भारत की सभ्यता और संस्कृति संपूर्ण विश्व में सुविख्यात है। सभ्यता हमारी परंपराओं से हम तक बरकरार है। कलमकार मुरली टेलर ‘मानस’ जी भारत की सभ्यता और संस्कृति से जुड़े हुए अपने विचार इस कविता में व्यक्त करते हैं।
इतिहास लिखी परिपाठी पर
गर मानव को यह बोध रहे
कहि ना हो, कभी ना हो धर्म की हानि
ये हर पल-प्रतिपल रक्षित शोध रहे
किंचित ना हो भूल कहि
चाहे लाख बिछे हो शूल कहि
चाहे अक्षत पुष्प की बेला बरसे
चाहे राग-मल्हार का सावन तरसे
मगर किसी भी भृम में आकर
सभ्यता का ना करे उलंगन
सभ्य धरा की माटी में
बसती कण-कण सभ्यता
शुद्ध हवा से सुसज्जित उपवन
खलिहानों की सौंदर्य सभ्यता
इस देश की माटी की रजकण
रोम-रोम में बसी है सभ्यता~ मुरली टेलर “मानस”