देवरिया से कलमकार डॉ. कन्हैया लाल गुप्त अपने बचपन और बीते दिनों को याद करते हुए कुछ पंक्तियाँ लिखते हैं जो उनके संघर्ष को भी बयान करतीं हैं। वे अपने गाँव ‘भाटपार रानी’ का भी ज़िक्र करते हैं, आइए उनके शब्दों में उनकी कहानी पढ़ें।
ऐसा करो, ऐसा करो!!
मै भाटपार रानी बन जाता हूँ
तुम मुझे ढूँढ़ो, मेरा बचपन आर्य चौक में,
मेरा बालपन सरस्वती बाल विद्या मंदिर में,
तुम बालक कन्हैया को ढूँढो़, बाबूलाल आचार्य जी के पास।
डी एन वर्मा गुरु जी के पास।
क्रिकेट खेलते हुए आम के बागीचे में।
फुटबॉल खेलते बी आर डी के मैदान में।
कबड्डी खेलते दरवाजे के पास।
गुल्ली डण्डा खेलते सुभाष स्कूल के पास।
स्कूल जाते स्टेशन रोड़ पर।
युवा कन्हैया को देखा है मालवीय महाविद्यालय जाते हुए।
विवाहित कन्हैया को देखा है शिक्षक प्रशिक्षण लेते हुए।
किराने पेन्ट की दुकान चलाते हुए।
अपने मित्रों रणधीर, संजय, मुन्ना शर्मा के साथ।
दुकान पर विजयानंद, एस एन पाण्डेय गुरु जी के साथ।
तुमने कन्हैया को देखा है बहन चन्द्रकला के विवाह में।
बाबूजी के मृत्यु के समय।
भाटपार रानी छोड़ने की विवशता में।
मध्यप्रदेश के रीवा तक की यात्रा में
गोरखपुर से भाटपार रानी के बीच आते जाते समय।
नौतनवां तक की दौड़ लगाकर बच्चों को पढाते हुए।
तुमने कन्हैया को देखा है अपनी माता जी के इलाज को कराते समय।
जब जेब में पैसे कम बिमारी ज्यादा थी।
तुमने कन्हैया को देखा है जब माता मरणासन्न थी।
तुमने कन्हैया को देखा है जब माता स्वर्ग सिधार गयी।
तुमने कन्हैया को देखा है जब माता के मरण पर फूट फूट रोते, बिलखते, चिल्लाते हुए।
अब तुम कन्हैया को देखते हो प्रति दिन विद्यालय जाते हुए
अब तुम कन्हैया को देखते हो प्रति दिन उदयसिंह आदि साथियों संग।।~ डॉ कन्हैया लाल गुप्त शिक्षक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली, सिवान, बिहार 841239
पता- आर्य चौक- बाज़ार भाटपाररानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश 274702
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