स्त्रियों के जीवन पर कलमकार सुप्रीता वात्स्यायन लिखतीं हैं कि वह दो भागों में बट सी गई है। मायके और ससुराल के बीच जिंदगी भी कुछ दरक गई है; आइये यह कविता पढें।
ऐसे क्यूँ है नारीजीवन
दो भागों में दरकी सीबाबा मुझको बतला दो
क्या यही नियति है लङकी कीआधा जीवन घर बाबुल के
और फिर बाँकी साजन कीबाबा मुझको बतला दो
क्या यही नियति है लङकी कीमाँ मुझसे क्यूँ है ये कहती
तू शोभा किसी और के घर कीकैसे मैं तुमको समझाउँ
तुझे ब्याह कर गंगा नहाउँबेटी से कुल नहीं है बढता
बेटे से परिवार है फलताबेटी तो सुसुराल ही अच्छी
या फिर है वो स्वर्ग भलीबाबा तुम तो सच कह दो
क्या यही नियति है लङकी कीमेरा तो ना कहीं आसमां
अपनी तो ना ज़मीं कहींबाबा मुझको बतला दो
क्या यही नियति है लङकी की?~ सुप्रीता वात्स्यायन