कार्तिक मास की त्रयोदशी को धनतेरस और अमावस्या को दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष की दिवाली पिछले वर्षों की दीपावाली से भिन्न है; जिसका कारण है कोरोना काल। हिन्दी कलमकारों ने अबकी दिवाली पर कुछ रचनाएँ लिखीं हैं, आइए उनका संदेश पढ़ते हैं।
दिवाली इस बार
सुघर हो जाए ये जीवन ऐसे मुस्कुराना है
दिवाली इस बार हमको ऐसे ही मनाना है
कहीं हो ना दुखी कोई न जल हो आखों में
सभी मुस्कान भरते कोमल, दिप की रातों में
हर इक दिया प्रेम का हमें यूँ फैलाना हैं।
सभी फूलों के मकरन्द हो जाते जैसे बन्द शीशी में
उसी तरह इतर बनके हमको महक जाना है।
सुघर हो जाए ये जीवन ऐसे मुस्कुराना है।
जुगनुओं की ज्योति को मशालो में हम भर लें
एक लौ कर्तव्य पथ पर हमको ऐसा जलान है
किसी की दुआओं मिले पैगाम हमको यूँ
सबक बन जाए ये जीवन हमें यूं बिताना है।
दिवाली इस बार हमको ऐसे ही मनाना है।
दीवाली का उजाला
लिए हाथ में रूई
पग-पग देख रहा था
दीदी ले लो,भैय्या लेलो
वो पुकार रहा।
इन नन्हें-नन्हें हाथों में
रूई का श्वेत गोला हैं
ये दीवाली का सबसे बड़ा उजाला हैं।
उसकी नन्ही-नन्ही आँखे
हर मानव को घूर रही
क्या कमी हैं मेरी रूई में
ये मन में बोल रही।
हाँ नहीं हैं रेशमी वसन में लिपटी
थोड़ी बेतरतीब लग रहीं हैं
पर साहब ये वही हैं
जो मन्दिर में ईश के आगे जलती हैं
बिक जाए ये थोड़ी सी तो
मेरी रात न काली होगी
ईश भी होगा प्रसन्न
मेरे घर भी दीवाली होगी।
चलो चलें एक दीप जलाएं
चलो चलें एक दीप जलाएं
दीपों का ये पर्व मनाएं
सुख-दुःख को सब मिलकर बांटें
ऐसा एक सिद्धांत बनाएं
चलो चलें एक दीप जलाएं ।।
सभी ईर्ष्या-द्वैष त्यागकर
संबंधों को मधुर बनाएं
मन का अंधियारा मिट जाए
अंतर्मन में दीप जलाएं
चलो चलें एक दीप जलाएं..।।
सबकी हो खुशहाल दिवाली
सबको मिले पेटभर थाली
भाईचारा बना रहे ये
ऐसा एक अभियान चलाएं
चलो चलें एक दीप जलाएं..।।
रीति रिवाज परंपरा में अब
प्रेम भाव सद्भाव निहित हो
आहत न हो कोई हमसे
मिलकर हम सब साथ निभाएं
चलो चलें एक दीप जलाएं..।।
हर घर में फैले उजियारा
सच्ची तभी दिवाली होगी
हर चेहरे पर हों मुस्कानें
ऐसा हम त्योहार मनाएं
चलो चलें एक दीप जलाएं..।।
चलो चलें एक दीप जलाएं..
दिवाली खुशियों वाली
दिवाली आई खुशियों वाली
हर चेहरे पर मुस्कान निराली
ना शिकवा ना कोई शिकायत
दिल से दिल को मिलाने वाली
दिवाली आई खुशियों वाली
खूब सारी मस्ती करने वाली
कुछ अपना कुछ दूसरों का सुनने वाली
और सेल्फी अपार लेने वाली
दिवाली आई खुशियों वाली
अमावस्या की रात को उजियारी करने वाली
घर-घर दीप जलाने वाली
बुझते हुए दीपक को दूसरी बाती से जलाने वाली
बच्चों के चेहरे पर खुशियों की फुहार लाने वाली
दिवाली आई खुशियों वाली
राजा हो या रंक सब को एक समान
समझने वाली
सबके मन से भेदभाव मिटाने वाली
मन में नई उमंग नई तरंग लाने वाली
दिवाली आई खुशियों वाली
मां लक्ष्मी और गणेश जी आराधना कर
उनको घर बुलाने वाली
घर आंगन रंगोली से सजाने वाली
पकवानों से घर को महेकाने वाली
दिवाली आई खुशियों वाली
धरा को दीपों से रोशन करने वाले
आसमा को पटाखों की गूंज से
सराबोर करने वाली
मिठाइयों के स्वाद को मुंह में रस खोलने वाली
दिवाली आई खुशियों वाली।
सबके मन से अंधकार को दूर भगाना है
आओ मिलकर हम सबको एक दीप जलाना है।
सबके मन से अंधकार को दूर भगाना है।।
आओ मिलकर हम सबको……
एक ऐसा हो दीपक जिसमें तेल न बाती हो
कभी न बुझने पाए चाहें तूफां आंधी हो
ज्ञान का दीपक सबके मन में आज जलाना है।
सबके मन से अंधकार को
जाति-पाति और धर्मवाद की न दीवारें हों
आपस में हो भाई चारा न टकरारें हों
हम सबको मिलकर अब अपना देश सजाना है।
सबके मन से अंधकार को
एक ही सपना एक कल्पना”मेरे मन”की हो
विश्व पटल पर सबसे पहले ‘जन गण मन’की हो
अब हम सबको मिलकर यह संकल्प निभाना है।
सबके मन से अंधकार को
अबकी दीवाली में
आत्मनिर्भर भारत का गला घोट कर
छेद न करना थाली में ।
चाईनीज लाइट न जलाकर
मिट्टी के दिये ही जलाना
अबकी के दीवाली में।
बंग महिला की सुंदरिया की
तरह स्वदेशी वस्तु खरीद कर
देश के धन को देश मे ही रखना
रिक्त न होने देना देश के भंडार में
मिट्टी के दिये ही जलाना
अबकी के दीवाली में।
अपने देश के कला के आगे
सबने अपना लोहा माना है
हाँ यहाँ की संस्कृति के
एक अपनी अलग पहचान है
मिट्टी के दिये ही जलाना
अबकी के दीवाली में।
अपने बड़े बुजुर्गों के आदेशो का पालन करना
भूल से भी चाईनीज समानों का प्रयोग में न लाना
चाईनीज लाइटों से सब किट पतंगे आकर्षीत होते है
जबकि दिये के लौह से
जलकर सब कीड़े मर जाते है
मिट्टी के दिये ही जलना
अबकी के दीवाली में।
ज्ञान का दीप
मर्यादा का पाठ पढ़ाने राम ह्रदय में आ जाओ।
सूने सूने अंतर्मन में ज्ञान का दीप जला जाओ।।
मन की अवध आज पुकारे चौदह बरस कैसे काटे।
वन उपवन की पीड़ा को हमें सुनाने आ जाओ।।
काम क्रोध लोभ मोह के रावण कुंभकर्ण कैसे मारे।
मेघनाथ को रण में कैसे धूल चटाई बता जाओ।।
आज अवध को सजाकर हम नैन बिछाए बैठे हैं।
प्रतीक्षा के प्रतिफल को श्रीराम बांटने आ जाओ।।
अंतर्मन के अंधियारे को रोशन करने आ जाओ।
मेरे सूने आंगन को प्रभु शबरी समझकर आ जाओ।।
मिट्टी के जादूगर
उंगलियों के पोर से चाक पे रखी मिट्टी पे,
जाने क्या जादू कर देते है।
कुम्हार मिट्टी और पानी को मथ कर,
उसमे जीवन भर देते है।
माटी का दिया, झूमर, धुपावली, गुल्लक,
गुड्डे, गुड़िया ,सुराही ,मटकी ,कुल्हड़ चायवाली ,
सब इन्हीं हाथो से तो बनते है।
दिनभर धूप, भूख ,प्यास में ये,
भरपूर मेहनत करते है।
सड़क किनारे फुटपाथ पर ,
अपनी मेहनत का भाव लगाते है।
फिर भी जाने क्यूं लोग इनसे,
मोलभाव कर जाते है।
एक सलिता जीवन की,
इनके अंदर भी जलती है।
भले बेचते हों ये दिए पर,
इनकी दीवाली भी मनती है।
अगली बार कभी भी जब ,
दिए खरीदने जाना तुम।
मोलभाव मत करना इनसे,
मेहनत का मोल चुकाना तुम।
मिट्टी के जादूगर को,
जादू की कीमत देना तुम।
मानवता का एक दिया
अपने अंदर भी जलाना तुम
किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेर कर
इस बार दीवाली मानना तुम।
खामोश दिये
इस बार दीवाली , मेरी तरह आई
खामोशी की चादर ओढ़े
टूटी टूटी सी
रूखी रूखी सी
ना उमंग , ना तरंग
अकेली सी ,मेरी तरह
दीप भी जले ,
ओर दिल भी
बाहर पटाखों का शोर ,
दिल मे सन्नाटा ,
घर की रौनक
घर की उमंग
घर का चिराग ही
जब बुझ गया,
फिर कैसी दीवाली
कैसा उजाला ,
कैसा बधाइयों का तांता
सब खामोसी
दिल मे अंधेरा
इस बार दीवाली मेरी तरह आई है
दीपावली
दीपावली का शुभ अवसर आया
वर्ष भर की प्रतीक्षा के बाद ये अवसर आया
दीपों की माला से जगमग है कोना कोना
सतरंगी झालरों ने रौशन किया रात का बिछौना
झिलमिल कंडीलों ने गहरे सघन नभ को
अपने प्रकाश से स्वर्णिम भर डाला
माँ लक्ष्मी के पूजन मै नतमस्तक हुए सभी भक्तजन
गणपति से पाने को रिद्धि सिद्धि करते प्रार्थना हम
माँ सरस्वती से विद्या बुद्धि पाने का चाहें आशीष हम
चरणों मै प्रभु माँ के झुकने का शुभ समय आया
फूलों के बंदनवारों से सज गये सभी कपाट
सुंदर रंगोलियौं से सज गये सभी के द्वार
स्वास्तिक को पूजते शुभ कलशों को लिए
माँ लक्ष्मी की प्रतीक्षा का प्यारा ये दिन आया
सभी त्योहारों का राजा ये दीपावली का त्योहार
लेकर के आया ये ख़ुशियाँ अपार
आया रे आया लम्बी प्रतीक्षा के बाद
अंधकार को उजाले मै बदलने का दिन आया
दीपावली का शुभ अवसर आया।