयाम मिला।
भीतर कहाँ छिपी थी मैं,
प्रतिभा कहा दबी थी ये,
एक नया अध्याय जुड़ा,
कवियित्री का ख़िताब मिला।
नहीं हूँ उनकी धूल बराबर
कोरोना काल
देखो देखो कैसा काल आया है।
जिसका नाम कोरोना काल कहलाया है।
जो हर तरफ हड़कंप मचाया है।
अभी तक कोई इसे समझ नहीं पाया है।
ये क्या है और कहां से आया है?
कहने को तो यह अदृश्य कीट कहलाता है।
जो लोगों को खूब डराता है।
क्या भारत, क्या अमेरिका, क्या चीन,
पूरी दुनिया का चयन और सुकून लिया है छीन।।
क्या निम्न वर्ग, क्या उच्च वर्ग, क्या अमीर, क्या गरीब,
कोई इसके चपेट से बच नहीं पा रहा है।
यह सब को इतना डरा रहा है।
चारों तरफ मौत का साया मंडरा रहा है।।
इंसान कुछ तो पाप किया होगा इस संसार में।
वरना लोग यू ना मुंह छुपाए घूमता बाजार में।।
यह प्रकृति का प्रकोप ही है।
जो ऊपर वाला इन्सानो को समझाना चाह रहा है।
परंतु इंसानों को अभी भी समझ नहीं आ रहा है।
और पाप पे पाप किये जा रहा है।।
यदि सारे इंसान फिर से संभालने की कोशिश करेंगे।
पाप के वजाय पुण्य करने लगेंगे।
तो फिर शायद इस दुनिया पर
फिर से ऊपर वाले अपना कृपा बरसाने लगेंगे।।
कोरोना और छात्र
आज वैश्विक महामारी का यह दौर।
हर किसी को परेशान कररहा यह मोड़।।
लोगों की स्थिति तो है ही खराब।
छात्रो को भी कर रहा यह बर्बाद।
सारे शिक्षण संस्थानों में पर गया है ताला।
हाय! कुदरत ने यह कैसा दिन दिखला डाला।।
एक तरफ छात्रों को पढ़ाई की चिंता।
तो दूजी ओर हजारों लोगों की जल रही चिता।।
यह काल कोरोना महामारी का।
चिंतित हैं छात्र भी, कब होगा यह समय समाप्त अशुभ बीमारी का।।
कर रहे शिक्षक अपनी तरफ से हर कोशिश।
दे रहे सुविधा ऑनलाईन पढ़ाई की।।
पर होगा क्या उन छात्रों का।
जिनके पास ना है वह सुविधा कि ऑनलाइन हो सके पढ़ाई उनकी।।
गरीबों के बच्चे जो मेहनत करके हैं पढ़ते।
हर रोज प्रण लेकर जो आगे हैं बढ़ते।।
क्या होगा अब उनका, ना है मोबाइल फ़ोन जिनका।
हर पल यही चिंता उन्हें सताती है।
एक पल भी राहत उन्हें ना आती है।।
हो रहा एक वर्ष बर्बाद।
कई सपने देखे थे उन्होंने खुद को करने को आबाद ।।
हर छात्र है त्रस्त यहां, एक को समस्या मोबाइल की।
तो एक को परेशानी नेटवर्क की।।
बोझिल बन गया है यह वर्ष जाने कब जाएगा यह वर्ष।।
सोचते छात्र घर बैठे करेंगे पढ़ाई।
पर कैसे करें ना है खाने को,
ना है कहीं से एक पैसे की कमाई।।
करते दिन भर मजदूरी।
रात को अपनी पढ़ाई पूरी।।
आज दयनीय है दशा उनकी।
अधूरी रह गयी ख्वाहिशें जिनकी।।
ख्वाब था पढ़-लिख कर बनने का अफसर।
पर अब छूटा जा रहा यह अवसर।।
जाने कब समाप्त होगी, यह मनहूस घड़ी कोरोना।
यही सोच हर किसी को आता है रोना।।
होरहा बर्बाद उन छात्रों का जीवन।
जिनके लिए पढ़ाई ही था
आगे बढ़ने का एक मात्र साधन।।
कोरोना एक जंग
कोरोना नही ये तो जंग है,
जिसमे कभी हार तो कभी जीत है।।
जिसने रखी हिम्मत अपनाया सारा नियम,
मात दी कोरोना को हुए वो सफल।।
यह कठिन परिस्थिति है,
फैसलों मे भी नजदीकीयां है।।
कुछ सफ़र में साथ चले और कुछ छोर गए,
बिन गुनाह किये ऐसी सज़ा भुगत गए।।
दुनिया मे जो चेहरे चमका करते थे,
आज वो भी चेहरे मास्क मे छिप गए।।
सिमट कर रह गए हम इस दुनिया की भीड़ में,
डर लगने लगा है अब किसी भी दस्तक से।।
है यकीन देंगे मात इस महामारी को,
जब तक है साथ स्वास्थ्य कर्मियों का।।
तोड़े ना कोई भी नियम ना करे कोई लापरवाही,
करे खुद से वादा रखे खुद का ख्याल।।
साफ स्वच्छ वातावरण रखे हमेशा,
तभी कोरोना बदलेगी अपनी दिशा।।
कहीं तो कुछ है
पुरखे धन्य थें
मरते समय
परिजन उन्हें गंगा जल पिलायें थें
मृत शरीर के आशीर्वाद पाकर
स्वयं को
दीर्घायु समझें थें
अस्थियाँ अग्नि में होती थी
आज तो बुढ़ापे में
रोज भय बना है
हर रोज
कोरोना यमराज के समान
मारने से ज्यादा
धमकी दे जाता है
कब पुलिस आ जाए
स्वास्थ्य कर्मी पोजिटिव बता दें
अस्पताल में न जाने कब
किस समय
काया परिवर्तित हो जाय
प्लास्टिक की पन्नी में
समेटकर
लावारिस लाश घोषित हो जाएं
और
देश के पंजीयन में
भूत समान
एक संख्या और बढ़ा दें।
कोरोना
कभी सोचा न था कि ऐसा भी दिन आयेगा।
सबके पास समय होते हुए भी मिल ना पा रहे।
हम सबको मिल कर कोरोना को भगाना है।
घर से बाहर नहीं जाना है।
घर में रामायण महाभारत देखना है।
हाथ किसी से नहीं मिलाना है।
चहरे पर हाथ को नहीं जाने देना है।
बार बार हाथ को साबुन से धोना है।
सब्जी भाजी को गरम पानी से धोना है।
सबको दूर से नमस्कार करना है।
यही है कोरोना से बचने का इलाज।
यही पूरे देश को समझाना है।
कोरोना से हमको नहीं डरना है।
सावधानी बरत कर कोरोना से बचना है।
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SWARACHIT1590I | कहीं तो कुछ है |
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