कलमकार महेश ‘माँझी’ ने महान शख्सियत दशरथ मांझी के बारे में चंद पंक्तियाँ लिख प्रस्तुत की हैं।
प्रेम ने पहाड़ का ह्रदय चीर डाला,
मेने देखा ऐसा प्रेम करने वाला।राह के मझधार का वो माँझी कहा गया,
प्रेम की डगर पे वो दशरथ यू छा गया।रात दिन, दिन रात, नही था कुछ ज्ञात,
प्रेम बस आखो में ओर सब अज्ञात।फाल्गुनी ‘मुमताज़’ थी उसकी सिरताज,
शाहजहाँ था वो उसका जो बना तमराज।उसको ही छीला था जिसने प्रेम छिना है,
पहाड़ ही है सोना पहाड़ ही बिछोना है।गम कदमो में प्रेम आखो में,
लिए हाथ मे हथौड़ा, दिया कर फाको में।आँख में जनून था उबला वो खून था,
टूटा पहाड़ जब मिला सकुन था।~महेश ‘माँझी’