कलमकार खेम चन्द कभी भी हार न मानने की राय अपनी कविता के जरिए देना चाहते हैं। कठिनाई तो क्षणभर के लिए आती है, बेहद डरावनी होती है किंतु हमारे धैर्य से वह खुद डर जाती है।
मुसीबत में कभी तुम घबराना नहीं
पैर पीछे तुम मंजिल से हटाना नहीं।
चंद दिनों के मेहमान हैं ह्म सभी यहाँ
तुम राह में किसी से बिछड़ जाना नहीं।
आती रहती है मुश्किलें सफ़र में हज़ारों
तुम मुश्किलों से जज़्बा अपना छिपाना नहीं।
ये जो हंसी -मुस्कान लौटी है चेहरों पर
तुम फिर रिश्तों में किसी को रूलाना नहीं।
जलाये हैं जमाने में दीपक कई लोगों ने
तुम खुद का दीपक कभी बुझाना नहीं।
गुज़र जायेगा ये लम्हा भी सुनहरी याद बनकर
क्यूंकि यादों का होता कोई ठिकाना नहीं।
लिखा होगा तुमने भी पैगाम कहीं पर किसी के लिये
उस टूकड़े को तुम अकेले में जलाना नहीं।
सुना था माँ से लौट आती है खुशियाँ
लौटाये कोई अब रहा वो जमाना नहीं।
फरियादी बनकर रह गया हूँ किसी दर
मांगने का कोई और मेरे पास बहाना नहीं।
उठती लौ बारम्बार विचारों की “नादान कलम”
तू इस लौ को कभी बुझाना नहीं।
ये दुनिया हो गयी है रंग बिरंगी
कभी फिर इस दुनिया को हैसियत दिखाना नहीं।
रहना अटल अपनी वाणी पर सदैव
खुद को जमाने से मिटाना नहीं।
ये तस्वीरें बहोत कहती है गौर करना
कभी दीवारों से इन्हें हटाना नहीं।
साथ रहकर होती हैं कश्तियां पार
तुम साथ रहकर दूर जाना नहीं।~ खेम चन्द