कलमकार विजय कनौजिया जी कहते हैं कि न मानों तुम खुद से हार। ‘मन के हारे हार है और मन के जीते जीत’ यह कहावत हमारा मनोबल बढ़ाने में प्रेरक सिद्ध होती है। खुद को लाचार कभी नहीं मानना चाहिए क्योंकि कुछ कर गुजरने का जज्बा हर इंसान में होता है।
तुम ही हो कल के आधार
कर लो सपना तुम साकार
मिल जाएगी मंजिल तुमको
खुद को न समझो लाचार..।।भारत देश के गौरव तुम हो
मात-पिता के सपने तुम हो
साहस धैर्य निहित हो तुम में
न मानो तुम खुद से हार..।।युवा जोश में होश न खोना
हार मानकर तुम मत रोना
असफलता से मत विचलित हो
करो तैयारी फिर एक बार..।।मिलजुल कर तुम रहना सीखो
अपनों के संग मिलना सीखो
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
सबके संग हो एक विचार..।।महिलाओं का मान बढ़ाना
शोषित का सम्मान बढ़ाना
सच्चाई के पथ पर चलना
मत करना तुम अत्याचार..।।
मत करना तुम अत्याचार..।।~ विजय कनौजिया
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