पागल लड़की

पागल लड़की

यदि प्यार से किसी को ‘पागल’ कह दो तो उसे जरा भी बुरा नहीं लगता है, लेकिन गुस्से से पागल कहना झगड़े का रूप ले लेता है। कलमकार भवदीप की कुछ पंक्तियाँ एक लड़की की तारीफ कर रहीं हैं जिसे वे पागल भी कहते हैं।

एक पागल लड़की है
जो पागल दिखती है लेकिन पागल नहीं है
स्वाभिमान बहुत है लेकिन अच्छे बुरे का ज्ञान नही है
शहर में रहती है लेकिन उसका भी अभिमान नहीं है
गुस्सा नाक पर उसके रहता लेकिन ठंडाई सी ठंडी है
चश्मा उसको न भाता है काजल उसको सुहाता है
पायल से चिड़ जाती है काली डोरी पहन इतराती है
बच्चे पसंद नहीं है उसे लेकिन बच्चों संग बच्ची हो जाती है
बाबू संग बतियाती है माँ का भी तो हाथ बटाती है
स्कूटी चलाने से डरती है लेकिन घर अच्छे से चलाती है
रुठना मुश्किल है उससे सबको झट से मना लेती है
फूलों सी मुस्कान है माथे पर चोट का निशान है
मेरी हर समस्या का हल है वो ही मेरा कल है
हर बात पर चीखती चिलाती है फटकार भी लगाती है
जब ज्यादा गुस्सा हो जाती है तो बेअक्ल मुझे बताती है
लक्षण से मेरी माँ सी है बस शक्ल नहीं मिल पाती है
एक पागल लड़की है
जो पागल सी लगती है उसकी बातें पागल मुझे करती है।

~ भवदीप सैनी

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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